Saturday, 11 July 2020

काल का जाल




काल जाल को समझ गए तो मुक्ति का मार्ग खुल जायेगा !

प्रश्न :- काल कौन है ?
उत्तर :- काल इस दुनियाँ का राजा है, उसका ॐ मंत्र है, वह दुर्गाजी का पति है और ब्रह्मा विष्णु शिव का पिता है !
ॐ नमः शिवाय
महा काल


प्रश्न :- काल के पास कितने ब्रह्मांड है और उसका नाम काल क्यों है ?7
उत्तर :- 21 ब्रह्मांड का मालिक है काल और वह सबकी मृत्यु करता है इसलिए उसका नाम काल है !!


प्रश्न :- वह क्यों मृत्यु करता है लोगों की और 84 लाख योनियाँ किसने और क्यों बनाई ?
उत्तर :- काल को श्राप लगा हुआ है रोज एक लाख मनुष्य की आत्मा का मैल
 खाना है, मनुष्य ही उसका भोजन है इसलिए वह मृत्यु करता है और कोई मुक्त न हो जाये इसलिए आत्मा को 84 लाख योनियों में कैद करके कर्मानुसार सज़ा भी देता है !!

प्रश्न :- मरने के बाद इंसान का क्या होता है ?
उत्तर :- मरने के बाद इंसान की आत्मा को काल गर्म तवे पर डालता है और जिंदगी भर का खाया पिया जो आत्मा से लिपटा चिपटा रहता है उस गन्दगी को निकाल के खाता है, आत्मा को असहनीय पीड़ा होती पर इसको कोई परवाह नहीं जैसे कसाई बकरे पालता है वैसे इंसान को काल पालता है !!

प्रश्न :- क्या काल अपने पुत्र ब्रह्मा विष्णु शिव को भी खाता है ??
उत्तर :- हाँ, जैसे नागिन अपने ही बच्चों को जन्म देकर खा जाती है वैसे ही काल भी खा जाता है !!


प्रश्न :- काल चक्र से कैसे निकले ?
उत्तर :- काल को जिसने बनाया है उस भगवान की पूजा करके और काल का कर्ज़ चुका के काल चक्र से मुक्त हो सकते है !! 

प्रश्न :- काल को किसने बनाया और काल का कर्ज़ कैसे चुकेगा ?
उत्तर :- काल को सृष्टि सृजनहार, सबका मालिक एक ने बनाया है और उसके प्रतिनिधि संत जिसे तत्वदर्शी कहा गया है गीता 04/34 में उसके अनुसार बताई गयी भक्ति साधना और मंत्र जाप से , काल का कर्ज़ चुकता हो जाएगा और मुक्ति भी मिल जाएगी !!

प्रश्न :- सबका मालिक, सृष्टि सृजनहार जो मुक्तिदाता है वह कौन है और उनके प्रतिनिधि तत्वदर्शी संत कौन है ?
उत्तर :- इस प्रश्न के जवाब के लिए आपको खुद कष्ट करना पड़ेगा, रोज शाम 7:30 बजे साधना टीवी देखिए और हमसे हमारे whatsapp नंम्बर 9953984946 पर संपर्क करिये 
                              या 
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मुक्तिबोध
भगवान quotes

प्रश्न :- मुक्त होकर कहाँ जाएंगे ?
उत्तर :- सतलोक, सृष्टि सृजनहार के पास !!

प्रश्न :- तो क्या सृष्टि की रचना दुर्गाजी और ब्रह्माजी ने नहीं की ?
उत्तर :- नहीं

प्रश्न :- काल का प्रमाण कहाँ है और क्या काल की भी मृत्यु होती है ?
उत्तर :- काल का प्रमाण गीता 11/32 में है जिसने स्वयं कहा है - अर्जुन मैं काल हूँ और सबको नष्ट करने को प्रकट हुआ हूँ!! 
काल की भी मृत्यु होती है प्रमाण गीता 04/05 - अर्जुन मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके है उनको तू नहीं जानता मैं जानता हूँ !!

प्रश्न :- पर गीता का ज्ञान तो श्री कृष्ण ने दिया था ना ?
उत्तर :- नहीं, जब अर्जुन ने हथियार डाल दिये थे तब काल श्री कृष्ण जी के शरीर में भूत की तरह घुस गया और अर्जुन का Mind Wash करके युद्ध करा दिया और रथ का पहिया उठा के कृष्ण जी की प्रतिज्ञा भी तोड़ दी कि जब कृष्ण जी पहले ही बोले थे कि मैं युद्ध नहीं करूंगा !!
काल का जाल
गीता उपदेश


प्रश्न :- काल को किसने देखा है और वह कहां रहता है ?
उत्तर :- अर्जुन और संजय ने काल को देखा है और काल छुप के अपने 21वें ब्रह्मांड के अंतिम छोर पे रहता है जहाँ से सतलोक को मुक्ति को रास्ता जाता है !!
और वह किसी को भी अपने वास्तविक रूप में दर्शन नहीं देता किसी को ब्रह्मा किसी को विष्णु किसी को शिव रूप में दर्शन दे कर भोले जीवों को गुमराह कर देता है !!

