Friday, 26 June 2020

कहानी रंका बंका की


          रंका बंका का प्रभु पर अटल विश्वास

एक दिन रंका तथा बंका दोनों पति-पत्नी गुरू जी के सत्संग में गए हुए थे जो कुछ दूरी पर किसी भक्त के घर पर चल रहा था। 
True God
सच्चा सतगुरु कौन?

बेटी अवंका झोंपड़ी के बाहर एक चारपाई पर बैठी थी। 
अचानक झोंपड़ी में आग लग गई। सर्व सामान जलकर राख हो गया। अवंका दौड़ी-दौड़ी सत्संग में गई। गुरू जी प्रवचन कर रहे थे। अवंका ने कहा कि माँ! झोंपड़ी में आग लग गई। सब जलकर राख हो गया। सब श्रोताओं का ध्यान अवंका की बातों पर हो गया। माँ बंका जी ने पूछा कि क्या बचा है? अवंका ने बताया कि केवल एक खटिया बची है जो बाहर थी। माँ बंका ने कहा कि बेटी जा, उस खाट को भी उसी आग में डाल दे और आकर सत्संग सुन ले। कुछ जलने को रहेगा ही नहीं तो सत्संग में भंग ही नहीं पड़ेगा। बेटी सत्संग हमारा धन है। यदि यह जल गया तो अपना सर्वनाश हो जाएगा। लड़की वापिस गई और उस चारपाई को उठाया और उसी झोंपड़ी की आग में डालकर आ गई और सत्संग में बैठ गई। सत्संग के पश्चात् अपने ठिकाने पर गए। वहाँ एक वृक्ष था। उसके नीचे वह सामान जो जलने का नहीं था जैसे बर्तन, घड़ा आदि-आदि पड़े थे। उस वृक्ष के नीचे बैठकर भजन करने लगे। उनको पता नहीं चला कि कब सो गये? सुबह जागे तो उस स्थान पर नई झोंपड़ी लगी थी। सर्व सामान रखा था। आकाशवाणी हुई कि भक्तो! आप परीक्षा में सफल हुए। यह भेंट मेरी ओर से है, इसे स्वीकार करो। तीनों सदस्य उठकर पहले आश्रम में गए और झोंपड़ी जलने तथा पुनः बनने की घटना बताई तथा कहा कि हे प्रभु! हम तो नामदेव की तरह ही आपको कष्ट दे रहे हैं। हम उसको नसीहत देते थे। आज वही मूर्खता हमने कर दी। सतगुरू जी ने कहा, हे भक्त परिवार! नामदेव उस समय मर्यादा में रहकर भक्ति नहीं कर रहा था। फिर भी उसकी पूर्व जन्म की भक्ति के प्रतिफल में उसके लिए अनहोनी करनी पड़ती थी जो मुझे कष्ट होता था। आप मर्यादा में रहकर भक्ति कर रहे हो। इसलिए आपकी आस्था परमात्मा में बनाए रखने के लिए अनहोनी की है। आग भी मैंने लगाई थी, आपका दृढ़ निश्चय देखकर झोंपड़ी भी मैंने बनाई है। आप उसे स्वीकार करें।
परमात्मा की महिमा भक्त समाज में बनाए रखने के लिए ये परिचय (चमत्कार देकर परमात्मा की पहचान) देना अनिवार्य है। आपकी झोंपड़ी जीर्ण-शीर्ण थी। आप भक्ति में भंग होने के भय से नई बनाने में समय व्यर्थ करना नहीं चाहते थे। मैं आपके लिए पक्का मकान भी बना सकता हूँ। स्वर्ण का भी बना सकता हूँ क्योंकि आप प्रत्येक परीक्षा में सफल रहे हो।
उस दिन रास्ते में धन मैंने ही डाला था। नामदेव मेरे साथ था। आप उस कुटी में रहें और परमात्मा की भक्ति करें। रंका-बंका ने उस मर्यादा का पालन किया :-

कबीर, गुरू गोविंद दोनों खड़े, किसके लागूं पाय। 
बलिहारी गुरू आपणा, गोविन्द दियो बताय।।

आकाशवाणी को परमात्मा की आज्ञा माना, परंतु गुरू जी के पास आकर गुरू जी की क्या आज्ञा है? यह गुरू पर बलिहारी होना है। गोविन्द (प्रभु) की आज्ञा स्वीकार्य नहीं हुई।
गुरू की आज्ञा का पालन करके यहाँ भी परीक्षा में खरे उतरे। उस गाँव के व्यक्तियों ने भक्त रंका की कुटिया जलती तथा जलकर राख हुई देखी थी। सुबह नई और बड़ी जिसमें दो कक्ष थे, बनी देखी तो पूरा गाँव देखने आया। आसपास के क्षेत्र के स्त्री-पुरूष भी देखने आए। रंका-बंका की महिमा हुई तथा उनके गुरू जी की शरण में बहुत सारे गाँव तथा आसपास के व्यक्ति आए और अपना कल्याण करवाया।
God have form
Creator of the universe


••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
भगवान कौन है, कहाँ रहता है, किसने देखा है, कैसे मिलता है और कहां प्रमाणित है ?
Who is God, where does he live, Who has seen him, How to meet him and where is the proof ?

