😘🙏मीराबाई 🙏😘
मीरा बाई श्री कृष्ण जी की अनन भगतो मे से एक थी। मीरा बाई अपनी भगती के बल से श्री कृष्ण जी को अपने सामने प्रकट कर लेती थी। मीरा बाई श्रीकृष्ण के मंदिर में पूजा करने जाती थी। उसके मार्ग में एक छोटा बगीचा था। उसमें कुछ घनी छाया वाले वृक्ष भी थे। उस बगीचे में परमेश्वर कबीर जी तथा संत रविदास जी सत्संग कर रहे थे।
सुबह के लगभग 10 बजे का समय था। मीरा जी ने देखा कि यहाँ परमात्मा की चर्चा चल रही है। कुछ देर सुनकर चलते हैं। कबीर साहिब जी ने सत्संग में संक्षिप्त सृष्टि रचना का ज्ञान सुनाया। कहा कि श्री कृष्ण जी यानि श्री विष्णु जी से ऊपर अन्य सर्वशक्तिमान परमात्मा है। जन्म-मरण समाप्त नहीं हुआ तो भक्ति करना न करना समान है। जन्म-मरण तो श्री कृष्ण जी व श्री विष्णु का भी समाप्त नहीं है। उसके पुजारियों का कैसे होगा।
कबीर साहिब जी के मुख कमल से ये वचन सुनकर मीरा बाई के हृदय मे एक कचोट हो गई की श्रीकृष्ण जी भी बडी शक्ति है। श्री कृष्ण जी कि भगती भी मोक्ष दायक नही है। मीराबाई सत्संग सुन कर भारी मन से महलो मे आ गई।
दुसरे दिन मीरा बाई फिर सत्संग मे आ गई। क्योकि जिस मन्दिर मे मीराबाई कृष्ण जी की पुजा करने जाती थी वो सत्संग स्थल के पास ही था। दुसरे दिन का सत्संग सुनने के उपरांत मीराबाई जी ने प्रश्न किया कि हे महाराज आपकी आज्ञा हो तो शंका का समाधान करवाऊँ। कबीर जी ने कहा कि प्रश्न करो बहन जी!
हे महाराज! आज तक मैनें किसी से नहीं सुना कि श्री कृष्ण जी से ऊपर भी कोई परमात्मा है। आज आपके मुख से सुनकर मैं दोराहे पर खड़ी हो गई हूँ। मैं मानती हूँ कि संत झूठ नहीं बोलते। कबीर साहिब जी ने कहा कि आपके सामने कृष्ण जी साक्षात प्रकट हो जाते है तो आप उन्ही से पुछना। क्योकि देव झूठ नही बोलते।
रात्रि में मीरा जी ने भगवान श्री कृष्ण जी का आह्वान किया। श्रीकृष्ण साक्षात प्रकट हुए। मीरा ने अपनी शंका के समाधान के लिए निवेदन किया कि हे प्रभु! क्या आपसे ऊपर भी कोई परमात्मा है। एक संत ने सत्संग में बताया है। श्री कृष्ण जी ने कहा कि मीरा! परमात्मा तो है, परंतु वह किसी को दर्शन नहीं देता। मीराबाई जी ने सत्संग में परमात्मा कबीर जी से यह भी सुना था कि उस पूर्ण परमात्मा को मैं प्रत्यक्ष दिखाऊँगा।
सत्य साधना करके उसके पास सतलोक में भेज दूँगा। मीराबाई ने श्री कृष्ण जी से फिर प्रश्न किया कि क्या आप जीव का जन्म-मरण समाप्त कर सकते हो? श्री कृष्ण जी ने कहा कि यह संभव नहीं। कबीर जी ने कहा था कि मेरे पास एक ऐसा भक्ति मंत्र है जिससे जन्म-मरण सदा के लिए समाप्त हो जाता है।
