Thursday, 28 May 2020

वास्तविक सृष्टि रचना

सुक्ष्म वेद से निष्कर्ष रूप सष्टी रचना का वर्णन


प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सृष्टी की रचना को पढेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, परन्तु सर्व पवित्रा सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़ कर दाँतों तले उँगली दबाऐंगे कि यह वास्तविक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथ पढ़ते रहिए तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखिए।

 आप की एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा। 


पवित्रात्माऐं कृप्या सत्यनारायण(अविनाशी प्रभु/सतपुरुष) द्वारा रची सृष्टी रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़ें।

1. पूर्ण ब्रह्म :- इस सृष्टी रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु),अलख पुरुष-अलख लोक का स्वामी

 (प्रभु), अगम पुरुष-अगम लोक कास्वामी 

(प्रभु) तथा अनामी पुरुष-अनामी अकह लोक का स्वामी 

(प्रभु) तो एकही पूर्ण ब्रह्म है,

 जो वास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-2 रूप धारण करकेअपने चारों लोकों में रहता है। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्मण्ड आते हैं।

2. परब्रह्म :- यह केवल सात संख ब्रह्मण्ड का स्वामी (प्रभु) है। यहअक्षर पुरुष भी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्मण्ड भी वास्तव मेंअविनाशी नहीं है।


3. ब्रह्म :- यह केवल इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी (प्रभु) है। इसे क्षरपुरुष, ज्योति निरंजन, काल आदि उपमा से जाना जाता है। यह तथा इसकेसर्व ब्रह्मण्ड नाशवान हैं।(उपरोक्त तीनों पुरूषों (प्रभुओं) का प्रमाण पवित्रा श्री मद्भगवत गीताअध्याय 15 श्लोक 16.17 में भी है।)


4. ब्रह्मा :- ब्रह्मा इसी ब्रह्म का ज्येष्ठ पुत्र है, विष्णु मध्य वाला पुत्र है तथा शिव अंतिम तीसरा पुत्र है।


 ये तीनों ब्रह्म के पुत्र केवल एक ब्रह्मण्ड में एक विभाग (गुण) के स्वामी (प्रभु) हैं तथा नाशवान हैं।

सर्व प्रथम केवल एक स्थान ‘अनामी (अनामय) लोक‘ था। जिसे अकहलोक भी कहा जाता है, पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था।उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है। सभीआत्माऐं उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी। इसी कविर्देव काउपमात्मक (पदवी का) नाम अनामी पुरुष है (पुरुष का अर्थ प्रभु होता है। प्रभुने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुषही पड़ा है।) अनामी पुरूष के एक रोम कूप का प्रकाश संख सूर्यों की रोशनीसे भी अधिक है।
विशेष :- जैसे किसी देश के आदरणीय प्रधान मंत्रा जी का शरीर कानाम तो अन्य होता है तथा पद का उपमात्मक (पदवी का) नाम प्रधानमंत्राहोता है।कई बार प्रधानमंत्रा जी अपने पास कई विभाग भी रख लेते हैं। तब जिस भीविभाग के दस्त्तावेजों पर हस्त्ताक्षर करते हैं तो उस समय उसी पद को लिखतेहैं। जैसे गृहमंत्रालय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेगें तो अपने को गृह मंत्रालिखेगें। वहाँ उसी व्यक्ति के हस्त्ताक्षर की शक्ति कम होती है। इसी प्रकारकबीर परमेश्वर (कविर्देव) की रोशनी में अंतर भिन्न-2 लोकों में होताजाता है।ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे केतीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द(वचन)से की। यही पूर्णब्रह्म परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही अगम लोक मेंप्रकट हुआ तथा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अगम लोक का भी स्वामी है तथावहाँ इनका उपमात्मक (पदवी का) नाम अगम पुरुष अर्थात् अगम प्रभु है।इसी अगम प्रभु का मानव सदृश शरीर बहुत तेजोमय है जिसके एक रोम कूपकी रोशनी खरब सूर्य की रोशनी से भी अधिक है।यह पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबिर देव=कबीर परमेश्वर) अलख लोकमें प्रकट हुआ तथा स्वयं ही अलख लोक का भी स्वामी है तथा उपमात्मक(पदवी का) नाम अलख पुरुष भी इसी परमेश्वर का है तथा इस पूर्ण प्रभु कामानव सदृश शरीर तेजोमय (स्वर्ज्योति) स्वयं प्रकाशित है। एक रोम कूप कीरोशनी अरब सूर्यों के प्रकाश से भी ज्यादा है।यही पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यहीहै। इसलिए इसी का उपमात्मक (पदवी का) नाम सतपुरुष (अविनाशी प्रभु)है। इसी का नाम अकालमूर्ति - शब्द स्वरूपी राम - पूर्ण ब्रह्म - परमअक्षर ब्रह्म आदि हैं। इसी सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) का मानव सदृशशरीर तेजोमय है। जिसके एक रोमकूप का प्रकाश करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।इस कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की।
एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की।

एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा। सोलह पुत्रों के नाम हैं।

(1) ‘‘कूर्म’’, (2)‘‘ज्ञानी’’, (3) ‘‘विवेक’’, (4) ‘‘तेज’’, (5) ‘‘सहज’’, (6)‘‘सन्तोष’’, (7)‘‘सुरति’’, (8) ‘‘आनन्द’’, (9) ‘‘क्षमा’’, (10) ‘‘निष्काम’’,(11) ‘जलरंगी‘ (12)‘‘अचिन्त’’, (13) ‘‘प्रेम’’, (14) ‘‘दयाल’’, (15) ‘‘धैर्य’’(16) ‘‘योग संतायन’’ अर्थात् ‘‘योगजीत‘‘

सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सत्यलोक की अन्य रचनाका भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की। अचिन्त ने अक्षर पुरुष (परब्रह्म) कीशब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना। अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया, वहाँ आनन्द आया तथा सो गया। लम्बे समय तक बाहर नहीं आया। तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगानेके लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जललेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डेको मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ दिया। अण्डे की गड़गड़ाहट से अक्षरपुरुष की निंद्रा भंग हुई। उसने अण्डे को क्रोध से देखा जिस कारण से अण्डेके दो भाग हो गए। उसमें से ज्योति निंरजन (क्षर पुरुष) निकला जो आगेचलकर ‘काल‘ कहलाया। इसका वास्तविक नाम ‘‘कैल‘‘ है। तब सतपुरुष(कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत के द्वीपमें रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीपमें रहने लगे (बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई कि कहीं फिर प्रभुता कीतड़फ न बन जाए, क्योंकि समर्थ बिन कार्य सफल नहीं होता) फिर पूर्ण धनी कविर्देव ने सर्व रचना स्वयं की। अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री)शक्ति उत्पन्न की, जिससे सर्व ब्रह्मण्डों को स्थापित किया। इसी कोपराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व आत्माओं को अपने हीअन्दर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर सदृश उत्पन्न किया।
प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा जिसका तेज 16 (सोलह)सूर्यों जैसा मानव सदृश ही है। परन्तु परमेश्वर के शरीर के एक रोम कूपका प्रकाश करोड़ों सूर्यों से भी ज्यादा है। बहुत समय उपरान्त क्षर पुरुष(ज्योति निरंजन) ने सोचा कि हम तीनों (अचिन्त - अक्षर पुरुष - क्षर पुरुष)एक द्वीप में रह रहे हैं तथा अन्य एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। मैं भी साधनाकरके अलग द्वीप प्राप्त करूँगा। उसने ऐसा विचार करके एक पैर पर खड़ाहोकर सत्तर (70) युग तक तप किया।

”आत्माऐं काल के जाल (जन्म-मृत्यु के चक्र)में कैसे फंसी?