हिन्दू धर्म को मानने वालों के लिए जवाब यहां नीचे है, जवाब पढ़ने के लोए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 👇👇
If you're a Hindu, Click below link to know the answer 👇👇



गॉड कौन है, कहाँ रहता है, किसने देखा है, कैसे मिलता है और कहां प्रमाणित है ?
Who is God, where does he live, Who has seen him, How to meet him and where is the proof ?

ईसाई धर्म को मानने वालों के लिए जवाब यहां नीचे है, जवाब पढ़ने के लोए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 👇👇
If you're a Christian, Click below link to know the answer 👇👇




अल्लाह कौन है, कहाँ रहता है, किसने देखा है, कैसे मिलता है और कहां प्रमाणित है ?
Who is Allah, where does he live, Who has seen him, How to meet him and where is the proof ?

मुस्लिम धर्म को मानने वालों के लिए जवाब यहां नीचे है, जवाब पढ़ने के लोए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 👇👇
If you're a Muslim, Click below link to know the answer 👇👇



वाहे गुरु कौन है, कहाँ रहता है, किसने देखा है, कैसे मिलता है और कहां प्रमाणित है ?
Who is Wahe Guru, where does he live, Who has seen him, How to meet him and where is the proof ?

सिख धर्म को मानने वालों के लिए जवाब यहां नीचे है, जवाब पढ़ने के लोए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 👇👇
If you're a Sikh, Click below link to know the answer 👇👇


यूट्यूब पर हमसे जुड़ें
👇👇👇👇 सच्चा सतगुरु कौन ?

Meat eater are sinner

                मांस खाना पाप

अल्लाह/प्रभु ने हम मनुष्यों के खाने के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं, मांस खाने का आदेश नहीं दिया।

meat eater

                          Don't eat meat


एक तरफ तो आप भक्ति करते हो, और दूसरी तरफ आप बेजुबान निर्दोष जानवरों की हत्या कर उनका मांस खाते हो। सभी जीव परमात्मा की प्यारी आत्मा है, तो फिर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति कैसे होगी?जीव हिंसा करे,प्रकट पाप सिर होय।निगम पुनि ऐसे पाप ते, भिस्त गया ना कोय।परमात्मा कबीर जी कहते हैं कि जींस हिंसा करने से पाप ही लगता है। ऐसा महापाप करके भिस्त (स्वर्ग) कोई नहीं गया। तो फिर हे भोले मानव फिर ऐसा महापाप क्यों करता है।मास मछलियां खात है, सुरापान से हेत। ते नर नरकै जाएंगे, मात पिता समेत।।परमेश्वर कबीर जी कहते हैं की जो  जीव हत्या करता है,मांस खाते हैं, वह अपराधी आत्मा मृत्यु उपरांत नरक में जाएंगे, साथ ही मात-पिता भी नरक में जाएंगे।

 कबीर, तिलभर मछली खायके, कोटि गऊ दे दान। काशी करौंत ले मरे, तो भी नरक निदान।।
तिल के समान भी मछली खाने वाले चाहे करोड़ो गाय दान कर लें, चाहे काशी कारोंत में सिर कटा ले वे नरक में अवश्य जाएंगे

आज़ का मानव समाज मांस खाकर महापाप का भागी बन रहा है।कभी सोचा है कि, अगर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति होती, तो सबसे पहले मांसाहारी जानवरों को होती, जो केवल मांस ही खाते हैं।मांस खाकर आप परमात्मा के बनाएं विधान को तोड़कर परमात्मा के दोषी बन रहे हो। ऐसा करने वाले को नरक में डाला जाता है।

Be vegetarian
What is the benifit of eating vegetarian food


गरीब, जीव हिंसा जो करते हैं, या आगे क्या पाप। कंटक जुनी जिहान में, सिंह भेड़िया और सांप।।
जो जीव हिंसा करते हैं उससे बड़ा पाप नहीं है। जीव हत्या करने वाले वे करोड़ो जन्म शेर, भेड़िया और साँप के पाते हैं।कबीर-माँस भखै औ मद पिये, धन वेश्या सों खाय। जुआ खेलि चोरी करै, अंत समूला जाय।।जो व्यक्ति माँस भक्षण करते हैं, शराब पीते हैं, वैश्यावृति करते हैं। जुआ खेलते हैं तथा चोरी करते हैं वह तो महापाप के भागी हैं। जो व्यक्ति माँस खाते हैं वे नरक के भागी हैं।कबीर परमात्मा कहते हैं माँस तो कुत्ते का आहार है, मनुष्य शरीर धारी के लिए वर्जित है।कबीर-यह कूकर को भक्ष है, मनुष देह क्यों खाय।मुखमें आमिख मेलिके, नरक परंगे जाय।।परमात्मा ने इंसान तो क्या जानवरों को भी मांस खाने की इजाजत नहीं दी। सबके खाने के लिए फल, सब्जियां, अनाज, और पेड़ पौधे बनाये हैं।