मीराबाई ने कहा कि हे भगवान श्री कृष्ण जी! संत जी कह रहे थे कि मैं जन्म-मरण समाप्त कर देता हूँ। अब मैं क्या करूं। मै तो पूर्ण मोक्ष चाहती हू। श्री कृष्ण जी बोले कि मीरा! आप उस संत की शरण ग्रहण करो, अपना कल्याण कराओ। मुझे जितना ज्ञान था, वह बता दिया।
मीरा अगले दिन मंदिर नहीं गई। सीधी कबीर साहिब जी के पास अपनी नौकरानियों के साथ गई तथा दीक्षा लेने की इच्छा व्यक्त की तथा श्री कृष्ण जी से हुई वार्ता भी कबीर साहिब जी से साझा की।
उस समय छूआछात चरम पर थी। मीरा बाई ठाकुर खानदान की बहू और बेटी थी। ठाकुर लोग अपने को सर्वोत्तम मानते थे। परमात्मा मान-बड़ाई वाले प्राणी को कभी नहीं मिलता। मीराबाई की परीक्षा के लिए कबीर जी ने संत रविदास जी से कहा कि आप मीरा राठौर को प्रथम मंत्रा दे दो। यह मेरा आपको आदेश है। संत रविदास जी ने आज्ञा का पालन किया।
कबीर साहिब जी ने मीरा से कहा कि बहन जी! वो बैठे संत जी, उनके पास जाकर दीक्षा ले लें। बहन मीरा जी तुरंत रविदास जी के पास गई और बोली, संत जी! दीक्षा देकर कल्याण करो। संत रविदास जी ने बताया कि बहन जी! मैं चमार जाति से हूँ। आप ठाकुरों की बेटी हो। आपके समाज के लोग आपको बुरा-भला कहेंगे। जाति से बाहर कर देंगे। आप विचार कर लें।
मीराबाई अधिकारी आत्मा थी। परमात्मा के लिए मर-मिटने के लिए सदा तत्पर रहती थी। बोली, संत जी! आप मेरे पिता, मैं आपकी बेटी। मुझे दीक्षा दो। भाड़ में पड़ो समाज। कल को कुतिया बनूंगी, तब यह ठाकुर समाज मेरा क्या बचाव करेगा?
संत रविदास जी उठकर संत कबीर जी के पास गए और सब बात बताई। परमात्मा बोले कि देर ना कर, ले आत्मा को अपने पाले में। उसी समय संत रविदास जी ने बहन मीरा को प्रथम मंत्रा केवल पाँच नाम दिए। मीराबाई को बताया कि यह इनकी पूजा नहीं है, इनकी साधना है। इसप्रकार मीराबाई ने नामदान ग्रहण किया।
शब्द
सतसंग में जाना ऐ मीरां छोड़ दे,
आए म्हारी लोग करैं तकरार।
सत्संग में जाना मेरा ना छूटै री,
चाहे जलकै मरो संसार।
थारे सतसंग के राहे मैं ऐ,
आहे वहाँ पै रहते हैं काले नाग,
कोए-कोए नाग तनै डस लेवै।
जब गुरु म्हारे मेहर करै री,
आरी वै तो सर्प गंडेवे बन जावैं।
थारे सतसंग के राहे में ऐ,
आहे वहाँ पै रहते हैं बबरी शेर,
कोए-कोए शेर तनै खा लेवै।
जब गुरुआं की मेहर फिरै री,
आरी वो तो शेरां के गीदड़ बन जावैं।
थारे सतसंग के बीच में ऐ,
आहे वहां पै रहते हैं साधु संत,
कोए-कोए संत तनै ले रमै री।
तेरे री मन मैं माता पाप है री,
संत मेरे मां बाप हैं री,
एरी ये तो कर देगें बेड़ा पार।
वो तो जात चमार है ए,
इसमैं म्हारी हार है ए।
तेरे री लेखै माता चमार है री,
मेरा सिरजनहार है री।
आरी वै तो मीरां के गुरु रविदास
अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज की सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से
सत साहेब जी
