Saturday, 11 July 2020

काल का जाल




काल जाल को समझ गए तो मुक्ति का मार्ग खुल जायेगा !

प्रश्न :- काल कौन है ?
उत्तर :- काल इस दुनियाँ का राजा है, उसका ॐ मंत्र है, वह दुर्गाजी का पति है और ब्रह्मा विष्णु शिव का पिता है !
ॐ नमः शिवाय
महा काल


प्रश्न :- काल के पास कितने ब्रह्मांड है और उसका नाम काल क्यों है ?7
उत्तर :- 21 ब्रह्मांड का मालिक है काल और वह सबकी मृत्यु करता है इसलिए उसका नाम काल है !!


प्रश्न :- वह क्यों मृत्यु करता है लोगों की और 84 लाख योनियाँ किसने और क्यों बनाई ?
उत्तर :- काल को श्राप लगा हुआ है रोज एक लाख मनुष्य की आत्मा का मैल
 खाना है, मनुष्य ही उसका भोजन है इसलिए वह मृत्यु करता है और कोई मुक्त न हो जाये इसलिए आत्मा को 84 लाख योनियों में कैद करके कर्मानुसार सज़ा भी देता है !!

प्रश्न :- मरने के बाद इंसान का क्या होता है ?
उत्तर :- मरने के बाद इंसान की आत्मा को काल गर्म तवे पर डालता है और जिंदगी भर का खाया पिया जो आत्मा से लिपटा चिपटा रहता है उस गन्दगी को निकाल के खाता है, आत्मा को असहनीय पीड़ा होती पर इसको कोई परवाह नहीं जैसे कसाई बकरे पालता है वैसे इंसान को काल पालता है !!

प्रश्न :- क्या काल अपने पुत्र ब्रह्मा विष्णु शिव को भी खाता है ??
उत्तर :- हाँ, जैसे नागिन अपने ही बच्चों को जन्म देकर खा जाती है वैसे ही काल भी खा जाता है !!


प्रश्न :- काल चक्र से कैसे निकले ?
उत्तर :- काल को जिसने बनाया है उस भगवान की पूजा करके और काल का कर्ज़ चुका के काल चक्र से मुक्त हो सकते है !! 

प्रश्न :- काल को किसने बनाया और काल का कर्ज़ कैसे चुकेगा ?
उत्तर :- काल को सृष्टि सृजनहार, सबका मालिक एक ने बनाया है और उसके प्रतिनिधि संत जिसे तत्वदर्शी कहा गया है गीता 04/34 में उसके अनुसार बताई गयी भक्ति साधना और मंत्र जाप से , काल का कर्ज़ चुकता हो जाएगा और मुक्ति भी मिल जाएगी !!

प्रश्न :- सबका मालिक, सृष्टि सृजनहार जो मुक्तिदाता है वह कौन है और उनके प्रतिनिधि तत्वदर्शी संत कौन है ?
उत्तर :- इस प्रश्न के जवाब के लिए आपको खुद कष्ट करना पड़ेगा, रोज शाम 7:30 बजे साधना टीवी देखिए और हमसे हमारे whatsapp नंम्बर 9953984946 पर संपर्क करिये 
                              या 
ये website पढ़िए www.jagatgururampalji.org
मुक्तिबोध
भगवान quotes

प्रश्न :- मुक्त होकर कहाँ जाएंगे ?
उत्तर :- सतलोक, सृष्टि सृजनहार के पास !!

प्रश्न :- तो क्या सृष्टि की रचना दुर्गाजी और ब्रह्माजी ने नहीं की ?
उत्तर :- नहीं

प्रश्न :- काल का प्रमाण कहाँ है और क्या काल की भी मृत्यु होती है ?
उत्तर :- काल का प्रमाण गीता 11/32 में है जिसने स्वयं कहा है - अर्जुन मैं काल हूँ और सबको नष्ट करने को प्रकट हुआ हूँ!! 
काल की भी मृत्यु होती है प्रमाण गीता 04/05 - अर्जुन मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके है उनको तू नहीं जानता मैं जानता हूँ !!