मांसाहार
मांसाहार महापाप


हज़रत मुहम्मद जी जैसी इबादत आज का कोई मुसलमान नहीं कर सकता। उन्होंने मरी हुई गाय को अपनी शब्द शक्ति से जीवित किया था, कभी मांस नहीं खाया।
जबकि आज सर्व मुस्लिम समाज मांस खा रहा है, जो अल्लाह का आदेश नहीं है।तीसों रोज़े भी रखते हो और वहीं क़त्ल भी करते हो।तुम्हें अल्लाह का दीदार कैसे होगा।जो व्यक्ति मांस खाते हैं, महापाप के भागी हैं, वे घोर  नरक में गिरेंगे।जो व्यक्ति जीव हत्या करते हैं जैसे गाय, बकरी, मुर्गी, सुअर आदि की वह महापापी हैं।मांस खा कर यदि आप बलिदान भी देते हो तो सब व्यर्थ है, उसका कोई लाभ नहीं।मांस को बैन कर देना चाहिए।वर्तमान में सर्व मुसलमान श्रद्धालु माँस खा रहे हैं। परन्तु नबी मुहम्मद जी ने कभी माँस नहीं खाया तथा न ही उनके सीधे अनुयाईयों (एक लाख अस्सी हजार) ने माँस खाया।केवल रोजा व बंग तथा नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल(हत्या) नहीं करते थे।

नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।

कबीर, दिनको रोजा रहत हैं, रात हनत हैं गाय।
यह खून वह वंदगी, कहुं क्यों खुशी खुदाय।।


परमात्मा कबीर जी कहते हैं कि मुस्लिम दिन में तो रोजा रखते हैं और रात में गाय का मांस खाते हैं। यह जीव हत्या है, यह अल्लाह की बन्दगी नहीं है। फिर अल्लाह इससे खुश क्यों होगा?

गला काटै कलमा भरै, किया करै हलाल।

साहिब लेखा मांगसी तब होगा कौन हवाल।।

परमात्मा कबीर ने कलमा पढ़कर जीवों की हत्या करने वाले मुल्ला काज़ियों को लताड़ते हुए कहा है कि जिन निर्दोष जीवों की हत्या तुम कर रहे हो इन सभी पापों का लेखा जोखा अल्लाह तुमसे जरूर लेंगे। तब कोई बचाने वाला नहीं होगा।

मांस खाना पाप
मांस खाना भगवान का आदेश नही




Monday, 22 June 2020

Stories of Jagannath

Jagannath puri

 गीता व पवित्र वेदों में वर्णित तथा परमेश्वर कबीर जी द्वारा दिए तत्वज्ञान के अनुसार भक्ति साधना करने मात्र से ही सम्भव है, अन्यथा शास्त्र विरुद्ध होने से मानव जीवन व्यर्थ हो जाएगा।
जगन्नाथ का मंदिर हिन्दुस्तान का एक ही मन्दिर ऐसा है जिसमें प्रारम्भ से ही छुआ-छात नहीं रही है।
 त्रिलोकीनाथ ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पिता ज्योति निरंजन ने परमात्मा कबीर जी से कलयुग में जगन्नाथ मंदिर बनवाने का वचन लिया था।

 जगन्नाथ का मंदिर समुद्र द्वारा बार बार नष्ट करने के कारण इन्द्रदमन राजा का खजाना खत्म हो गया था। अंतिम बार रानी के गहने बेचकर बेचकर मन्दिर का निर्माण किया। लेकिन परमात्मा कबीर जी ने ही समुद्र को मन्दिर तोड़ने से बचाया था।
जगन्नाथ मंदिर में मूर्तिपूजा नहीं होती है, मूर्तियां केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं। 
एक बार  कबीर परमेश्वर जी वीर सिंह बघेल के दरबार में चर्चा कर रहे थे। अचानक से परमात्मा ने खड़ा होकर अपने लोटे का जल अपने पैर के ऊपर डालना प्रारम्भ कर दिया। सिकंदर ने पूछा प्रभु! यह क्या किया, कारण बताईये।
 कबीर जी ने कहा कि पुरी में जगन्नाथ के मन्दिर में एक रामसहाय नाम का पाण्डा पुजारी है। वह भगवान का खिचड़ी प्रसाद बना रहा था। उसके पैर के ऊपर गर्म खिचड़ी गिर गई। यह बर्फ जैसा जल उसके जले हुए पैर पर डाला है, उसके जीवन की रक्षा की है अन्यथा वह मर जाता।