प्रश्न :- काल और महाकाल में क्या अंतर है ?
उत्तर :- महाकाल कोई भी नहीं है सिर्फ़ काल है पर लोगों ने अतिशयोक्ति कर दी है बेवजह अज्ञानता में !!

प्रश्न :- काल और यमराज में क्या अंतर है ?
उत्तर :- काल मालिक है और यमराज उसका नौकर !!

प्रश्न :- ब्रह्मा विष्णु शिव दुर्गाजी गणेश जी और देवी देवताओं की भक्ति से मुक्ति हो सकती है ?
उत्तर :- नहीं , क्योंकि ये सब खुद काल की कैद में है !!

प्रश्न :- ब्रह्मा विष्णु शिव, अजर अमर है ??
उत्तर :- नहीं, प्रमाण - देवीभगवद पुराण, page 123, तीसरा स्कंद, गीताप्रेस, गोरखपुर, पढ़ लो !!

प्रश्न :- क्या शिव जी महाकाल है ?
उत्तर :- नहीं, काल तो शिव जी को भी मार देता है, तो वे महाकाल कैसे हो सकते है !!

प्रश्न :- काल और शैतान में क्या अंतर है ??
उत्तर :- हिन्दू काल बोलते है मुस्लिम शैतान पर दोंनो एक ही है !!

प्रश्न :- मुस्लिम लोगों की मुक्ति कैसे होगी ??
उत्तर :- कुरान में बाख़बर के बताए अनुसार इबादत से मुक्ति होगी !! 

प्रश्न :- बाख़बर कौन है कहाँ मिलेगा ??
उत्तर :- इस प्रश्न के जवाब के लिए आपको खुद कष्ट करना पड़ेगा, रोज शाम 7:30 बजे साधना टीवी देखिए और हमसे हमारे whatsapp नंम्बर 9953984946 पर संपर्क करिये
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प्रश्न :- लोगों को धर्मो और सम्प्रदायों में किसने और क्यों बाटा ??
उत्तर :- आज से 05 हजार साल पहले केवल मानव धर्म था और कर्म आधार पर जातियां थी --
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र 
धर्म आधार पर हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई में काल ने कलयुग में बाटा है ताकि कोई मुक्त न हो जाये और आपस में ही लड़ते रहे क्योंकि कलयुग में ही हमेशा इसी वक़्त मुक्ति होती है !!

प्रश्न :- क्या Corona भी काल की देन है और Corona की मौत से कौन बचा सकता है ?
उत्तर :- हाँ Corona काल की मर्जी है और तत्वदर्शी संत या बाख़बर Corona मौत से आपको बचा सकता है !!
कोरोना
कोरोना संदेश


प्रश्न :- मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है ??
उत्तर :- सभी जानते है only मुक्ति के लिए मानव जीवन मिलता है नहीं तो काल का भोजन बनना पड़ेगा और नर्क का कष्ट के बाद 84 लाख योनियों में दुर्गति होगी !!

प्रश्न :- इस विषय पर विस्तृत जानकारी कहाँ मिलेगी ??
उत्तर :- अधिक जानकारी के लिए, "ज्ञान गंगा" पुस्तक निः शुल्क प्राप्त करें, अपना पूरा नाम पता और mobile नंम्बर हमें whatsapp करें - +91-74968018

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Saturday, 4 July 2020

सच जो आप जानना चाहते हैं


अनादि काल से ही मानव परम शांति, सुख व अमृत्व की खोज में लगा हुआ है। वह अपने सामर्थ्य सामर्थ्य के अनुसार प्रयत्न करता आ रहा है लेकिन उसकी यह चाहत कभी पूर्ण नहीं हो पा रही है। ऐसा इसलिए है कि उसे इस चाहत को प्राप्त करने के मार्ग का पूर्ण ज्ञान नहीं है। सभी प्राणी चाहते हैं कि कोई कार्य न करना पड़े, खाने को स्वादिष्ट भोजन मिले, पहनने को सुन्दर वस्त्र मिलें, रहने को आलीशान भवन हों, घूमने के लिए सुन्दर पार्क हों, मनोरंजन करने के लिए मधुर-2 संगीत हों, नांचे-गांए, खेलें-कूदें, मौज-मस्ती मनांए और कभी बीमार न हों, कभी बूढ़े न हों और कभी मृत्यु न होवे आदि-2, परंतु जिस संसार में हम रह रहे हैं यहां न तो ऐसा कहीं पर नजर आता है और न ही ऐसा संभव है। क्योंकि यह लोक नाशवान है, इस लोक की हर वस्तु भी नाशवान है और इस लोक का राजा ब्रह्म काल है जो एक लाख मानव सूक्ष्म शरीर खाता है। उसने सब प्राणियों को कर्म-भर्म व पाप-पुण्य रूपी जाल में उलझा कर तीन लोक के पिंजरे में कैद किए हुए है। कबीर साहेब कहते हैं कि :--

