Wednesday, 27 May 2020

रामानंद को जीवित करना


“सिकंदर लौधी बादशाह का असाध्य जलन का रोगठीक करना”




एक बार दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी को जलन का रोग हो गया।जलन का रोग ऐसा होता है जैसे किसी का आग में हाथ जल जाए उसमें पीड़ाबहुत होती है। जलन के रोग में कहीं से शरीर जला दिखाई नहीं देता है परन्तुपीड़ा अत्यधिक होती है। उसको जलन का रोग कहते हैं। जब प्राणी के पापबढ़ जाते हैं तो दवाई भी व्यर्थ हो जाती हैं। दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लौधीके साथ भी वही हुआ। सभी प्रकार की औषधी सेवन की। बड़े-बड़े वैद्य बुलालिए और मुँह बोला इनाम रख दिया कि मुझे ठीक कर दो, जो माँगोगे वहीदूँगा। दुःख में व्यक्ति पता नहीं क्या संकल्प कर लेता है ? सर्व उपाय निष्फलहुए। उसके बाद अपने धार्मिक काजी, मुल्ला, संतों आदि सबसे अपनाआध्यात्मिक इलाज करवाया। परन्तु सब असफल रहा। {जब हम दुःखी होजाते हैं तो हिन्दू और मुसलमान नहीं रहते। फिर तो कहीं पर रोग कट जाए,वही पर चले जाते हैं। वैसे तो हिन्दू कहते हैं कि मुसलमान बुरे और मुसलमानकहते हैं कि हिन्दू बुरे और बीमारी हो जाए तो फिर हिन्दू व मुसलमान नहींदेखते। जब कष्ट आए तब तो कोई बुरा नहीं। बुरा कोई नहीं है। जोमुसलमान बुरे हैं वे बुरे हैं और जो हिन्दू बुरे हैं वे बुरे भी हैं और दोनों में अच्छेभी है। हर मज़हब में अच्छे और बुरे व्यक्ति होते हैं। लेकिन हम जीव हैं।हमारी कोई जाति व्यवस्था नहीं है। हमारी जीव जाति है हमारा धर्म मानवहै-परमात्मा को पाना है।} हिन्दू वैद्य तथा आध्यात्मिक संत भी बुलाए, स्वयं भीउनसे जाकर मिला और सबसे आशीर्वाद व जंत्रा-मंत्रा करवाऐं परन्तु सर्व चेष्टानिष्फल रही।

किसी ने बताया कि काशी शहर में एक कबीर नाम का महापुरूष है। यदिवह कृपा कर दे तो आपका दुःख निवारण अवश्य हो जाएगा।जब बादशाह सिकंदर ने सुना कि एक काशी के अन्दर महापुरूष रहताहै तो उसको कुछ-कुछ याद आया कि वह तो नहीं है जिसने गाय को भीजीवित कर दिया था। हजारों अंगरक्षकों सहित दिल्ली से काशी के लिए चलपड़ा। बीर सिंह बघेला काशी नरेश पहले ही कबीर साहेब की महिमा और ज्ञानसुनकर कबीर साहेब के शिष्य हो चुके थे और पूर्ण रूप से अपने गुरुदेव मेंआस्था रखते थे। उनको कबीर साहेब की महिमा का ज्ञान था क्योंकि कबीरपरमेश्वर वहाँ पर बहुत लीलाएँ कर चुके थे। जब सिकंदर लोधी बनारस(काशी)गया तथा बीर सिंह से कहा बीर सिंह मैं बहुत दुःखी हो गया हूँ। अब तोआत्महत्या ही शेष रह गई है। यहाँ पर कोई कबीर नाम का संत है? आप तोजानते होंगे कि वह कैसा है? इतनी बात सिकंदर बादशाह के मुख से सुनीथी। काशी नरेश बीर सिंह की आँखों में पानी भर आया और कहा कि अबआप ठीक स्थान पर आ गए। अब आपके दुःख का अंत हो जाएगा। बादशाहसिकंदर ने पूछा कि ऐसी क्या बात है? बीर सिंह ने कहा कि वह कबीर जीस्वयं भगवान आए हुए हैं। परमेश्वर स्वरूप हैं। यदि उनकी दयादृष्टि हो गई तो आपका रोग ठीक हो जाएगा। राजा सिकंदर ने कहा कि जल्दी बुला दो।काशी नरेश बीरदेवसिंह बघेल ने विनम्रता से प्रार्थना की कि आपकी आज्ञाशिरोधार्य है, आदेश भिजवा देता हूँ। लेकिन ऐसा सुना है कि संतो को बुलायानहीं करते। यदि वे आ भी गए और रजा नहीं बख्शी तो भी आने का कोईलाभ नहीं। बाकी आपकी ईच्छा। सिकंदर ने कहा कि ठीक है मैं स्वयं हीचलता हूँ। इतनी दूर आ गया हूँ वहाँ पर भी अवश्य चलूँगा।