समुद्र  विष्णु जी से प्रतिशोध ले रहा था। समुद्र ने कबीर परमात्मा से कहा कि जब यह श्री कृष्ण जी त्रेतायुग में श्री रामचन्द्र रूप में आया था तब इसने मुझे अग्नि बाण दिखा कर बुरा भला कह कर अपमानित करके रास्ता मांगा था। मैं वह प्रतिशोध लेने जा रहा हूँ।
जगन्नाथ मंदिर के पास एक चबूतरा बनवाया गया था जिसे आज कबीर मठ के नाम से जाना जाता है। वहीं पर बैठकर कबीर परमात्मा ने समुद्र को जगन्नाथ मंदिर तोड़ने से बचाया था।
जगन्नाथ की पूजा करना शास्त्र विरुद्ध साधना है
जगन्नाथ के दर्शन मात्र या खिचड़ी प्रसाद खाने मात्र से कोई लाभ नहीं है क्योंकि यह क्रिया गीता जी में वर्णित न होने से शास्त्र विरुद्ध है जिसका प्रमाण गीता अध्याय 16 मंत्र 23, 24 में है। गीता जी में बताई गई साधना से ही मोक्ष संभव है।
 पवित्र सतग्रंथों के अनुसार असली जगन्नाथ भगवान कबीर जी ही हैं जिनकी भक्ति करने से हमें पूर्ण मोक्ष मिलेगा।
Jagannath photos



🌿🌿🌿
Jagannath painting art

यूट्यूब पर हमसे जुड़ें



Sunday, 21 June 2020

सच के लिए कुर्बानी





सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
 जाके हिरदे सांच है, ताके हिरदे आप।।


1. ईसा मसीह जी को सत्य के लिए सूली पर चढ़ना पड़ा।
2. राजा हरिशचंद्र जी को परिवार सहित बिकना पड़ा।
3. मन्सूर जी के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिया गया।
4. सुकरात जी को जहर का प्याला पीना पड़ा।
5. मीरा बाई के घर के दुश्मन हो गये।
6. नानक साहेब जी को बाबर की जेल में रहना पड़ा।
7. गुरु गोविंद सिंह जी ने अपना सर्वस्व दान कर दिया।
8. रविदास के अपने दुश्मन हो गये।
9. दादू पीपा घीसा आदि को सत्य के लिए अपनो से बहुत संघर्ष करना पडा।
और
10. अब संत रामपाल जी द्वारा सत्य की अलख जगाने पर पूरा लोकतंत्र खिलाफ हो गया। पूर्णतया निर्दोष होने पर भी दोषी साबित कर दिया गया।
पहले सतलोक आश्रम पर हमला फिर संत रामपाल जी व 950 अनुयायियों को जेल फिर सुनियोजित तरीके से दोषी साबित करना। आखिर कसूर सत्य बोलना व सत्य भक्ति करना था, क्या ये गुनाह हो गया...??


जरूरत है विचार करने की...
इतिहास गवाह है कि सत्य को हमेशा बार-बार परीक्षा देनी पड़ी है और झूठ अपने आप फला फूला है। पर झूठ के पांव नहीं होते और सत्य स्थाई निवास बनाता है। इतिहास में जो भी महापुरुष सत्य पर चले उनकी कीर्ति आज जग में है और जो झूठ धोखा छल कपट के मार्ग पर चले उनकी संसार में बदगति हुई है।
सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं। सत्य अपनी स्थाई जगह अवश्य बनाता है।


संतरामपालजी महाराज पर लगे हुए सभी झूठे केस खारिज होंगे। झूठ की बुनियाद पर केस नहीं जीते जाते। संत बेदाग होते है उन्हें दागदार करने की व्यर्थ कोशिश धूमिल हो जायेगी। अपनी पावर का गलत इस्तेमाल करके निर्दोष को दोषी साबित करना लोकतंत्र की हत्या है तथा सत्य को खत्म करने की कुचेष्टा मात्र है।


संत रामपाल जी कहते है कि अच्छी फसल देने के लिए जमीन को अपनी छाती पर हल चलवाना पड़ता है।
मिट्टी में मिला हुआ बीज पकने के बाद सैकड़ों मन अपने जैसे तैयार कर लेता है।
लंबी छलांग के लिए एक कदम पीछे जरूर हटना पड़ता है। घनघोर अंधेरे के बाद सूर्य की किरण प्रकाशित होती है और सम्पूर्ण तिमिर का नाश कर देती है। इसी तरह सत्य जमीन फाड़ अवश्य बाहर आएगा। अंत में जीत सत्य की ही होगी। सत्य स्वयमेव परमात्मा है

यूट्यूब पर हमसे जुड़ें
https://youtu.be/lNBcPdm4fdE

  सत्यमेव जयते

योग से भक्ति योग उत्तम


अगम निगम को खोज के बुद्धि विवेक विचार 
उदय अस्त का राज मिले तो बिन नाम बेगार  !! 