कबीर, तीन लोक पिंजरा भया, पाप पुण्य दो जाल।
सभी जीव भोजन भये, एक खाने वाला काल।।
गरीब, एक पापी एक पुन्यी आया, एक है सूम दलेल रे।
बिना भजन कोई काम नहीं आवै, सब है जम की जेल रे।।


वह नहीं चाहता कि कोई प्राणी इस पिंजरे रूपी कैद से बाहर निकल जाए। वह यह भी नहीं चाहता कि जीव आत्मा को अपने निज घर सतलोक का पता चले। इसलिए वह अपनी त्रिगुणी माया से हर जीव को भ्रमित किए हुए है। फिर मानव को ये उपरोक्त चाहत कहां से उत्पन्न हुई है? यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां हम सबने मरना है, सब दुःखी व अशांत हैं। जिस स्थिति को हम यहां प्राप्त करना चाहते हैं ऐसी स्थिति में हम अपने निज घर सतलोक में रहते थे। काल ब्रह्म के लोक में स्व इच्छा से आकर फंस गए और अपने निज घर का रास्ता भूल गए। कबीर साहेब कहते हैं कि -

इच्छा रूपी खेलन आया, तातैं सुख सागर नहीं पाया।

इस काल ब्रह्म के लोक में शांति व सुख का नामोनिशान भी नहीं है। त्रिगुणी माया से उत्पन्न काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, राग-द्वेष, हर्ष-शोक, लाभ-हानि, मान-बड़ाई रूपी अवगुण हर जीव को परेशान किए हुए हैं। यहां एक जीव दूसरे जीव को मार कर खा जाता है, शोषण करता है, ईज्जत लूट लेता है, धन लूट लेता है, शांति छीन लेता है। यहां पर चारों तरफ आग लगी है। यदि आप शांति से रहना चाहोगे तो दूसरे आपको नहीं रहने देंगे। आपके न चाहते हुए भी चोर चोरी कर ले जाता है, डाकू डाका डाल ले जाता है, दुर्घटना घट जाती है, किसान की फसल खराब हो जाती है, व्यापारी का व्यापार ठप्प हो जाता है, राजा का राज छीन लिया जाता है, स्वस्थ शरीर में बीमारी लग जाती है अर्थात् यहां पर कोई भी वस्तु सुरक्षित नहीं। राजाओं के राज, ईज्जतदार की ईज्जत, धनवान का धन, ताकतवर की ताकत और यहां तक की हम सभी के शरीर भी अचानक छीन लिए जाते हैं। माता-पिता के सामने जवान बेटा-बेटी मर जाते हैं, दूध पीते बच्चों को रोते-बिलखते छोड़ कर मात-पिता मर जाते हैं, जवान बहनें विधवा हो जाती हैं और पहाड़ से दुःखों को भोगने को मजबूर होते हैं। विचार करें कि क्या यह स्थान रहने के लायक है ? लेकिन हम मजबूरी वश यहां रह रहे हैं क्योंकि इस काल के पिंजरे से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता और हमें दूसरों को दुःखी करने की व दुःख सहने की आदत सी बन गई। 

यदि आप जी को इस लोक में होने वाले दुःखों से बचाव करना है तो यहां के प्रभु काल से परम शक्ति युक्त परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) की शरण लेनी पड़ेगी। जिस परमेश्वर का खौफ काल प्रभु को भी है। जिस के डर से यह उपरोक्त कष्ट उस जीव को नहीं दे सकता जो पूर्ण परमात्मा अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म (सत्य पुरूष) की शरण पूर्ण सन्त के बताए मार्ग से ग्रहण करता है। वह जब तक संसार में भक्ति करता रहेगा, उसको उपरोक्त कष्ट आजीवन नहीं होते। जो व्यक्ति इस पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’’ को पढ़ेगा उसको ज्ञान हो जाएगा कि हम अपने निज घर को भूल गए हैं। वह परम शांति व सुख यहां न होकर निज घर सतलोक में है जहां पर न जन्म है, न मृत्यु है, न बुढ़ापा, न दुःख, न कोई लड़ाई-झगड़ा है, न कोई बिमारी है, न पैसे का कोई लेन-देन है, न मनोरंजन के साधन खरीदना है। वहां पर सब परमात्मा द्वारा निःशुल्क व अखण्ड है।
इसकी सही सही जानकारी पूर्ण सतगुरु ही दे सकता है और वर्तमान में पूर्ण सद्गुरु संत रामपाल जी महाराज है।





पूर्ण गुरु के लक्षण
पूर्ण संत सर्व वेद-शास्त्रों का ज्ञाता होता है। 
दूसरे वह मन-कर्म-वचन से यानि सच्ची श्रद्धा से केवल एक परमात्मा समर्थ की भक्ति स्वयं करता है तथा अपने अनुयाईयों से करवाता है। तीसरे वह सब अनुयाईयों से समान व्यवहार (बर्ताव) करता है। चौथे उसके द्वारा बताया भक्ति कर्म वेदों में वर्णित विधि के अनुसार होता है। पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी से नाम उपदेश लें, अपना कल्याण कराएं।

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Friday, 26 June 2020

कहानी रंका बंका की


          रंका बंका का प्रभु पर अटल विश्वास

एक दिन रंका तथा बंका दोनों पति-पत्नी गुरू जी के सत्संग में गए हुए थे जो कुछ दूरी पर किसी भक्त के घर पर चल रहा था। 
True God
सच्चा सतगुरु कौन?

