Friday, 29 May 2020

मगहर में कबीर साहेब की अद्भुत लीला

प्रभु कबीर जी का मगहर से सशरीर सत्यलोक गमन"
                                     तथा 
                            " सूखी नदी में नीर बहाना"


राम और अल्लाह एक ही हैं!
600 साल पहले कबीर साहेब ने मगहर में शरीर छोड़ने से पहले सभी लोगो को अपना ज्ञान समझाते हुए कहा कि राम और अल्लाह एक ही हैं सभी धर्मों के लोग एक परमपिता की संतान है।


         काशी तज गुरु मगहर आए, दोनों दीन के पीर,
                       कोई गाड़े कोई अग्न जरावे, ढूंढा ना पाया शरीर ।।
          चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।
        दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।

कबीर साहेब  इस भ्रम को तोड़ने के लिए कि जो मगहर में मरता है वह गधा बनता है और कांशी में मरने वाला स्वर्ग जाता है। (बन्दी छोड़ कहते थे कि सही विधि से भक्ति करने वाला प्राणी चाहे वह कहीं पर प्राण त्याग दे वहअपने सही स्थान पर जाएगा।) उन नादानों का भ्रम निवारण करने के लिए कबीर साहेब ने कहा कि मैं मगहर में मरूँगा और सभी ज्योतिषी वाले देख लेना कि मैं कहा जाऊ गा? नरक में जाऊ ँ गा या स्वर्ग से भी ऊ। पर सतलोक में।

          "देख्या मगहर जहूरा सतगुरु, कांशी मैं कीर्ति कर चाले, 
          झिलमिल देही नूरा हो।"


कबीर साहेब ने कांशी से मगहर के लिये प्रस्थान किया। बीर सिंह बघेलाऔर बिजली खाँ पठान ये दोनों ही सतगुरू के शिष्य थे। बीर सिंह ने अपनी सेना साथ ले ली कि कबीर साहेब वहाँ पर अपना शरीर छोड़ेंगे। इस शरीर को लेकर हम काँशी में हिन्दु रीति से अंतिम संस्कार करेंगे। यदि मुसलमान नहीं मानेंगे तो लड़ाई कर के शव को लायेंगे। सेना भी साथ ले ली, अब इतनी बुद्धि है हमारी। हर रोज शिक्षा दिया करते कि हिन्दु मुसलमान दो नहीं हैं। अंत में फिर वही बुद्धि। उधर से बिजली खाँ पठान को पता चला कि कबीर साहेब यहाँ पर आ रहे हैं। बिजली खाँ पठान ने सतगुरू तथा सर्व आनेवाले भक्तों तथा दर्शकों की खाने तथा पीने की सारी व्यवस्था की और कहा कि सेना तुम भी तैयार कर लो। हम अपने पीर कबीर साहेब का यहाँ पर मुसलमान विधि से अंतिम संस्कार करेंगे।

तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छांडी पदहि समाये।
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं।।

                       कबीर साहेब के मगहर पहुँचने के बाद बिजली खाँ ने कहा कि महाराज जी स्नान करो। कबीर साहेब ने कहा कि बहते पानी में स्नान करूँगा। बिजली खान ने कहा कि सतगुरू देव यहाँ पर साथ में एक आमी नदी है, वह भगवान शिव के श्राप से सूखी पड़ी है।उसमें पानी नहीं है। जैसी व्यवस्था दास से हो पाई है पानी का प्रबंध करवाया है। लेकिन संगत बहुत आ गई। नहाने की तो बात बन नहीं पाएगी। पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में बाहर से मंगवा रखा है। कबीर साहेब ने कहा कि वह नदी देखें कहाँ पर है? उस नदी पर जा कर साहेब ने हाथ से ऐसे इशारा किया था जैसे यातायात (ट्रैफिक) का सिपाही रूकी हुई गाडि़यों को जाने का संकेत करता है। वह आमी नदी पूरी भरकर चल पड़ी।







                वर्तमान में उस व्यक्ति का एक पूरा मौहल्ला बना हुआ है, नाम है "मौहल्ला कबीर करम"