योग से शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है। लेकिन कर्म दण्ड भोगना ही पड़ेगा। इसलिए आध्यात्मिक योग कीजिये। प्रथम सतगुरु की तलाश कीजिये जिससे कर्म दण्ड भी कटेंगे , साथ ही मोक्ष भी मिलेगा।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 2 श्लोक 48 में कहा गया है कि आसक्ति को त्यागकर जय तथा पराजय में सम बुद्धि होकर योग यानि सत्य साधना में लगकर भक्ति कर्म कर। गीता जी में योग का अर्थ भक्ति कर्म करना बताया गया है।
योग करने से शरीर स्वस्थ हो सकता है लेकिन मुक्ति नहीं होती। मुक्ति तो सच्चे मंत्रों के जाप करने से ही होगी, शास्त्रों के अनुसार भक्ति करने से होगी।


🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 2 श्लोक 64, 65 में कहा गया है कि शास्त्रविधि अनुसार पूर्ण परमात्मा की साधना करने वाला साधक, संसार में रहकर काम करता हुआ, परिवार पोषण करता हुआ भी सत्य साधना से सुखदाई मोक्ष को प्राप्त होता है।
योग करने से सिर्फ शरीर के रोग दूर होंगे, लेकिन भक्ति योग करने से शारीरिक रोग के साथ-साथ जन्म-मरण का रोग भी खत्म होगा। इसलिए शारीरिक योग से ज्यादा भक्ति योग आवश्यक है।

🧘🏻‍♂️भक्ति योग क्यों ज़रूरी है?
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग ज़रूरी है। लेकिन आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए भक्ति योग (सतभक्ति) ज़रूरी है।


🧘🏻‍♂️21 जून योग दिवस पर जानिए कि हमें सबसे बड़ा रोग जन्म-मरण का लगा हुआ है, उससे छुटकारा तो सिर्फ भक्ति योग से ही मिल सकता है। इसलिए हमें शारीरिक योग से ज्यादा भक्ति योग को महत्व देना चाहिए।
योग से भक्ति योग श्रेष्ठ है। क्योंकि भक्ति करने से हमें वह स्थान और शरीर प्राप्त होगा, जहां शारीरिक रोग नहीं लगते अर्थात अविनाशी शरीर की प्राप्ति होगी।

21 जून योग दिवस पर जानिए कबीर परमात्मा द्वारा बताई गई सतभक्ति करने से ही सभी प्रकार की बीमारियां दूर हो जाती हैं और शरीर स्वस्थ हो जाता है। इसलिए भक्ति योग सर्वश्रेष्ठ है।


हमें सबसे बड़ा रोग जन्म-मृत्यु का लगा है और यह केवल भक्ति योग से ही मिट सकता है।
जन्म मरण के रोग को खत्म करने के लिए पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी की शरण ग्रहण करें,  सतभक्ति प्राप्त करें व सभी रोगों से मुक्ति पाएं।

🧘🏻‍♂️ भक्ति योग से वह अमर स्थान प्राप्त होता है जहां किसी प्रकार का कोई रोग नहीं है, न मृत्यु है न बुढ़ापा है। जहां किसी वस्तु का अभाव नहीं है।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि ये योग न तो बहुत अधिक खाने वाले का सिद्ध होता है और न ही बिल्कुल न खाने वाले का। अर्थात नियमित कर्तव्य कर्म करते हुए पूर्ण परमात्मा की सतभक्ति करना ही असली योग है।
योग व हठयोग करने से पाप कर्म नहीं कटते और ना ही जन्म मृत्यु व चौरासी का चक्कर समाप्त होता।
योग क्रिया से श्रेष्ठ तो भक्ति योग है जिससे मनुष्य जीवन सफल होता है, पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है।

🧘🏻‍♂️ श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार भक्ति योग ही असली योग है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भक्ति के मंत्रों का भी उल्लेख है।
सैकड़ों योगिक गुरू अपनी अपनी योगिक क्रियाओं को उत्तम बताते हैं। परंतु मनुष्य को योगिक क्रियाओं की नहीं भक्ति योग की अति आवश्यकता है। जिससे  आत्मिक उन्नति व मोक्ष का द्वार खुलेगा।

🧘🏻‍♂️योग करके सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है आत्मा को नहीं। मोक्ष प्राप्ति हेतु भक्ति योग ही श्रेष्ठ है जिससे वर्तमान जीवन भी सुखी होगा और मृत्यु उपरांत मोक्ष प्राप्ति भी।
 योग करने से सिर्फ हमारे शारीरिक रोग दूर हो सकते हैं लेकिन जन्म मरण का रोग तो सिर्फ सतभक्ति से ही दूर हो सकता है।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 3 श्लोक 5 से 8 में प्रमाण है कि जो एक स्थान पर बैठकर हठ योग करके इन्द्रियों को रोककर साधना करते हैं वे पाखण्डी हैं।
संतों की वाणी है
डिंब करें डूंगर चढ़े, अंतर झीनी झूल।
जग जाने बंदगी करें, ये बोवैं सूल बबूल।।