बेटी अवंका झोंपड़ी के बाहर एक चारपाई पर बैठी थी। 
अचानक झोंपड़ी में आग लग गई। सर्व सामान जलकर राख हो गया। अवंका दौड़ी-दौड़ी सत्संग में गई। गुरू जी प्रवचन कर रहे थे। अवंका ने कहा कि माँ! झोंपड़ी में आग लग गई। सब जलकर राख हो गया। सब श्रोताओं का ध्यान अवंका की बातों पर हो गया। माँ बंका जी ने पूछा कि क्या बचा है? अवंका ने बताया कि केवल एक खटिया बची है जो बाहर थी। माँ बंका ने कहा कि बेटी जा, उस खाट को भी उसी आग में डाल दे और आकर सत्संग सुन ले। कुछ जलने को रहेगा ही नहीं तो सत्संग में भंग ही नहीं पड़ेगा। बेटी सत्संग हमारा धन है। यदि यह जल गया तो अपना सर्वनाश हो जाएगा। लड़की वापिस गई और उस चारपाई को उठाया और उसी झोंपड़ी की आग में डालकर आ गई और सत्संग में बैठ गई। सत्संग के पश्चात् अपने ठिकाने पर गए। वहाँ एक वृक्ष था। उसके नीचे वह सामान जो जलने का नहीं था जैसे बर्तन, घड़ा आदि-आदि पड़े थे। उस वृक्ष के नीचे बैठकर भजन करने लगे। उनको पता नहीं चला कि कब सो गये? सुबह जागे तो उस स्थान पर नई झोंपड़ी लगी थी। सर्व सामान रखा था। आकाशवाणी हुई कि भक्तो! आप परीक्षा में सफल हुए। यह भेंट मेरी ओर से है, इसे स्वीकार करो। तीनों सदस्य उठकर पहले आश्रम में गए और झोंपड़ी जलने तथा पुनः बनने की घटना बताई तथा कहा कि हे प्रभु! हम तो नामदेव की तरह ही आपको कष्ट दे रहे हैं। हम उसको नसीहत देते थे। आज वही मूर्खता हमने कर दी। सतगुरू जी ने कहा, हे भक्त परिवार! नामदेव उस समय मर्यादा में रहकर भक्ति नहीं कर रहा था। फिर भी उसकी पूर्व जन्म की भक्ति के प्रतिफल में उसके लिए अनहोनी करनी पड़ती थी जो मुझे कष्ट होता था। आप मर्यादा में रहकर भक्ति कर रहे हो। इसलिए आपकी आस्था परमात्मा में बनाए रखने के लिए अनहोनी की है। आग भी मैंने लगाई थी, आपका दृढ़ निश्चय देखकर झोंपड़ी भी मैंने बनाई है। आप उसे स्वीकार करें।
परमात्मा की महिमा भक्त समाज में बनाए रखने के लिए ये परिचय (चमत्कार देकर परमात्मा की पहचान) देना अनिवार्य है। आपकी झोंपड़ी जीर्ण-शीर्ण थी। आप भक्ति में भंग होने के भय से नई बनाने में समय व्यर्थ करना नहीं चाहते थे। मैं आपके लिए पक्का मकान भी बना सकता हूँ। स्वर्ण का भी बना सकता हूँ क्योंकि आप प्रत्येक परीक्षा में सफल रहे हो।
उस दिन रास्ते में धन मैंने ही डाला था। नामदेव मेरे साथ था। आप उस कुटी में रहें और परमात्मा की भक्ति करें। रंका-बंका ने उस मर्यादा का पालन किया :-

कबीर, गुरू गोविंद दोनों खड़े, किसके लागूं पाय। 
बलिहारी गुरू आपणा, गोविन्द दियो बताय।।

आकाशवाणी को परमात्मा की आज्ञा माना, परंतु गुरू जी के पास आकर गुरू जी की क्या आज्ञा है? यह गुरू पर बलिहारी होना है। गोविन्द (प्रभु) की आज्ञा स्वीकार्य नहीं हुई।
गुरू की आज्ञा का पालन करके यहाँ भी परीक्षा में खरे उतरे। उस गाँव के व्यक्तियों ने भक्त रंका की कुटिया जलती तथा जलकर राख हुई देखी थी। सुबह नई और बड़ी जिसमें दो कक्ष थे, बनी देखी तो पूरा गाँव देखने आया। आसपास के क्षेत्र के स्त्री-पुरूष भी देखने आए। रंका-बंका की महिमा हुई तथा उनके गुरू जी की शरण में बहुत सारे गाँव तथा आसपास के व्यक्ति आए और अपना कल्याण करवाया।
God have form
Creator of the universe


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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
भगवान कौन है, कहाँ रहता है, किसने देखा है, कैसे मिलता है और कहां प्रमाणित है ?
Who is God, where does he live, Who has seen him, How to meet him and where is the proof ?