“विशेष :- जब ब्रह्म (ज्योति निरंजन) तप कर रहा था हम सभी आत्माऐं,जो आज ज्योति निरंजन के इक्कीस ब्रह्मण्डों में रहते हैं इसकी साधना परआसक्त हो गए तथा अन्तरात्मा से इसे चाहने लगे। अपने सुखदाई प्रभु सत्यपुरूष से विमुख हो गए। जिस कारण से पतिव्रता पद से गिर गए। पूर्ण प्रभुके बार-बार सावधान करने पर भी हमारी आसक्ति क्षर पुरुष से नहीं हटी।{यही प्रभाव आज भी काल सृष्टी में विद्यमान है। जैसे नौजवान बच्चे फिल्मस्टारों (अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों) की बनावटी अदाओं तथा अपने रोजगारउद्देश्य से कर रहे भूमिका पर अति आसक्त हो जाते हैं, रोकने से नहीं रूकते।यदि कोई अभिनेता या अभिनेत्रा निकटवर्ती शहर में आ जाए तो देखें उन नादानबच्चों की भीड़ केवल दर्शन करने के लिए बहु संख्या में एकत्रित हो जाती हैं।‘लेना एक न देने दो‘ रोजी रोटी अभिनेता कमा रहे हैं, नौजवान बच्चे लुट रहेहैं। माता-पिता कितना ही समझाऐं किन्तु बच्चे नहीं मानते। कहीं न कहीं, कभीन कभी, लुक-छिप कर जाते ही रहते हैं।}पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर प्रभु) ने क्षर पुरुष से पूछा कि बोलो क्या चाहतेहो? उसने कहा कि पिता जी यह स्थान मेरे लिए कम है, मुझे अलग से द्वीपप्रदान करने की कृपा करें। हक्का कबीर (सत् कबीर) ने उसे 21 (इक्कीस)ब्रह्मण्ड प्रदान कर दिए। कुछ समय उपरान्त ज्योति निरंजन ने सोचा इसमें कुछ रचना करनी चाहिए। खाली ब्रह्मण्ड(प्लाट) किस काम के। यह विचारकर 70 युग तप करके पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर प्रभु) से रचना सामग्रीकी याचना की। सतपुरुष ने उसे तीन गुण तथा पाँच तत्व प्रदान कर दिए,जिससे ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने अपने ब्रह्मण्डों में कुछ रचना की। फिर सोचाकि इसमें जीव भी होने चाहिए, अकेले का दिल नहीं लगता। यह विचारकरके 64 (चौसठ) युग तक फिर तप किया। पूर्ण परमात्मा कविर् देव केपूछने पर बताया कि मुझे कुछ आत्मा दे दो, मेरा अकेले का दिल नहीं लगरहा। तब सतपुरुष कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि ब्रह्म तेरे तप केप्रतिफल में मैं तुझे और ब्रह्मण्ड दे सकता हूँ, परन्तु मेरी आत्माओं को किसीभी जप-तप साधना के प्रतिफल रूप में नहीं दे सकता। हाँ, यदि कोई स्वेच्छासे तेरे साथ जाना चाहे तो वह जा सकता है। युवा कविर् (समर्थ कबीर) केवचन सुन कर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्मा पहलेसे ही उस पर आसक्त थे। हम उसे चारों तरफ से घेर कर खड़े हो गए।ज्योति निंरजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्मण्ड प्राप्त किए हैं।
वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे? हमसभी हंसों ने जो आज 21 ब्रह्मण्डों में परेशान हैं, कहा कि हम तैयार हैं यदिपिता जी आज्ञा दें तब क्षर पुरुष पूर्ण ब्रह्म महान् कविर् (समर्थ कबीर प्रभु)के पास गया तथा सर्व वार्ता कही। तब कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहाकि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूंगा। क्षर पुरुष तथा परम अक्षरपुरुष (कविरमितौजा) दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए। सत् कविर्देवने कहा कि जो हंस आत्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता है हाथ ऊपर करकेस्वीकृति दे। अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई। किसी नेस्वीकृति नहीं दी। बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा। तत्पश्चात् एक हंसआत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ। फिर तोउसकी देखा-देखी (जो आज काल (ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्मण्डों में फंसी हैं) हमसभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी। परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन सेकहा कि आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृतिदी है मैं उन सर्व हंस आत्माओं को आपके पास भेज दूंगा। ज्योति निरंजनअपने 21 ब्रह्मण्डों में चला गया। उस समय तक यह इक्कीस ब्रह्मण्डसतलोक में ही थे।तत् पश्चात पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़कीका रूप दिया परन्तु स्त्रा इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को (जिन्होंनेज्योति निरंजन (ब्रह्म) के साथ जाने की सहमति दी थी) उस लड़की के शरीरमें प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा (आदि माया/ प्रकृति देवी/दुर्गा) पड़ा तथा सत्य पुरूष ने कहा कि पुत्रा मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदानकर दी है जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना। पूर्ण ब्रह्म कविर्देव(कबीर साहेब) ने अपने पुत्रा सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरुष के पासभिजवा दिया। सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी नेइस बहन के शरीर में उन सर्व आत्माओं को प्रवेश कर दिया है जिन्होंनेआपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी तथा इसको पिता जी नेवचन शक्ति प्रदान की है, आप जितने जीव चाहोगे प्रकृति अपने शब्द सेउत्पन्न कर देगी। यह कह कर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया।युवा होने के कारण लड़की का रंग-रूप निखरा हुआ था। ब्रह्म के अन्दरविषय-वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रकृति देवी के साथ अभद्र गति विधिप्रारम्भ की। तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदानकी हुई शब्द शक्ति है। आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न करदूँगी। आप मैथुन परम्परा शुरु मत करो। आप भी उसी पिता के शब्द सेअण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद मे उत्पन्न हुई हूँ। आप मेरे बड़े भाई हो, बहन-भाई का यह योग महापाप काकारण बनेगा। परन्तु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहींसुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्रा इन्द्री (भग) प्रकृति कोलगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी। उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जतरक्षा के लिए कोई और चारा न देख सुक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजनके खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्णब्रह्म कविर् देव से अपनी रक्षाके लिए याचना की। उसी समय कविर्देव (कविर् देव) अपने पुत्रा योगसंतायन अर्थात् जोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्मके उदर से बाहर निकाला तथा कहा कि ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम‘काल‘ होगा। तेरे तथा तेरे इक्कीस ब्रह्मण्डों में रहने वाले प्राणियों केजन्म-मृत्यु सदा होते रहेंगे। इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरुष होगा तथा एकलाख मानव शरीर धारी प्राणियों को प्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाखउत्पन्न किया करेगा। आप दोनों को इक्कीस ब्रह्मण्ड सहित निष्कासित कियाजाता है। इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्मण्ड विमान की तरह चल पड़े। सहजदास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से सोलह संख कोस (एक कोसलगभग 3 कि. मी. का होता है) की दूरी पर आकर रूक गए।विशेष विवरण - अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है।1. पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसेसतपुरुष, अकालपुरुष, शब्द स्वरूपी राम, परमेश्वर, परम अक्षर ब्रह्म/पुरुषआदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्मण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।2. परब्रह्म जिसे ‘‘अक्षर पुरुष’’ तथा ‘‘ईश्वर’’ भी कहा जाता है। यहवास्तव में अविनाशी नहीं है। यह सात संख ब्रह्मण्डों का स्वामी है।3. ब्रह्म जिसे ज्योति निरंजन, काल, कैल, ईश, क्षर पुरुष तथा धर्मरायआदि नामों से जाना जाता है, जो केवल इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी है। अबआगे इसी ब्रह्म (काल) की सृष्टी के एक ब्रह्मण्ड का परिचय दिया जाएगा,जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगे - ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव।ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्मण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म (क्षरपुरुष) स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप मेंरहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्तिकरता है। उनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ही रखता है। जो ब्रह्म कापुत्रा ब्रह्मा है वह एक ब्रह्मण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोकतथा पाताल लोक) में एक रजोगुण विभाग का मंत्रा (स्वामी) है। इसेत्रिलोकीय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है उसेमहाब्रह्मा व ब्रह्मलोकीय ब्रह्मा कहा है। इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव,महाशिव, महाविष्णु भी कहा है।श्री विष्णु पुराण में प्रमाण :- चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230.231 पर श्रीब्रह्मा जी ने कहा :- जिस अजन्मा, सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य,अन्त, स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते (श्लोक 83)जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जोपुरूष रूप है तथा जो रूद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनन्त रूपसे सम्पूर्ण जगत् को धारण करता है। (श्लोक 86 )