योग करने से केवल शारीरिक सुख ही प्राप्त हो सकते हैं।
लेकिन भक्ति योग करने से हमें सर्व सुख व पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा जो सदा के लिए जन्म-मृत्यु के रोग से छुटकारा दिलाएगा।
 योग व हठयोग करने से जन्म मरण का रोग नहीं कट सकता और ना ही पिछले पाप कर्मों से आने वाले दुःख कम हो सकते हैं, इस रोग को काटने के लिए भक्ति योग की आवश्यकता होगी।

🧘🏻‍♂️गीता अध्याय 2 श्लोक 59, 60 में कहा गया है कि जो व्यक्ति हठपूर्वक इंद्रियों को विषयों से दूर रखता है उसकी स्थिति ऐसी होती है जैसे कोई व्यक्ति निराहार यानी भोजन के बिना रहता है पर उसकी स्वाद में आसक्ति बनी रहती है। भक्ति योग से ही आसक्ति से बचा जा सकता है।
 योग निरोगी काया दे सकता है लेकिन भक्ति योग आपको परमात्मा प्राप्ति का मार्ग दिखा कर आपके मनुष्य जीवन का महत्व समझाता है।

🧘🏻‍♂️ वास्तविक योग भक्ति योग है जिसे शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।


यूट्यूब पर हमसे जुड़ें
https://youtu.be/_AJ4ccPjREA

Tuesday, 16 June 2020

बाइबल उत्पत्ति ग्रंथ में परमात्मा साकार है


आइए ब्लॉक के माध्यम से आज हम पवित्र ग्रंथ बाइबल में पूर्ण परमात्मा कौन है उसकी जानकारी प्राप्त करते हैं।


पवित्र बाईबल (उत्पत्ति ग्रन्थ) 

 परमात्मा का शरीर मानव  सदृश है।
 जिसने छः दिन में सर्व सृष्टी की रचना की।
 तथा फिर विश्राम किया।


🌟 पूर्ण परमात्मा जन्म मृत्यु से परे है, वह न तो माँ के गर्भ से जन्म लेता न ही उसकी मृत्यु होती है। ईसा मसीह जैसी पवित्र आत्मा की भी दर्दनाक मृत्यु हुई। फिर आम इंसान का कैसे बचाव हो सकता है। केवल पूर्ण परमात्मा कबीर जी ही अविनाशी हैं, मोक्षदायक प्रभु हैं।


🌟 ईसा मसीह परमात्मा के पुत्र थे। पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही सबके पिता हैं, उत्पत्ति कर्ता हैं। वही असली माता-पिता,भाई बंधु हैं। वह काल की तरह कभी धोखा नहीं देते।


🌟 मांस खाना परमेश्वर का आदेश नहीं !
पवित्र बाईबल (उत्पत्ति ग्रन्थ 1:29)
प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीज वाले फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं, माँस खाना नहीं कहा है।

🌟 उत्पत्ति ग्रन्थ 1:28
परमेश्‍वर ने उन्‍हें यह आशिष दी, ‘फलो-फूलो और पृथ्‍वी को भर दो, और उसे अपने अधिकार में कर लो। समुद्र के जलचरों, आकाश के पक्षियों और भूमि के समस्‍त गतिमान जीव-जन्‍तुओं पर तुम्‍हारा अधिकार हो।’
परमात्मा ने मांस खाने का आदेश नहीं दिया।

🌟भगवान ने मनुष्य को शाकाहारी भोजन खाने का आदेश दिया है - पवित्र बाईबल



🌟पवित्र बाइबल में भगवान का नाम कबीर है - अय्यूब 36:5। यहां स्पष्ट है की कबीर ही शक्तिशाली परमात्मा है।

   ईसा मसीह की मृत्यु के तीसरे दिन स्वयं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही आये थे भक्ति की लाज रखने के लिए। अन्यथा काल ब्रह्म भगवान से विश्वास ही उठा देता लोगों का।

🌟अय्यूब 36:5 (और्थोडौक्स यहूदी बाइबल - OJB)
परमेश्वर कबीर (शक्तिशाली) है, किन्तु वह लोगों से घृणा नहीं करता है।
परमेश्वर कबीर (सामर्थी) है और विवेकपूर्ण है।

🌟पवित्र बाइबिल (उत्पत्ति ग्रंथ) में लिखा है कि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। इससे सिद्ध है कि प्रभु भी मनुष्य जैसे शरीर युक्त है तथा छः दिन में सृष्टी रचना करके सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।