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गॉड कौन है, कहाँ रहता है, किसने देखा है, कैसे मिलता है और कहां प्रमाणित है ?
Who is God, where does he live, Who has seen him, How to meet him and where is the proof ?

ईसाई धर्म को मानने वालों के लिए जवाब यहां नीचे है, जवाब पढ़ने के लोए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 👇👇
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अल्लाह कौन है, कहाँ रहता है, किसने देखा है, कैसे मिलता है और कहां प्रमाणित है ?
Who is Allah, where does he live, Who has seen him, How to meet him and where is the proof ?

मुस्लिम धर्म को मानने वालों के लिए जवाब यहां नीचे है, जवाब पढ़ने के लोए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 👇👇
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वाहे गुरु कौन है, कहाँ रहता है, किसने देखा है, कैसे मिलता है और कहां प्रमाणित है ?
Who is Wahe Guru, where does he live, Who has seen him, How to meet him and where is the proof ?

सिख धर्म को मानने वालों के लिए जवाब यहां नीचे है, जवाब पढ़ने के लोए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 👇👇
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Meat eater are sinner

                मांस खाना पाप

अल्लाह/प्रभु ने हम मनुष्यों के खाने के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं, मांस खाने का आदेश नहीं दिया।

meat eater

                          Don't eat meat


एक तरफ तो आप भक्ति करते हो, और दूसरी तरफ आप बेजुबान निर्दोष जानवरों की हत्या कर उनका मांस खाते हो। सभी जीव परमात्मा की प्यारी आत्मा है, तो फिर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति कैसे होगी?जीव हिंसा करे,प्रकट पाप सिर होय।निगम पुनि ऐसे पाप ते, भिस्त गया ना कोय।परमात्मा कबीर जी कहते हैं कि जींस हिंसा करने से पाप ही लगता है। ऐसा महापाप करके भिस्त (स्वर्ग) कोई नहीं गया। तो फिर हे भोले मानव फिर ऐसा महापाप क्यों करता है।मास मछलियां खात है, सुरापान से हेत। ते नर नरकै जाएंगे, मात पिता समेत।।परमेश्वर कबीर जी कहते हैं की जो  जीव हत्या करता है,मांस खाते हैं, वह अपराधी आत्मा मृत्यु उपरांत नरक में जाएंगे, साथ ही मात-पिता भी नरक में जाएंगे।

 कबीर, तिलभर मछली खायके, कोटि गऊ दे दान। काशी करौंत ले मरे, तो भी नरक निदान।।
तिल के समान भी मछली खाने वाले चाहे करोड़ो गाय दान कर लें, चाहे काशी कारोंत में सिर कटा ले वे नरक में अवश्य जाएंगे

आज़ का मानव समाज मांस खाकर महापाप का भागी बन रहा है।कभी सोचा है कि, अगर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति होती, तो सबसे पहले मांसाहारी जानवरों को होती, जो केवल मांस ही खाते हैं।मांस खाकर आप परमात्मा के बनाएं विधान को तोड़कर परमात्मा के दोषी बन रहे हो। ऐसा करने वाले को नरक में डाला जाता है।

Be vegetarian
What is the benifit of eating vegetarian food


गरीब, जीव हिंसा जो करते हैं, या आगे क्या पाप। कंटक जुनी जिहान में, सिंह भेड़िया और सांप।।
जो जीव हिंसा करते हैं उससे बड़ा पाप नहीं है। जीव हत्या करने वाले वे करोड़ो जन्म शेर, भेड़िया और साँप के पाते हैं।कबीर-माँस भखै औ मद पिये, धन वेश्या सों खाय। जुआ खेलि चोरी करै, अंत समूला जाय।।जो व्यक्ति माँस भक्षण करते हैं, शराब पीते हैं, वैश्यावृति करते हैं। जुआ खेलते हैं तथा चोरी करते हैं वह तो महापाप के भागी हैं। जो व्यक्ति माँस खाते हैं वे नरक के भागी हैं।कबीर परमात्मा कहते हैं माँस तो कुत्ते का आहार है, मनुष्य शरीर धारी के लिए वर्जित है।कबीर-यह कूकर को भक्ष है, मनुष देह क्यों खाय।मुखमें आमिख मेलिके, नरक परंगे जाय।।परमात्मा ने इंसान तो क्या जानवरों को भी मांस खाने की इजाजत नहीं दी। सबके खाने के लिए फल, सब्जियां, अनाज, और पेड़ पौधे बनाये हैं।

