Sunday, 24 May 2020

भगवान पर विश्वास




       भैंस का सींग भगवान बना’’

एक पाली (भैंसों को खेतों में चराने वाला) अपनी भैंसों को घास चराता-चराता मंदिरके आसपास चला गया। मंदिर में पंडित कथा कर रहा था। भगवान के मिलने के पश्चात्होने वाले सुख बता रहा था कि जिसको भगवान मिल गया तो सब कार्य सुगम हो जाते हैं।परमात्मा भक्त के सब कार्य कर देता है। भगवान भक्त को दुःखी नहीं होने देता। इसलिएभगवान की खोज करनी चाहिए।पाली भैंसों ने तंग कर रखा था। एक किसी ओर जाकर दूसरे की फसल में घुसकरनुकसान कर देती, दूसरी भैंस किसी ओर। खेत के मालिक आकर पाली को पीटते थे।कहते थे कि हमारी फसल को हानि करा दी। अपनी भैंसों को संभाल कर रखा कर। पालीने जब पंडित से सुना कि भगवान मिलने के पश्चात् सब कार्य आप करता है, भक्त मौजकरता है तो पंडित जी के निकट जाकर चरण पकड़कर कहा कि मुझे भगवान दे दो। मैंभैंसों ने बहुत दुःखी कर रखा हूँ। पंडित जी ने पीछा छुड़ाने के उद्देश्य से कहा कि कलआना। पाली गया तो पंडित ने पहले ही भैंस का टूटा हुआ सींग जो कूड़े में पड़ा था, उठाकरउसके ऊपर लाल कपड़ा लपेटकर लाल धागे (नाले=मौली) से बाँधकर कहा कि ले, यहभगवान है। इसकी पूजा करना, इसको पहले भोजन खिलाकर बाद में स्वयं खाना। कुछदिनों में तेरी भक्ति से प्रसन्न होकर यह भगवान मनुष्य की तरह बन जाएगा। तब तेरे सबकार्य करेगा। यह तेरी सच्ची श्रद्धा पर निर्भर है कि तू कितनी आस्था से सच्ची लगन सेक्रिया करता है। यदि तेरी भक्ति में कमी रही तो भगवान मनुष्य के समान नहीं बनेगा।पाली उस भैंस के सींग को ले गया। उसके सामने भोजन रखकर कहा कि खाओभगवान! भैंस का सींग कैसे भोजन खाता? पाली ने भी भोजन नहीं खाया। इस प्रकारतीन-चार दिन बीत गए। पाली ने कहा कि मर जाऊँगा, परंतु आप से पहले भोजन नहींखाऊँगा। मेरी भक्ति में कमी रह गई तो आप मनुष्य नहीं बनोगे। मैं भैंसों ने बहुत दुःखी हूँ।
परमात्मा तो जानीजान हैं। जानते थे कि यह भोला भक्त मृत्यु के निकट है। उसपाखण्डी ने तो अपना पीछा छुड़ा लिया। मैं कैसे छुड़ाऊँ? चौथे दिन पाली के सामने उसीभैंस के सींग का जवान मनुष्य बन गया। पाली ने बांहों में भर लिया और कहने लगा किभोजन खा, फिर मैं खाऊँगा। भगवान ने ऐसा ही किया। फिर अपने हाथों पाली को भोजनडालकर दिया। पाली ने भोजन खाया। भगवान ने कहा कि मेरे को किसलिए लाया है? पालीबोला कि भैंस चराने के लिए चल, भैंसों को खेत में खोल, यह लाठी ले। अब सारा कार्यआपने करना है, मैं मौज करूँगा। परमात्मा ने लाठी थामी और सब भैंसों की अपने आपरस्सी खुल गई और खेतों की ओर चल पड़ी। कोई भैंस किसी ओर जाने लगे तो लाठी वालाउसी ओर खड़ा दिखाई देता। भैंसे घास के मैदान में भी घास चरने लगी। दूसरों की खेतीमें कोई नुक्सान नहीं हो रहा था। पाली की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वह अपने गुरूजी पंडित जी का धन्यवाद करने मंदिर में गया। पंडित डर गया कि यह झगड़ा करेगा,कहेगा कि अच्छा मूर्ख बनाया, परंतु बात विपरित हुई। पाली ने गुरू जी के चरण छूए तथाकहा कि गुरू जी चौथे दिन आदमी रूप में भगवान बन गया। मैंने भी भोजन नहीं खाया,प्राण निकलने वाले थे। उसी समय वह लाल वस्त्रा में बँधा भगवान जवान लड़का बन गया।मेरी ही आयु के समान। अब सारा कार्य भगवान कर लेता है। मैं मौज करता हूँ। उसकेभोले-भाले अंदाज से बताई कथा सत्य लग रही थी, परंतु विश्वास नहीं हो रहा था। पंडितजी ने कहा कि मुझे दिखा सकते हो, कहाँ है वह युवा भगवान। पाली बोला कि चलो मेरेसाथ। पंडित जी पाली के साथ भैंसों के पास गया। पूछा कि कहाँ है भगवान? पाली बोलाकि क्या दिखाई नहीं देता, देखो! वह खड़ा लाठी ठोडी के नीचे लगाए। पंडित जी को तोकेवल लाठी-लाठी ही दिखाई दे रही थी क्योंकि उसके कर्म लाठी खाने के ही थे। पाली सेकहा कि मुझे लाठी-लाठी ही दिखाई दे रही है। कभी इधर जा रही है, कभी उधर जा रहीहै। तब पाली ने कहा कि भगवान इधर आओ। भगवान निकट आकर बोला, क्या आज्ञा है?पंडित जी को आवाज तो सुनी, लाठी भी दिखी, परंतु भगवान न ही दिखे।



 पाली बोला, आपमेरे गुरू जी को दिखाई नहीं दे रहे हो, इन्हें भी दर्शन दो। भगवान ने कहा, ये पाखण्डी है।यह केवल कथा-कथा सुनाता है, स्वयं को विश्वास नहीं। इसको दर्शन कैसे हो सकते हैं?पंडित जी यह वाणी सुनकर लाठी के साथ पृथ्वी पर गिरकर क्षमा याचना करने लगा।भगवान ने कहा, यह भोला बालक मर जाता तो तेरा क्या हाल होता? मैंने इसकी रक्षा की।पाली के विशेष आग्रह से पंडित जी को भी विष्णु रूप में दर्शन दिए क्योंकि वह श्री विष्णुजी का भक्त था। फिर अंतर्ध्यान हो गया।प्रिय पाठकों से निवेदन है कि इस कथा का भावार्थ यह न समझना कि पाली की तरहहठ योग करने से परमात्मा मिल जाता है। यदि कुछ देर दर्शन भी दे गए और कुछ जटिलकार्य भी कर दिए। इससे जन्म-मरण का दीर्घ रोग तो समाप्त नहीं हुआ। वह तो पूर्ण गुरूसे दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर आजीवन साधना करने से ही समाप्त होगा।पाली तथा पंडित पिछले जन्म में परमात्मा के परम भक्त थे, परंतु अपनी गलती से मुक्त नहीं हो पाए थे। उनको अबकी बार पार करना था। उस कारण से यह सब कारण बनाये थे। पूर्व जन्म की भक्ति के प्रभाव से मानव परमात्मा की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करताहै, तब परमात्मा को कोई कारण बना कर अपनी शरण में लेना  पड़ता है।
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