🌟पवित्र बाईबल के उत्पत्ति ग्रंथ पृष्ठ 1 से 3 में लिखा है कि परमेश्वर ने 6 दिन में सृष्टि की सातवें दिन सिंहासन पर विराजमान हो गए। फिर आगे बाईबल में काल का जाल शुरू हो गया और सबको काल ने अपने जाल में फंसाने के लिए परमेश्वर के ज्ञान में मिलावट कर दी।



🌟हजरत ईसा मसीह की मृत्यु 30 वर्ष की आयु में हुई जो पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरी मृत्यु निकट है तथा तुम शिष्यों में से ही एक मुझे विरोधियों को पकड़वाएगा और वो मुझे मार देंगे। इससे सिद्ध है हज़रत ईसा जी ने कोई चमत्कार नहीं किया ये सब पहले से ही निर्धारित था।

🌟पूर्ण परमात्मा ही भक्ति की आस्था बनाए रखने के लिए स्वयं प्रकट होता है। पूर्ण परमात्मा ने ही ईसा जी की मृत्यु के पश्चात् ईसा जी का रूप धारण करके प्रकट होकर ईसाईयों के विश्वास को प्रभु भक्ति पर दृढ़ रखा।

🌟यदि पूर्ण परमात्मा ईसा जी का रूप धारण करके प्रकट नहीं होते तब ईसा जी के पूर्व चमत्कारों को देखते हुए ईसा जी का अंत देखकर कोई भी व्यक्ति भक्ति साधना नहीं करता, नास्तिक हो जाते।
(प्रमाण पवित्र बाईबल में यूहन्ना 16: 4-15) ब्रह्म(काल) यही चाहता है।

🌟काल (ब्रह्म) पुण्यात्माओं को अपना अवतार (रसूल) बना कर भेजता है। फिर चमत्कारों द्वारा उसको भक्ति कमाई रहित करवा देता है। उसी में कुछ फरिश्तों (देवताओं) को भी प्रवेश करके
कुछ चमत्कार फरिश्तों द्वारा उनकी पूर्व भक्ति धन से करवाता है। उनको भी शक्ति हीन कर देता है।

अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से




युट्यूब पर हमसे जुड़े
https://youtu.be/tf0efwofXLQ
👆

Sunday, 14 June 2020

सफर सतलोक का

▶️ प्रश्न - सतलोक कैसे पहुंचेंगे❓

▶️ उत्तर - काल निरंजन ने हम आत्माओं पर कर्म लगा दिए, जिससे वह हमें बहुत दुखी करता है। काल को एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर से निकले गंध को खाने तथा सवा लाख मानव रोज उत्पन्न करने का श्राप लगा है। काल ने हमें यहां अलग अलग धर्मों तथा जातियों में बांट दिया जिससे कि हम आज एक दूसरे के ही दुश्मन बने बैठे हैं। सिर्फ मनुष्य जन्म में ही हम परमात्मा प्राप्ति कर सकते हैं इसलिए मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य भक्ति करना ही बताया गया है।

▶️ यहां से सतलोक वापिस अपने मालिक के पास वापस जाने का सिर्फ एक ही जरिया है, सतगुरु। वर्तमान समय में सिर्फ संत रामपाल जी महाराज ही पूर्ण सतगुरु है जो कि जीव को पूर्ण मोक्ष देने के अधिकारी है। रामपाल जी महाराज ने सर्व धर्म के शास्त्रों से यह प्रमाणित करके बताया है कि कबीर ही परमात्मा है जो कि हम सभी आत्माओं के जनक है इसलिए अब हमें संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर पूर्ण ज्ञान को समझ कर सत्यभक्ति करके वापस सतलोक जाने का प्रयत्न करना चाहिए।

✨ अधिक जानकारी व प्रमाण के लिए देखे साधना टीवी चैनल रात्रि 7:30 से

सांच को आंच नहीं

         

 सच के लिए कुरबानी

1. ईसा मसीह जी को सत्य के लिए सूली पर चढ़ना पड़ा।
2. राजा हरिशचंद्र जी को परिवार सहित बिकना पड़ा।
3. मन्सूर जी के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिया गया।
4. सुकरात जी को जहर का प्याला पीना पड़ा।
5. मीरा बाई के घर के दुश्मन हो गये।
6. नानक साहेब जी को बाबर की जेल में रहना पड़ा।
7. गुरु गोविंद सिंह जी ने अपना सर्वस्व दान कर दिया।
8. रविदास के अपने दुश्मन हो गये।
9. दादू पीपा घीसा आदि को सत्य के लिए अपनो से बहुत संघर्ष करना पडा।
और
10. अब संत रामपाल जी द्वारा सत्य की अलख जगाने पर पूरा लोकतंत्र खिलाफ हो गया। पूर्णतया निर्दोष होने पर भी दोषी साबित कर दिया गया।
पहले सतलोक आश्रम पर हमला फिर संत रामपाल जी व 950 अनुयायियों को जेल फिर सुनियोजित तरीके से दोषी साबित करना। आखिर कसूर सत्य बोलना व सत्य भक्ति करना था, क्या ये गुनाह हो गया...??