प्रश्न :- पर गीता का ज्ञान तो श्री कृष्ण ने दिया था ना ?
उत्तर :- नहीं, जब अर्जुन ने हथियार डाल दिये थे तब काल श्री कृष्ण जी के शरीर में भूत की तरह घुस गया और अर्जुन का Mind Wash करके युद्ध करा दिया और रथ का पहिया उठा के कृष्ण जी की प्रतिज्ञा भी तोड़ दी कि जब कृष्ण जी पहले ही बोले थे कि मैं युद्ध नहीं करूंगा !!
काल का जाल
गीता उपदेश


प्रश्न :- काल को किसने देखा है और वह कहां रहता है ?
उत्तर :- अर्जुन और संजय ने काल को देखा है और काल छुप के अपने 21वें ब्रह्मांड के अंतिम छोर पे रहता है जहाँ से सतलोक को मुक्ति को रास्ता जाता है !!
और वह किसी को भी अपने वास्तविक रूप में दर्शन नहीं देता किसी को ब्रह्मा किसी को विष्णु किसी को शिव रूप में दर्शन दे कर भोले जीवों को गुमराह कर देता है !!

प्रश्न :- काल और महाकाल में क्या अंतर है ?
उत्तर :- महाकाल कोई भी नहीं है सिर्फ़ काल है पर लोगों ने अतिशयोक्ति कर दी है बेवजह अज्ञानता में !!

प्रश्न :- काल और यमराज में क्या अंतर है ?
उत्तर :- काल मालिक है और यमराज उसका नौकर !!

प्रश्न :- ब्रह्मा विष्णु शिव दुर्गाजी गणेश जी और देवी देवताओं की भक्ति से मुक्ति हो सकती है ?
उत्तर :- नहीं , क्योंकि ये सब खुद काल की कैद में है !!

प्रश्न :- ब्रह्मा विष्णु शिव, अजर अमर है ??
उत्तर :- नहीं, प्रमाण - देवीभगवद पुराण, page 123, तीसरा स्कंद, गीताप्रेस, गोरखपुर, पढ़ लो !!

प्रश्न :- क्या शिव जी महाकाल है ?
उत्तर :- नहीं, काल तो शिव जी को भी मार देता है, तो वे महाकाल कैसे हो सकते है !!

प्रश्न :- काल और शैतान में क्या अंतर है ??
उत्तर :- हिन्दू काल बोलते है मुस्लिम शैतान पर दोंनो एक ही है !!

प्रश्न :- मुस्लिम लोगों की मुक्ति कैसे होगी ??
उत्तर :- कुरान में बाख़बर के बताए अनुसार इबादत से मुक्ति होगी !! 

प्रश्न :- बाख़बर कौन है कहाँ मिलेगा ??
उत्तर :- इस प्रश्न के जवाब के लिए आपको खुद कष्ट करना पड़ेगा, रोज शाम 7:30 बजे साधना टीवी देखिए और हमसे हमारे whatsapp नंम्बर 9953984946 पर संपर्क करिये
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प्रश्न :- लोगों को धर्मो और सम्प्रदायों में किसने और क्यों बाटा ??
उत्तर :- आज से 05 हजार साल पहले केवल मानव धर्म था और कर्म आधार पर जातियां थी --
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र 
धर्म आधार पर हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई में काल ने कलयुग में बाटा है ताकि कोई मुक्त न हो जाये और आपस में ही लड़ते रहे क्योंकि कलयुग में ही हमेशा इसी वक़्त मुक्ति होती है !!