मांसाहार
मांसाहार महापाप


हज़रत मुहम्मद जी जैसी इबादत आज का कोई मुसलमान नहीं कर सकता। उन्होंने मरी हुई गाय को अपनी शब्द शक्ति से जीवित किया था, कभी मांस नहीं खाया।
जबकि आज सर्व मुस्लिम समाज मांस खा रहा है, जो अल्लाह का आदेश नहीं है।तीसों रोज़े भी रखते हो और वहीं क़त्ल भी करते हो।तुम्हें अल्लाह का दीदार कैसे होगा।जो व्यक्ति मांस खाते हैं, महापाप के भागी हैं, वे घोर  नरक में गिरेंगे।जो व्यक्ति जीव हत्या करते हैं जैसे गाय, बकरी, मुर्गी, सुअर आदि की वह महापापी हैं।मांस खा कर यदि आप बलिदान भी देते हो तो सब व्यर्थ है, उसका कोई लाभ नहीं।मांस को बैन कर देना चाहिए।वर्तमान में सर्व मुसलमान श्रद्धालु माँस खा रहे हैं। परन्तु नबी मुहम्मद जी ने कभी माँस नहीं खाया तथा न ही उनके सीधे अनुयाईयों (एक लाख अस्सी हजार) ने माँस खाया।केवल रोजा व बंग तथा नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल(हत्या) नहीं करते थे।

नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।

कबीर, दिनको रोजा रहत हैं, रात हनत हैं गाय।
यह खून वह वंदगी, कहुं क्यों खुशी खुदाय।।


परमात्मा कबीर जी कहते हैं कि मुस्लिम दिन में तो रोजा रखते हैं और रात में गाय का मांस खाते हैं। यह जीव हत्या है, यह अल्लाह की बन्दगी नहीं है। फिर अल्लाह इससे खुश क्यों होगा?

गला काटै कलमा भरै, किया करै हलाल।

साहिब लेखा मांगसी तब होगा कौन हवाल।।

परमात्मा कबीर ने कलमा पढ़कर जीवों की हत्या करने वाले मुल्ला काज़ियों को लताड़ते हुए कहा है कि जिन निर्दोष जीवों की हत्या तुम कर रहे हो इन सभी पापों का लेखा जोखा अल्लाह तुमसे जरूर लेंगे। तब कोई बचाने वाला नहीं होगा।

मांस खाना पाप
मांस खाना भगवान का आदेश नही




Monday, 22 June 2020

Stories of Jagannath

Jagannath puri

 गीता व पवित्र वेदों में वर्णित तथा परमेश्वर कबीर जी द्वारा दिए तत्वज्ञान के अनुसार भक्ति साधना करने मात्र से ही सम्भव है, अन्यथा शास्त्र विरुद्ध होने से मानव जीवन व्यर्थ हो जाएगा।
जगन्नाथ का मंदिर हिन्दुस्तान का एक ही मन्दिर ऐसा है जिसमें प्रारम्भ से ही छुआ-छात नहीं रही है।
 त्रिलोकीनाथ ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पिता ज्योति निरंजन ने परमात्मा कबीर जी से कलयुग में जगन्नाथ मंदिर बनवाने का वचन लिया था।

 जगन्नाथ का मंदिर समुद्र द्वारा बार बार नष्ट करने के कारण इन्द्रदमन राजा का खजाना खत्म हो गया था। अंतिम बार रानी के गहने बेचकर बेचकर मन्दिर का निर्माण किया। लेकिन परमात्मा कबीर जी ने ही समुद्र को मन्दिर तोड़ने से बचाया था।
जगन्नाथ मंदिर में मूर्तिपूजा नहीं होती है, मूर्तियां केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं। 
एक बार  कबीर परमेश्वर जी वीर सिंह बघेल के दरबार में चर्चा कर रहे थे। अचानक से परमात्मा ने खड़ा होकर अपने लोटे का जल अपने पैर के ऊपर डालना प्रारम्भ कर दिया। सिकंदर ने पूछा प्रभु! यह क्या किया, कारण बताईये।
 कबीर जी ने कहा कि पुरी में जगन्नाथ के मन्दिर में एक रामसहाय नाम का पाण्डा पुजारी है। वह भगवान का खिचड़ी प्रसाद बना रहा था। उसके पैर के ऊपर गर्म खिचड़ी गिर गई। यह बर्फ जैसा जल उसके जले हुए पैर पर डाला है, उसके जीवन की रक्षा की है अन्यथा वह मर जाता।

समुद्र  विष्णु जी से प्रतिशोध ले रहा था। समुद्र ने कबीर परमात्मा से कहा कि जब यह श्री कृष्ण जी त्रेतायुग में श्री रामचन्द्र रूप में आया था तब इसने मुझे अग्नि बाण दिखा कर बुरा भला कह कर अपमानित करके रास्ता मांगा था। मैं वह प्रतिशोध लेने जा रहा हूँ।
जगन्नाथ मंदिर के पास एक चबूतरा बनवाया गया था जिसे आज कबीर मठ के नाम से जाना जाता है। वहीं पर बैठकर कबीर परमात्मा ने समुद्र को जगन्नाथ मंदिर तोड़ने से बचाया था।
जगन्नाथ की पूजा करना शास्त्र विरुद्ध साधना है
जगन्नाथ के दर्शन मात्र या खिचड़ी प्रसाद खाने मात्र से कोई लाभ नहीं है क्योंकि यह क्रिया गीता जी में वर्णित न होने से शास्त्र विरुद्ध है जिसका प्रमाण गीता अध्याय 16 मंत्र 23, 24 में है। गीता जी में बताई गई साधना से ही मोक्ष संभव है।
 पवित्र सतग्रंथों के अनुसार असली जगन्नाथ भगवान कबीर जी ही हैं जिनकी भक्ति करने से हमें पूर्ण मोक्ष मिलेगा।
Jagannath photos