“श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी व श्री शिव जी के माता-पिता कौन हैं”


काल (ब्रह्म) ने प्रकृति (दुर्गा) से कहा कि अब मेरा कौन क्या बिगाडेगा? मन मानी करूंगा प्रकृति ने फिर प्रार्थना की कि आप कुछ शर्म करो। प्रथम तो आप मेरे बड़े भाई हो, क्योंकि उसी पूर्ण परमात्मा (कविर्देव)की वचन शक्ति से आप की (ब्रह्म की) अण्डे से उत्पत्ति हुई तथा बाद में मेरी उत्पत्ति उसी परमेश्वर के वचन से हुई है। दूसरे मैं आपके पेट से बाहर निकली हूँ, मैं आपकी बेटी हुई तथा आप मेरे पिता हुए। इन पवित्रा नातों में बिगाड़ करना महापाप होगा। मेरे पास पिता की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है, जितने प्राणी आप कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी। ज्योति निरंजन ने दुर्गा की एक भी विनय नहीं सुनी तथा कहा कि मुझे जो सजा मिलनी थी मिल गई, मुझे सतलोक से निष्कासित कर दिया। अब मनमानी करूंगा। यह कह कर काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने प्रकृति के साथ जबरदस्ती शादी की तथा तीन पुत्रों (रजगुण युक्त - ब्रह्मा जी, सतगुण युक्त - विष्णु जी तथा तमगुणयुक्त - शिव शंकर जी) की उत्पत्ति की।
जवान होने तक तीनों पुत्रों को दुर्गा के द्वारा अचेत करवा देता है, फिर युवा होने पर श्री ब्रह्मा जी को कमल के फूल पर, श्री विष्णु जी को शेष नाग की शैय्या पर तथा श्री शिव जी को कैलाश पर्वत पर सचेत करके इक्ट्ठे कर देता है। तत्पश्चात् प्रकृति (दुर्गा)द्वारा इन तीनों का विवाह कर दिया जाता है तथा एक ब्रह्मण्ड में तीन लोकों(स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक) में एक-एक विभाग के मंत्रा (प्रभु)नियुक्त कर देता है। जैसे श्री ब्रह्मा जी को रजोगुण विभाग का तथा विष्णु जी को सतोगुण विभाग का तथा श्री शिव शंकर जी को तमोगुण विभाग का तथास्वयं गुप्त (महाब्रह्मा - महाविष्णु - महाशिव) रूप से मुख्य मंत्रा पद को संभालता है। एक ब्रह्मण्ड में एक ब्रह्मलोक की रचना की है। उसी में तीनगुप्त स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान स्थान है जहाँ पर यह ब्रह्म (काल)स्वयं महाब्रह्मा (मुख्यमंत्रा) रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महासावित्रा रूप में रखता है। इन दोनों के संयोग से जो पुत्रा इस स्थान परउत्पन्न होता है वह स्वतः ही रजोगुणी बन जाता है। दूसरा स्थान सतोगुणप्रधान स्थान बनाया है। वहाँ पर यह क्षर पुरुष स्वयं महाविष्णु रूप बना कररहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महालक्ष्मी रूप में रख कर जो पुत्रा उत्पन्नकरता है उसका नाम विष्णु रखता है, वह बालक सतोगुण युक्त होता है तथातीसरा इसी काल ने वहीं पर एक तमोगुण प्रधान क्षेत्रा बनाया है। उसमें यहस्वयं सदाशिव रूप बनाकर रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महापार्वतीरूप में रखता है। इन दोनों के पति-पत्नी व्यवहार से जो पुत्रा उत्पन्न होताहै उसका नाम शिव रख देते हैं तथा तमोगुण युक्त कर देते हैं।
(प्रमाण के लिए देखें पवित्र श्री शिव महापुराण, विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 24.26 जिस में ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र तथा महेश्वर से अन्य सदाशिव है
 तथा रूद्र संहिता अध्याय6 तथा 7ए 9 पृष्ठ नं. 100 से, 105 तथा 110 पर अनुवाद कर्ता श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार, गीता प्रैस गोरख पुर से प्रकाशित तथा
पवित्र श्रीमद्देवीमहापुराणतीसरा स्कंद पृष्ठ नं. 114 से 123 तक, गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित,जिसके अनुवाद कर्ता हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार चिमन लाल गोस्वामी)
फिर इन्हीं को धोखे में रख कर अपने खाने के लिए जीवों की उत्पत्ति श्री ब्रह्मा जी द्वारा तथा स्थिति (एक-दूसरे को मोह-ममता में रख कर काल जाल में रखना) श्री विष्णु जी से तथा संहार(क्योंकि काल पुरुष को शापवश एकलाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर से मैल निकाल कर खाना होता है उसके लिए इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में एक तप्तशिला है जो स्वतः गर्म रहती है, उस पर गर्म करके मैल पिंघला कर खाता है, जीव मरते नहीं परन्तु कष्ट असहनीय होता है, फिर प्राणियों को कर्म आधार पर अन्य शरीर प्रदानकरता है) श्री शिव जी द्वारा करवाता है
जैसे किसी मकान में तीन कमरे बने हों। एक कमरे में अश्लील चित्रा लगे हों। उस कमरे में जाते ही मन में वैसे ही मलिन विचार उत्पन्न हो जाते हैं। दूसरे कमरे में साधु-सन्तों, भक्तों केचित्रा लगे हों तो मन में अच्छे विचार, प्रभु का चिन्तन ही बना रहता है। तीसरे कमरे में देश भक्तों व शहीदों के चित्रा लगे हों तो मन में वैसे ही जोशीले विचार उत्पन्न हो जाते हैं। ठीक इसी प्रकार ब्रह्म (काल) ने अपनी सूझ-बूझ से उपरोक्त तीनों गुण प्रधान स्थानों की रचना की हुई है।

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