प्रश्न :- क्या Corona भी काल की देन है और Corona की मौत से कौन बचा सकता है ?
उत्तर :- हाँ Corona काल की मर्जी है और तत्वदर्शी संत या बाख़बर Corona मौत से आपको बचा सकता है !!
कोरोना
कोरोना संदेश


प्रश्न :- मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है ??
उत्तर :- सभी जानते है only मुक्ति के लिए मानव जीवन मिलता है नहीं तो काल का भोजन बनना पड़ेगा और नर्क का कष्ट के बाद 84 लाख योनियों में दुर्गति होगी !!

प्रश्न :- इस विषय पर विस्तृत जानकारी कहाँ मिलेगी ??
उत्तर :- अधिक जानकारी के लिए, "ज्ञान गंगा" पुस्तक निः शुल्क प्राप्त करें, अपना पूरा नाम पता और mobile नंम्बर हमें whatsapp करें - +91-74968018

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https://youtu.be/FIDPrkHQ-ts


Saturday, 4 July 2020

सच जो आप जानना चाहते हैं


अनादि काल से ही मानव परम शांति, सुख व अमृत्व की खोज में लगा हुआ है। वह अपने सामर्थ्य सामर्थ्य के अनुसार प्रयत्न करता आ रहा है लेकिन उसकी यह चाहत कभी पूर्ण नहीं हो पा रही है। ऐसा इसलिए है कि उसे इस चाहत को प्राप्त करने के मार्ग का पूर्ण ज्ञान नहीं है। सभी प्राणी चाहते हैं कि कोई कार्य न करना पड़े, खाने को स्वादिष्ट भोजन मिले, पहनने को सुन्दर वस्त्र मिलें, रहने को आलीशान भवन हों, घूमने के लिए सुन्दर पार्क हों, मनोरंजन करने के लिए मधुर-2 संगीत हों, नांचे-गांए, खेलें-कूदें, मौज-मस्ती मनांए और कभी बीमार न हों, कभी बूढ़े न हों और कभी मृत्यु न होवे आदि-2, परंतु जिस संसार में हम रह रहे हैं यहां न तो ऐसा कहीं पर नजर आता है और न ही ऐसा संभव है। क्योंकि यह लोक नाशवान है, इस लोक की हर वस्तु भी नाशवान है और इस लोक का राजा ब्रह्म काल है जो एक लाख मानव सूक्ष्म शरीर खाता है। उसने सब प्राणियों को कर्म-भर्म व पाप-पुण्य रूपी जाल में उलझा कर तीन लोक के पिंजरे में कैद किए हुए है। कबीर साहेब कहते हैं कि :--

कबीर, तीन लोक पिंजरा भया, पाप पुण्य दो जाल।
सभी जीव भोजन भये, एक खाने वाला काल।।
गरीब, एक पापी एक पुन्यी आया, एक है सूम दलेल रे।
बिना भजन कोई काम नहीं आवै, सब है जम की जेल रे।।


वह नहीं चाहता कि कोई प्राणी इस पिंजरे रूपी कैद से बाहर निकल जाए। वह यह भी नहीं चाहता कि जीव आत्मा को अपने निज घर सतलोक का पता चले। इसलिए वह अपनी त्रिगुणी माया से हर जीव को भ्रमित किए हुए है। फिर मानव को ये उपरोक्त चाहत कहां से उत्पन्न हुई है? यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां हम सबने मरना है, सब दुःखी व अशांत हैं। जिस स्थिति को हम यहां प्राप्त करना चाहते हैं ऐसी स्थिति में हम अपने निज घर सतलोक में रहते थे। काल ब्रह्म के लोक में स्व इच्छा से आकर फंस गए और अपने निज घर का रास्ता भूल गए। कबीर साहेब कहते हैं कि -