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Jagannath painting art

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Sunday, 21 June 2020

सच के लिए कुर्बानी





सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
 जाके हिरदे सांच है, ताके हिरदे आप।।


1. ईसा मसीह जी को सत्य के लिए सूली पर चढ़ना पड़ा।
2. राजा हरिशचंद्र जी को परिवार सहित बिकना पड़ा।
3. मन्सूर जी के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिया गया।
4. सुकरात जी को जहर का प्याला पीना पड़ा।
5. मीरा बाई के घर के दुश्मन हो गये।
6. नानक साहेब जी को बाबर की जेल में रहना पड़ा।
7. गुरु गोविंद सिंह जी ने अपना सर्वस्व दान कर दिया।
8. रविदास के अपने दुश्मन हो गये।
9. दादू पीपा घीसा आदि को सत्य के लिए अपनो से बहुत संघर्ष करना पडा।
और
10. अब संत रामपाल जी द्वारा सत्य की अलख जगाने पर पूरा लोकतंत्र खिलाफ हो गया। पूर्णतया निर्दोष होने पर भी दोषी साबित कर दिया गया।
पहले सतलोक आश्रम पर हमला फिर संत रामपाल जी व 950 अनुयायियों को जेल फिर सुनियोजित तरीके से दोषी साबित करना। आखिर कसूर सत्य बोलना व सत्य भक्ति करना था, क्या ये गुनाह हो गया...??


जरूरत है विचार करने की...
इतिहास गवाह है कि सत्य को हमेशा बार-बार परीक्षा देनी पड़ी है और झूठ अपने आप फला फूला है। पर झूठ के पांव नहीं होते और सत्य स्थाई निवास बनाता है। इतिहास में जो भी महापुरुष सत्य पर चले उनकी कीर्ति आज जग में है और जो झूठ धोखा छल कपट के मार्ग पर चले उनकी संसार में बदगति हुई है।
सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं। सत्य अपनी स्थाई जगह अवश्य बनाता है।


संतरामपालजी महाराज पर लगे हुए सभी झूठे केस खारिज होंगे। झूठ की बुनियाद पर केस नहीं जीते जाते। संत बेदाग होते है उन्हें दागदार करने की व्यर्थ कोशिश धूमिल हो जायेगी। अपनी पावर का गलत इस्तेमाल करके निर्दोष को दोषी साबित करना लोकतंत्र की हत्या है तथा सत्य को खत्म करने की कुचेष्टा मात्र है।


संत रामपाल जी कहते है कि अच्छी फसल देने के लिए जमीन को अपनी छाती पर हल चलवाना पड़ता है।
मिट्टी में मिला हुआ बीज पकने के बाद सैकड़ों मन अपने जैसे तैयार कर लेता है।
लंबी छलांग के लिए एक कदम पीछे जरूर हटना पड़ता है। घनघोर अंधेरे के बाद सूर्य की किरण प्रकाशित होती है और सम्पूर्ण तिमिर का नाश कर देती है। इसी तरह सत्य जमीन फाड़ अवश्य बाहर आएगा। अंत में जीत सत्य की ही होगी। सत्य स्वयमेव परमात्मा है

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  सत्यमेव जयते

योग से भक्ति योग उत्तम


अगम निगम को खोज के बुद्धि विवेक विचार 
उदय अस्त का राज मिले तो बिन नाम बेगार  !! 

योग से शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है। लेकिन कर्म दण्ड भोगना ही पड़ेगा। इसलिए आध्यात्मिक योग कीजिये। प्रथम सतगुरु की तलाश कीजिये जिससे कर्म दण्ड भी कटेंगे , साथ ही मोक्ष भी मिलेगा।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 2 श्लोक 48 में कहा गया है कि आसक्ति को त्यागकर जय तथा पराजय में सम बुद्धि होकर योग यानि सत्य साधना में लगकर भक्ति कर्म कर। गीता जी में योग का अर्थ भक्ति कर्म करना बताया गया है।
योग करने से शरीर स्वस्थ हो सकता है लेकिन मुक्ति नहीं होती। मुक्ति तो सच्चे मंत्रों के जाप करने से ही होगी, शास्त्रों के अनुसार भक्ति करने से होगी।


🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 2 श्लोक 64, 65 में कहा गया है कि शास्त्रविधि अनुसार पूर्ण परमात्मा की साधना करने वाला साधक, संसार में रहकर काम करता हुआ, परिवार पोषण करता हुआ भी सत्य साधना से सुखदाई मोक्ष को प्राप्त होता है।
योग करने से सिर्फ शरीर के रोग दूर होंगे, लेकिन भक्ति योग करने से शारीरिक रोग के साथ-साथ जन्म-मरण का रोग भी खत्म होगा। इसलिए शारीरिक योग से ज्यादा भक्ति योग आवश्यक है।