शाम का समय हो गया था। बीर सिंह को पता था कि इस समय साहेबकबीर जी अपने औपचारिक गुरुदेव स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में ही होतेहैं। यह समय परमेश्वर कबीर जी का वहाँ मिलने का है। बीर देव सिंह बघेलकाशी नरेश तथा सिकंदर लोधी दिल्ली के बादशाह दोनों, स्वामी रामानन्द जीके आश्रम के सामने खड़े हो गए। वहाँ जाकर पता चला कि कबीर साहेब अभीनहीं आए हैं, आने ही वाले हैं। बीर सिंह अन्दर नहीं गए। बाहर सेवक खड़ाथा उससे ही पूछा। सिकंदर ने कहा कि ‘‘तब तक आश्रम में विश्राम कर लेतेहैं।’’ राजा बीर सिंह ने स्वामी रामानन्द जी के द्वारपाल सेवक से कहा किरामानन्द जी से प्रार्थना करो कि दिल्ली के बादशाह सिकंदर लौधी आपकेदर्शन भी करना चाहते हैं और साहेब कबीर का इन्तजार भी आपके आश्रम मेंही करना चाहते है। सेवक ने अन्दर जाकर रामानन्द जी को बताया किदिल्ली के बादशाह सिकंदर लौधी आए हैं। रामानन्द जी मुसलमानों से घृणाकरते थे। रामानन्द जी ने कहा कि मैं इन मलेच्छों (मुसलमानों) की शक्ल भीनहीं देखता। कह दो कि बाहर बैठ जाएगा। जब सिकंदर लोधी ने यह सुनातो क्रोध में भरकर (क्योंकि राजा में अहंकार बहुत होता है और वह दिल्ली काबादशाह) कहा कि यह दो कोड़ी का महात्मा दिल्ली के बादशाह का अनादरकर सकता है तो साधारण मुसलमान के साथ यह कैसा व्यवहार करता होगा?इसको मज़ा चखा दूं। रामानन्द जी अलग आसन पर बैठे थे। सिकंदर लोधीने जाकर रामानन्द जी की गर्दन तलवार से काट दी। वापिस चल पड़ा औरफिर उसको याद आया कि मैं जिस कार्य के लिए आया था? और वह कामअब पूरा नहीं होगा। कहा कि बीर सिंह देख मैं क्या जुल्म कर बैठा? मेरे बहुतबुरे दिन हैं। चाहता हूँ अच्छा करना और होता है बुरा। कबीर साहेब के गुरुदेवकी हत्या कर दी। अब वे कभी भी मेरे ऊपर दयादृष्टि नहीं करेंगे। मुझे तोयह दुःख भोग कर ही मरना पड़ेगा। मैं बहुत पापी जीव हूँ। यह कहता हुआआश्रम से बाहर की ओर चल पड़ा। बीर सिंह अपने बादशाह के आगे क्याबोलता। ज्योंही आश्रम से बाहर आए, कबीर साहेब आते दिखाई दिए। बीरसिंह ने कहा कि महाराज जी मेरे गुरुदेव कबीर साहेब आ गए। ज्योंही कबीरसाहेब थोड़ी दूर रह गए बीर सिंह ने जमीन पर लेटकर उनको दण्डवत्प्रणाम किया। अब सिकंदर बहुत घबराया हुआ था। {अगर उसने यह जुल्मनहीं किया होता तो वह दण्डवत् नहीं करता और दण्डवत् नहीं करता तोसाहेब उस पर रजा भी नहीं बख्श पाते क्योंकि यह नियम होता है ‘अति आधीन दीन हो प्राणी, ताते कहिए ये अकथ कहानी।‘‘उच्चे पात्रा जल ना जाई, ताते नीचा हुजै भाई।आधीनी के पास हैं पूर्ण ब्रह्म दयाल।मान बड़ाई मारिए बे अदबी सिर काल।।कबीर परमेश्वर ने यहाँ पर एक तीर से दो शिकार किए। स्वामी रामानंदजी में धर्म भेद-भाव की भावना शेष थी, वह भी निकालनी थी। रामानंद जीमुसलमानां को हिन्दूओं से अभी भी भिन्न तथा हेय मानते थे। सिकंदर मेंअहंकार की भावना थी। यदि वह नम्र नहीं होता तो कबीर साहेब कृपा नहींकरते तथा सिकंदर स्वस्थ नहीं होता} बीर सिंह को देखकर तथा डरते हुएसिकंदर लौधी ने भी दण्डवत् प्रणाम किया।