इच्छा रूपी खेलन आया, तातैं सुख सागर नहीं पाया।

इस काल ब्रह्म के लोक में शांति व सुख का नामोनिशान भी नहीं है। त्रिगुणी माया से उत्पन्न काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, राग-द्वेष, हर्ष-शोक, लाभ-हानि, मान-बड़ाई रूपी अवगुण हर जीव को परेशान किए हुए हैं। यहां एक जीव दूसरे जीव को मार कर खा जाता है, शोषण करता है, ईज्जत लूट लेता है, धन लूट लेता है, शांति छीन लेता है। यहां पर चारों तरफ आग लगी है। यदि आप शांति से रहना चाहोगे तो दूसरे आपको नहीं रहने देंगे। आपके न चाहते हुए भी चोर चोरी कर ले जाता है, डाकू डाका डाल ले जाता है, दुर्घटना घट जाती है, किसान की फसल खराब हो जाती है, व्यापारी का व्यापार ठप्प हो जाता है, राजा का राज छीन लिया जाता है, स्वस्थ शरीर में बीमारी लग जाती है अर्थात् यहां पर कोई भी वस्तु सुरक्षित नहीं। राजाओं के राज, ईज्जतदार की ईज्जत, धनवान का धन, ताकतवर की ताकत और यहां तक की हम सभी के शरीर भी अचानक छीन लिए जाते हैं। माता-पिता के सामने जवान बेटा-बेटी मर जाते हैं, दूध पीते बच्चों को रोते-बिलखते छोड़ कर मात-पिता मर जाते हैं, जवान बहनें विधवा हो जाती हैं और पहाड़ से दुःखों को भोगने को मजबूर होते हैं। विचार करें कि क्या यह स्थान रहने के लायक है ? लेकिन हम मजबूरी वश यहां रह रहे हैं क्योंकि इस काल के पिंजरे से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता और हमें दूसरों को दुःखी करने की व दुःख सहने की आदत सी बन गई। 

यदि आप जी को इस लोक में होने वाले दुःखों से बचाव करना है तो यहां के प्रभु काल से परम शक्ति युक्त परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) की शरण लेनी पड़ेगी। जिस परमेश्वर का खौफ काल प्रभु को भी है। जिस के डर से यह उपरोक्त कष्ट उस जीव को नहीं दे सकता जो पूर्ण परमात्मा अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म (सत्य पुरूष) की शरण पूर्ण सन्त के बताए मार्ग से ग्रहण करता है। वह जब तक संसार में भक्ति करता रहेगा, उसको उपरोक्त कष्ट आजीवन नहीं होते। जो व्यक्ति इस पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’’ को पढ़ेगा उसको ज्ञान हो जाएगा कि हम अपने निज घर को भूल गए हैं। वह परम शांति व सुख यहां न होकर निज घर सतलोक में है जहां पर न जन्म है, न मृत्यु है, न बुढ़ापा, न दुःख, न कोई लड़ाई-झगड़ा है, न कोई बिमारी है, न पैसे का कोई लेन-देन है, न मनोरंजन के साधन खरीदना है। वहां पर सब परमात्मा द्वारा निःशुल्क व अखण्ड है।
इसकी सही सही जानकारी पूर्ण सतगुरु ही दे सकता है और वर्तमान में पूर्ण सद्गुरु संत रामपाल जी महाराज है।





पूर्ण गुरु के लक्षण
पूर्ण संत सर्व वेद-शास्त्रों का ज्ञाता होता है। 
दूसरे वह मन-कर्म-वचन से यानि सच्ची श्रद्धा से केवल एक परमात्मा समर्थ की भक्ति स्वयं करता है तथा अपने अनुयाईयों से करवाता है। तीसरे वह सब अनुयाईयों से समान व्यवहार (बर्ताव) करता है। चौथे उसके द्वारा बताया भक्ति कर्म वेदों में वर्णित विधि के अनुसार होता है। पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी से नाम उपदेश लें, अपना कल्याण कराएं।

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काल का जाल

काल जाल को समझ गए तो मुक्ति का मार्ग खुल जायेगा ! प्रश्न :- काल कौन है ? उत्तर :- काल इस दुनियाँ का राजा है, उसका ॐ मंत्र है...