Sunday, 21 June 2020

योग से भक्ति योग उत्तम


अगम निगम को खोज के बुद्धि विवेक विचार 
उदय अस्त का राज मिले तो बिन नाम बेगार  !! 

योग से शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है। लेकिन कर्म दण्ड भोगना ही पड़ेगा। इसलिए आध्यात्मिक योग कीजिये। प्रथम सतगुरु की तलाश कीजिये जिससे कर्म दण्ड भी कटेंगे , साथ ही मोक्ष भी मिलेगा।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 2 श्लोक 48 में कहा गया है कि आसक्ति को त्यागकर जय तथा पराजय में सम बुद्धि होकर योग यानि सत्य साधना में लगकर भक्ति कर्म कर। गीता जी में योग का अर्थ भक्ति कर्म करना बताया गया है।
योग करने से शरीर स्वस्थ हो सकता है लेकिन मुक्ति नहीं होती। मुक्ति तो सच्चे मंत्रों के जाप करने से ही होगी, शास्त्रों के अनुसार भक्ति करने से होगी।


🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 2 श्लोक 64, 65 में कहा गया है कि शास्त्रविधि अनुसार पूर्ण परमात्मा की साधना करने वाला साधक, संसार में रहकर काम करता हुआ, परिवार पोषण करता हुआ भी सत्य साधना से सुखदाई मोक्ष को प्राप्त होता है।
योग करने से सिर्फ शरीर के रोग दूर होंगे, लेकिन भक्ति योग करने से शारीरिक रोग के साथ-साथ जन्म-मरण का रोग भी खत्म होगा। इसलिए शारीरिक योग से ज्यादा भक्ति योग आवश्यक है।

🧘🏻‍♂️भक्ति योग क्यों ज़रूरी है?
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग ज़रूरी है। लेकिन आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए भक्ति योग (सतभक्ति) ज़रूरी है।


🧘🏻‍♂️21 जून योग दिवस पर जानिए कि हमें सबसे बड़ा रोग जन्म-मरण का लगा हुआ है, उससे छुटकारा तो सिर्फ भक्ति योग से ही मिल सकता है। इसलिए हमें शारीरिक योग से ज्यादा भक्ति योग को महत्व देना चाहिए।
योग से भक्ति योग श्रेष्ठ है। क्योंकि भक्ति करने से हमें वह स्थान और शरीर प्राप्त होगा, जहां शारीरिक रोग नहीं लगते अर्थात अविनाशी शरीर की प्राप्ति होगी।

21 जून योग दिवस पर जानिए कबीर परमात्मा द्वारा बताई गई सतभक्ति करने से ही सभी प्रकार की बीमारियां दूर हो जाती हैं और शरीर स्वस्थ हो जाता है। इसलिए भक्ति योग सर्वश्रेष्ठ है।


हमें सबसे बड़ा रोग जन्म-मृत्यु का लगा है और यह केवल भक्ति योग से ही मिट सकता है।
जन्म मरण के रोग को खत्म करने के लिए पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी की शरण ग्रहण करें,  सतभक्ति प्राप्त करें व सभी रोगों से मुक्ति पाएं।

🧘🏻‍♂️ भक्ति योग से वह अमर स्थान प्राप्त होता है जहां किसी प्रकार का कोई रोग नहीं है, न मृत्यु है न बुढ़ापा है। जहां किसी वस्तु का अभाव नहीं है।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि ये योग न तो बहुत अधिक खाने वाले का सिद्ध होता है और न ही बिल्कुल न खाने वाले का। अर्थात नियमित कर्तव्य कर्म करते हुए पूर्ण परमात्मा की सतभक्ति करना ही असली योग है।
योग व हठयोग करने से पाप कर्म नहीं कटते और ना ही जन्म मृत्यु व चौरासी का चक्कर समाप्त होता।
योग क्रिया से श्रेष्ठ तो भक्ति योग है जिससे मनुष्य जीवन सफल होता है, पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है।

🧘🏻‍♂️ श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार भक्ति योग ही असली योग है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भक्ति के मंत्रों का भी उल्लेख है।
सैकड़ों योगिक गुरू अपनी अपनी योगिक क्रियाओं को उत्तम बताते हैं। परंतु मनुष्य को योगिक क्रियाओं की नहीं भक्ति योग की अति आवश्यकता है। जिससे  आत्मिक उन्नति व मोक्ष का द्वार खुलेगा।

🧘🏻‍♂️योग करके सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है आत्मा को नहीं। मोक्ष प्राप्ति हेतु भक्ति योग ही श्रेष्ठ है जिससे वर्तमान जीवन भी सुखी होगा और मृत्यु उपरांत मोक्ष प्राप्ति भी।
 योग करने से सिर्फ हमारे शारीरिक रोग दूर हो सकते हैं लेकिन जन्म मरण का रोग तो सिर्फ सतभक्ति से ही दूर हो सकता है।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 3 श्लोक 5 से 8 में प्रमाण है कि जो एक स्थान पर बैठकर हठ योग करके इन्द्रियों को रोककर साधना करते हैं वे पाखण्डी हैं।
संतों की वाणी है
डिंब करें डूंगर चढ़े, अंतर झीनी झूल।
जग जाने बंदगी करें, ये बोवैं सूल बबूल।।

योग करने से केवल शारीरिक सुख ही प्राप्त हो सकते हैं।
लेकिन भक्ति योग करने से हमें सर्व सुख व पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा जो सदा के लिए जन्म-मृत्यु के रोग से छुटकारा दिलाएगा।
 योग व हठयोग करने से जन्म मरण का रोग नहीं कट सकता और ना ही पिछले पाप कर्मों से आने वाले दुःख कम हो सकते हैं, इस रोग को काटने के लिए भक्ति योग की आवश्यकता होगी।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 2 श्लोक 59, 60 में कहा गया है कि जो व्यक्ति हठपूर्वक इंद्रियों को विषयों से दूर रखता है उसकी स्थिति ऐसी होती है जैसे कोई व्यक्ति निराहार यानी भोजन के बिना रहता है पर उसकी स्वाद में आसक्ति बनी रहती है। भक्ति योग से ही आसक्ति से बचा जा सकता है।
 योग निरोगी काया दे सकता है लेकिन भक्ति योग आपको परमात्मा प्राप्ति का मार्ग दिखा कर आपके मनुष्य जीवन का महत्व समझाता है।

🧘🏻‍♂️ वास्तविक योग भक्ति योग है जिसे शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।


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