कबीर परमेश्वर जी ने दोनों केसिर पर हाथ रखा और कहा कि दो-2 नरेश आज मुझ गरीब के पास कैसेआए हैं? मुझ गरीब को कैसे दर्शन दिए? परमेश्वर कबीर जी ने अपना हाथउठाया भी नहीं था कि सिकंदर का जलन का रोग समाप्त हो गया। सिकंदरलौधी की आँखों में पानी आ गया। (संत के सामने यह मन भाग जाता है औरये आत्मा ऊपर आ जाती है क्योंकि परमात्मा आत्मा का साथी है। ‘‘अन्तरयामीएक तू आत्म के आधार।‘‘ 
आत्मा का आधार कबीर भगवान है।) 
सिकंदरलौधी ने पैर पकड़ कर छोड़े नहीं और रोता ही रहा। परमेश्वर जानी जानहोते हुए भी कबीर साहेब ने सिकन्दर लोधी दिल्ली के बादशाह से पूछा क्याबात है?। सिकंदर ने कहा कि दाता मैंने घोर अपराध कर दिया। आप मुझेक्षमा नहीं कर सकते। जिस काम के लिए मैं आया था वह असाध्य रोग तोआपके स्पर्श मात्रा से ठीक हो गया। इस पापी को क्षमा कर दो। कबीर साहेबने कहा क्षमा कर दिया। यह तो बता कि क्या हुआ? सिकंदर ने कहा कि आपक्षमा कर नहीं सकते। मैंने ऐसा पाप किया है। कबीर साहेब ने कहा कि क्षमाकर दिया। सिकंदर ने फिर कहा कि सच में माफ कर दिया? कबीर साहेबने कहा कि हाँ क्षमा कर दिया। अब बता क्या कष्ट है? सिकंदर ने कहा किदाता मुझ पापी ने गुस्से में आकर आपके गुरुदेव का सिर कलम कर दियाऔर फिर सारी कहानी बताई। कबीर साहेब बोले कोई बात नहीं। जो हुआप्रभु इच्छा से ही हुआ है आप स्वामी रामानन्द जी का अन्तिम संस्कार करवाकर जाना नहीं तो आप निंदा के पात्रा बनोगे। परमेश्वर कबीर साहेब जीनाराज नहीं हुए। सिकंदर लोधी ने बीर सिंह के मुख की और देखा और कहाकि बीर सिंह यह तो वास्तव में भगवान है। देखिए मैंने गुरुदेव का सिर काटदिया और कबीर जी को क्रोध भी नहीं आया। बीर सिंह चुप रहा औरसाथ-साथ हो लिया और मन ही मन में सोचता है कि अभी क्या है, अभी तोऔर देखना। यह तो शुरूआत है।“स्वामी रामानन्द जी को जीवित करना” परमेश्वर कबीर जी ने अन्दर जाकर देखा रामानंद जी का धड़ कहीं परऔर सिर कहीं पर पड़ा था। शरीर पर चादर डाल रखी थी। कबीर साहेब नेअपने गुरुदेव के मृत शरीर को दण्डवत् प्रणाम किया और चरण छुए तथाकहा कि गुरुदेव उठो। दिल्ली के बादशाह आपके दर्शनार्थ आए हैं। एक बारउठना। दूसरी बार ही कहा था, सिर अपने आप उठकर धड़ पर लग गयाऔर रामानन्द जी जीवित हो गए “बोलो सतगुरु देव की जय”।“सर्व मनुष्य एक प्रभु के बच्चे हैं, जो दो मानता है वह अज्ञानी है”






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