🧘🏻‍♂️भक्ति योग क्यों ज़रूरी है?
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग ज़रूरी है। लेकिन आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए भक्ति योग (सतभक्ति) ज़रूरी है।


🧘🏻‍♂️21 जून योग दिवस पर जानिए कि हमें सबसे बड़ा रोग जन्म-मरण का लगा हुआ है, उससे छुटकारा तो सिर्फ भक्ति योग से ही मिल सकता है। इसलिए हमें शारीरिक योग से ज्यादा भक्ति योग को महत्व देना चाहिए।
योग से भक्ति योग श्रेष्ठ है। क्योंकि भक्ति करने से हमें वह स्थान और शरीर प्राप्त होगा, जहां शारीरिक रोग नहीं लगते अर्थात अविनाशी शरीर की प्राप्ति होगी।

21 जून योग दिवस पर जानिए कबीर परमात्मा द्वारा बताई गई सतभक्ति करने से ही सभी प्रकार की बीमारियां दूर हो जाती हैं और शरीर स्वस्थ हो जाता है। इसलिए भक्ति योग सर्वश्रेष्ठ है।


हमें सबसे बड़ा रोग जन्म-मृत्यु का लगा है और यह केवल भक्ति योग से ही मिट सकता है।
जन्म मरण के रोग को खत्म करने के लिए पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी की शरण ग्रहण करें,  सतभक्ति प्राप्त करें व सभी रोगों से मुक्ति पाएं।

🧘🏻‍♂️ भक्ति योग से वह अमर स्थान प्राप्त होता है जहां किसी प्रकार का कोई रोग नहीं है, न मृत्यु है न बुढ़ापा है। जहां किसी वस्तु का अभाव नहीं है।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि ये योग न तो बहुत अधिक खाने वाले का सिद्ध होता है और न ही बिल्कुल न खाने वाले का। अर्थात नियमित कर्तव्य कर्म करते हुए पूर्ण परमात्मा की सतभक्ति करना ही असली योग है।
योग व हठयोग करने से पाप कर्म नहीं कटते और ना ही जन्म मृत्यु व चौरासी का चक्कर समाप्त होता।
योग क्रिया से श्रेष्ठ तो भक्ति योग है जिससे मनुष्य जीवन सफल होता है, पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है।

🧘🏻‍♂️ श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार भक्ति योग ही असली योग है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भक्ति के मंत्रों का भी उल्लेख है।
सैकड़ों योगिक गुरू अपनी अपनी योगिक क्रियाओं को उत्तम बताते हैं। परंतु मनुष्य को योगिक क्रियाओं की नहीं भक्ति योग की अति आवश्यकता है। जिससे  आत्मिक उन्नति व मोक्ष का द्वार खुलेगा।

🧘🏻‍♂️योग करके सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है आत्मा को नहीं। मोक्ष प्राप्ति हेतु भक्ति योग ही श्रेष्ठ है जिससे वर्तमान जीवन भी सुखी होगा और मृत्यु उपरांत मोक्ष प्राप्ति भी।
 योग करने से सिर्फ हमारे शारीरिक रोग दूर हो सकते हैं लेकिन जन्म मरण का रोग तो सिर्फ सतभक्ति से ही दूर हो सकता है।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 3 श्लोक 5 से 8 में प्रमाण है कि जो एक स्थान पर बैठकर हठ योग करके इन्द्रियों को रोककर साधना करते हैं वे पाखण्डी हैं।
संतों की वाणी है
डिंब करें डूंगर चढ़े, अंतर झीनी झूल।
जग जाने बंदगी करें, ये बोवैं सूल बबूल।।

योग करने से केवल शारीरिक सुख ही प्राप्त हो सकते हैं।
लेकिन भक्ति योग करने से हमें सर्व सुख व पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा जो सदा के लिए जन्म-मृत्यु के रोग से छुटकारा दिलाएगा।
 योग व हठयोग करने से जन्म मरण का रोग नहीं कट सकता और ना ही पिछले पाप कर्मों से आने वाले दुःख कम हो सकते हैं, इस रोग को काटने के लिए भक्ति योग की आवश्यकता होगी।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 2 श्लोक 59, 60 में कहा गया है कि जो व्यक्ति हठपूर्वक इंद्रियों को विषयों से दूर रखता है उसकी स्थिति ऐसी होती है जैसे कोई व्यक्ति निराहार यानी भोजन के बिना रहता है पर उसकी स्वाद में आसक्ति बनी रहती है। भक्ति योग से ही आसक्ति से बचा जा सकता है।
 योग निरोगी काया दे सकता है लेकिन भक्ति योग आपको परमात्मा प्राप्ति का मार्ग दिखा कर आपके मनुष्य जीवन का महत्व समझाता है।

🧘🏻‍♂️ वास्तविक योग भक्ति योग है जिसे शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।


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काल का जाल

काल जाल को समझ गए तो मुक्ति का मार्ग खुल जायेगा ! प्रश्न :- काल कौन है ? उत्तर :- काल इस दुनियाँ का राजा है, उसका ॐ मंत्र है...