मीरा बाई श्री कृष्ण जी की अनन भगतो मे से एक थी। मीरा बाई अपनी भगती के बल से श्री कृष्ण जी को अपने सामने प्रकट कर लेती थी। मीरा बाई श्रीकृष्ण के मंदिर में पूजा करने जाती थी। उसके मार्ग में एक छोटा बगीचा था। उसमें कुछ घनी छाया वाले वृक्ष भी थे। उस बगीचे में परमेश्वर कबीर जी तथा संत रविदास जी सत्संग कर रहे थे।
सुबह के लगभग 10 बजे का समय था। मीरा जी ने देखा कि यहाँ परमात्मा की चर्चा चल रही है। कुछ देर सुनकर चलते हैं। कबीर साहिब जी ने सत्संग में संक्षिप्त सृष्टि रचना का ज्ञान सुनाया। कहा कि श्री कृष्ण जी यानि श्री विष्णु जी से ऊपर अन्य सर्वशक्तिमान परमात्मा है। जन्म-मरण समाप्त नहीं हुआ तो भक्ति करना न करना समान है। जन्म-मरण तो श्री कृष्ण जी व श्री विष्णु का भी समाप्त नहीं है। उसके पुजारियों का कैसे होगा।
कबीर साहिब जी के मुख कमल से ये वचन सुनकर मीरा बाई के हृदय मे एक कचोट हो गई की श्रीकृष्ण जी भी बडी शक्ति है। श्री कृष्ण जी कि भगती भी मोक्ष दायक नही है। मीराबाई सत्संग सुन कर भारी मन से महलो मे आ गई।
दुसरे दिन मीरा बाई फिर सत्संग मे आ गई। क्योकि जिस मन्दिर मे मीराबाई कृष्ण जी की पुजा करने जाती थी वो सत्संग स्थल के पास ही था। दुसरे दिन का सत्संग सुनने के उपरांत मीराबाई जी ने प्रश्न किया कि हे महाराज आपकी आज्ञा हो तो शंका का समाधान करवाऊँ। कबीर जी ने कहा कि प्रश्न करो बहन जी!
हे महाराज! आज तक मैनें किसी से नहीं सुना कि श्री कृष्ण जी से ऊपर भी कोई परमात्मा है। आज आपके मुख से सुनकर मैं दोराहे पर खड़ी हो गई हूँ। मैं मानती हूँ कि संत झूठ नहीं बोलते। कबीर साहिब जी ने कहा कि आपके सामने कृष्ण जी साक्षात प्रकट हो जाते है तो आप उन्ही से पुछना। क्योकि देव झूठ नही बोलते।
रात्रि में मीरा जी ने भगवान श्री कृष्ण जी का आह्वान किया। श्रीकृष्ण साक्षात प्रकट हुए। मीरा ने अपनी शंका के समाधान के लिए निवेदन किया कि हे प्रभु! क्या आपसे ऊपर भी कोई परमात्मा है। एक संत ने सत्संग में बताया है। श्री कृष्ण जी ने कहा कि मीरा! परमात्मा तो है, परंतु वह किसी को दर्शन नहीं देता। मीराबाई जी ने सत्संग में परमात्मा कबीर जी से यह भी सुना था कि उस पूर्ण परमात्मा को मैं प्रत्यक्ष दिखाऊँगा।
सत्य साधना करके उसके पास सतलोक में भेज दूँगा। मीराबाई ने श्री कृष्ण जी से फिर प्रश्न किया कि क्या आप जीव का जन्म-मरण समाप्त कर सकते हो? श्री कृष्ण जी ने कहा कि यह संभव नहीं। कबीर जी ने कहा था कि मेरे पास एक ऐसा भक्ति मंत्र है जिससे जन्म-मरण सदा के लिए समाप्त हो जाता है।
मीराबाई ने कहा कि हे भगवान श्री कृष्ण जी! संत जी कह रहे थे कि मैं जन्म-मरण समाप्त कर देता हूँ। अब मैं क्या करूं। मै तो पूर्ण मोक्ष चाहती हू। श्री कृष्ण जी बोले कि मीरा! आप उस संत की शरण ग्रहण करो, अपना कल्याण कराओ। मुझे जितना ज्ञान था, वह बता दिया।