           (यह आमी नदी वहाँ पर अभी भी विद्यमान है)
सबने जय जयकार की। साहेब ने कहा कि एक चदद्र नीचे बिछाओ, एक मैं ऊपर ओढ़ूँगा।(क्योंकि वे जानी जान तो थे) कहने लगे कि ये सेना कैसे ला रखी है तुमने?अब बिजली खाँ पठान और बीर सिंह बघेला आमने-सामने खड़े हैं। उन्होंने तो मुँह लटका लिया और बोले नहीं। वे दूसरे हिन्दु और मुसलमान बिनानाम वाले बोले कि जी हम आपका अंतिम संस्कार अपनी विधि से करेंगे।दूसरे कहते हैं कि हम अपनी विधि से करेंगे। चढा ली बाहें, उठा लिए हथियार तथा कहने लगे कि आ जाओ। कबीर साहेब ने कहा कि नादानों क्यामैंने यही शिक्षा दी थी 120 वर्ष तक। इस मिट्टी का तुम क्या करोगे? चाहे फूंक दो या गाड दो, इससे क्या मिलेगा? तुमने क्या शिक्षा ली मेरे से? सुनलो यदि झगड़ा कर लिया तो मेरे से बुरा नहीं होगा। वे जानते थे कि ये कबीर साहेब परम शक्ति युक्त हैं। यदि कुछ कह दिया तो बात बिगड़जाएगी। शांत हो गये पर मन में यही थी कि शरीर छोड़ने दो, हमने तो यही करना है। वे तो जानी जान थे। उस दिन गृहयुद्ध शुरू हो जाता, सत्यानाश हो जाता, यदि साहेब अपनी कृपा न बख्सते। कबीर साहेब ने कहा कि एक काम कर लेना तुम मेरे शरीर को आधा-आधा काट लेना। परन्तु लड़ना मत।ये मेरा अंतिम आदेश सुन लो और मानो, इसमें जो वस्तु मिले उसको आधा आधा कर लेना।

          "लोका मति के भोरा रे, जो काशी तन तजै कबीरा,
                       तौ रामहि कौन निहोरा रे"
   
महिना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी वि. स. 1575 (एक हजार पाँच सौ पचहतर) सन् 1518 को कबीर साहेब ने एक चद्दर नीचे बिछाई और एक ऊपर ओढ़ ली। कुछ फूल कबीर साहेब के नीचे वालीचद्दर पर दो इंच मोटाई में बिछा दिये। थोड़ी सी देर में आकाश वाणी हुई कि मैं तो जा रहा हूँ सतलोक में (स्वर्ग से भी ऊपर)। देख लो चद्दर उठाकर इसमें कोई शव नहीं है। जो वस्तु है वे आधी-आधी ले लेना परन्तु लड़ना नहीं। जब चदद्र उठाई तो सुगंधित फूलों का ढेर शव के समान ऊँचा मिला।




तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छांडी पदहि समाये।
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं।।

                            ‘‘बीर देव सिंह बघेल और बिजली खाँ पठान एक दूसरे के सीने से लगकर ऐसे रोने लगे जैसे कि बच्चों की माँ मर जाती है। फिर तो वहाँ पर रोहा राहट मच गया। हिन्दु और मुसलमानों का प्यार सदा के लिए अटूट बनगया। एक दूसरे को सीने से लगा कर हिन्दू और मुसलमान रो रहे थे। कहने लगे कि हम समझे नहीं। ये तो वास्तव में अल्लाह आए हुए थे। और ऊपरआकाश में प्रकाश का गोला जा रहा था। तो वहाँ मगहर में दोनों धर्मों (हिन्दुओं तथा मुसलमानों) ने एक-एक चद्दर तथा आधे-आधे सुगंधित फूल लेकर सौ फूट के अंतर पर एक-एक यादगार भिन्न-भिन्न बनाई ,जो आज भी विद्यमान है तथा कुछ फूल लाकर कांशी में जहाँ कबीर साहेब एक चबूतरे(चौरा) पर बैठकर सतसंग किया करते वहाँ कांशी चौरा नाम से यादगार बनाई। अब वहाँ पर बहुत बड़ा आश्रम बना हुआ है। मगहर में दोनों यादगारों के बीच में एक साझला द्वार भी है आपसमें कोई भेद-भाव नहीं है।

चदरि फूल बिछाये सतगुरु , देखें सकल जिहाना हो ।
 च्यारि दाग से रहत जुलहदी , अविगत अलख अमाना हो ।।



परमात्मा कबीर जी के मगहर से सशरीर जाने के प्रमाण को मलूक दास जी भी प्रमाणित करते हुए कहते हैं:-


काशी तज गुरु मगहर आए, दोनों दीन के पीर,
कोई गाड़े कोई अग्न जरावे, ढूंढा ना पाया शरीर ।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।
दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।


 अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से

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