मीरा अगले दिन मंदिर नहीं गई। सीधी कबीर साहिब जी के पास अपनी नौकरानियों के साथ गई तथा दीक्षा लेने की इच्छा व्यक्त की तथा श्री कृष्ण जी से हुई वार्ता भी कबीर साहिब जी से साझा की।
उस समय छूआछात चरम पर थी। मीरा बाई ठाकुर खानदान की बहू और बेटी थी। ठाकुर लोग अपने को सर्वोत्तम मानते थे। परमात्मा मान-बड़ाई वाले प्राणी को कभी नहीं मिलता। मीराबाई की परीक्षा के लिए कबीर जी ने संत रविदास जी से कहा कि आप मीरा राठौर को प्रथम मंत्रा दे दो। यह मेरा आपको आदेश है। संत रविदास जी ने आज्ञा का पालन किया।
कबीर साहिब जी ने मीरा से कहा कि बहन जी! वो बैठे संत जी, उनके पास जाकर दीक्षा ले लें। बहन मीरा जी तुरंत रविदास जी के पास गई और बोली, संत जी! दीक्षा देकर कल्याण करो। संत रविदास जी ने बताया कि बहन जी! मैं चमार जाति से हूँ। आप ठाकुरों की बेटी हो। आपके समाज के लोग आपको बुरा-भला कहेंगे। जाति से बाहर कर देंगे। आप विचार कर लें।
मीराबाई अधिकारी आत्मा थी। परमात्मा के लिए मर-मिटने के लिए सदा तत्पर रहती थी। बोली, संत जी! आप मेरे पिता, मैं आपकी बेटी। मुझे दीक्षा दो। भाड़ में पड़ो समाज। कल को कुतिया बनूंगी, तब यह ठाकुर समाज मेरा क्या बचाव करेगा?
संत रविदास जी उठकर संत कबीर जी के पास गए और सब बात बताई। परमात्मा बोले कि देर ना कर, ले आत्मा को अपने पाले में। उसी समय संत रविदास जी ने बहन मीरा को प्रथम मंत्रा केवल पाँच नाम दिए। मीराबाई को बताया कि यह इनकी पूजा नहीं है, इनकी साधना है। इसप्रकार मीराबाई ने नामदान ग्रहण किया।
शब्द
सतसंग में जाना ऐ मीरां छोड़ दे,
आए म्हारी लोग करैं तकरार।
सत्संग में जाना मेरा ना छूटै री,
चाहे जलकै मरो संसार।
थारे सतसंग के राहे मैं ऐ,
आहे वहाँ पै रहते हैं काले नाग,
कोए-कोए नाग तनै डस लेवै।
जब गुरु म्हारे मेहर करै री,
आरी वै तो सर्प गंडेवे बन जावैं।
थारे सतसंग के राहे में ऐ,
आहे वहाँ पै रहते हैं बबरी शेर,
कोए-कोए शेर तनै खा लेवै।
जब गुरुआं की मेहर फिरै री,
आरी वो तो शेरां के गीदड़ बन जावैं।
थारे सतसंग के बीच में ऐ,
आहे वहां पै रहते हैं साधु संत,
कोए-कोए संत तनै ले रमै री।
तेरे री मन मैं माता पाप है री,
संत मेरे मां बाप हैं री,
एरी ये तो कर देगें बेड़ा पार।
वो तो जात चमार है ए,
इसमैं म्हारी हार है ए।
तेरे री लेखै माता चमार है री,
मेरा सिरजनहार है री।
आरी वै तो मीरां के गुरु रविदास
अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज की सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से
सत साहेब जी
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