जरूरत है विचार करने की...
इतिहास गवाह है कि सत्य को हमेशा बार-बार परीक्षा देनी पड़ी है और झूठ अपने आप फला फूला है। पर झूठ के पांव नहीं होते और सत्य स्थाई निवास बनाता है। इतिहास में जो भी महापुरुष सत्य पर चले उनकी कीर्ति आज जग में है और जो झूठ धोखा छल कपट के मार्ग पर चले उनकी संसार में बदगति हुई है।
सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं। सत्य अपनी स्थाई जगह अवश्य बनाता है।

#संतरामपालजी महाराज पर लगे हुए सभी झूठे केस खारिज होंगे। झूठ की बुनियाद पर केस नहीं जीते जाते। संत बेदाग होते है उन्हें दागदार करने की व्यर्थ कोशिश धूमिल हो जायेगी। अपनी पावर का गलत इस्तेमाल करके निर्दोष को दोषी साबित करना लोकतंत्र की हत्या है तथा सत्य को खत्म करने की कुचेष्टा मात्र है।

संत रामपाल जी कहते है कि अच्छी फसल देने के लिए जमीन को अपनी छाती पर हल चलवाना पड़ता है।
मिट्टी में मिला हुआ बीज पकने के बाद सैकड़ों मन अपने जैसे तैयार कर लेता है।
लंबी छलांग के लिए एक कदम पीछे जरूर हटना पड़ता है। घनघोर अंधेरे के बाद सूर्य की किरण प्रकाशित होती है और सम्पूर्ण तिमिर का नाश कर देती है। इसी तरह सत्य जमीन फाड़ अवश्य बाहर आएगा। अंत में जीत सत्य की ही होगी।

सांच बराबर तप नहीं ।
झूठ बराबर पाप ।।
जाके हिरदे सांच है ।
ताके हिरदे आप।।

संत रामपाल जी महाराज प्रमाण सहित बताते हैं कि पूर्ण परमात्मा का मंत्र तीन बार में दिया जाता है जिसका प्रमाण गीता जी में है। उसी सच्चे मंत्रों के द्वारा हमें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। वर्तमान में सिर्फ संत रामपाल जी महाराज ही इन मंत्रों के देने के अधिकारी हैं।



सत्यमेव जयते!

यूट्यूब पर हमसे जुड़ें
https://youtu.be/8njwoMjhFSs

Monday, 8 June 2020

कलयुग में आने वाला है सतयुग


           कलयुग एक श्रेष्ठ समय परमात्मा प्राप्ति के लिए

वर्तमान समय (कलयुग) में कई सामाजिक कुरीतियां घर कर चुकी हैं। यह सब मन अर्थात काल करवाता है। कुरीतियां जैसे:- चोरी, ठगी, दहेज लेना, नशा करना, ईर्ष्या और द्वेश भाव रखना, नाच गाने, सिनेमा देखना, नैतिक मूल्यों का अभाव, यौन उत्पीड़न की घटनाएं इत्यादि चरम सीमा पर हैं। इसके बावजूद केवल इसी युग में एक महापुरुष के सानिध्य में सभी कुरीतियां खत्म हो जाएंगी। क्योंकि काल ब्रह्म ने परमेश्वर कबीर जी से (जो अपने पुत्र जोगजीत के रूप में उसके समक्ष प्रकट हुए थे), उनसे वचन लिया था कि तीनों युगों (सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग) में थोड़े जीव पार करना और कलयुग में चाहे जितने जीव पार करना। सारा विश्व, समाज में व्याप्त बुराइयों को त्यागकर शास्त्र अनुकूल साधना अपनाकर पूर्ण परमात्मा की पहचान करते हुए एक नए युग यानी रामराज्य स्थापित करेंगे।

कबीर परमात्मा ने स्वसमवेद बोध पृष्ठ 171 (1515) पर एक दोहे में इसका वर्णन किया है,

🌿🌿
पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाय।
महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।

🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾

सबही नारी-नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत।
कपट चातुरी छोडी के, शरण कबीर गहंत।
एक अनेक ह्नै गए, पुनः अनेक हों एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।

भावार्थ:- जिस समय कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाएगा, तब एक महापुरूष विश्व को पार करने के लिए आएगा। हिन्दु, मुसलमान आदि-आदि जितने भी पंथ तब तक बनेंगे और जितने जीव संसार में हैं, वे मानव शरीर प्राप्त करके उस महापुरूष से सत्यनाम लेकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। जिस समय वह निर्धारित समय आएगा। उस समय स्त्री-पुरूष उच्च विचारों तथा शुद्ध आचरण के होकर कपट, व्यर्थ की चतुराई त्यागकर मेरी (कबीर जी की) शरण ग्रहण करेंगे। वर्तमान समय में जिस प्रकार से लाभ लेने के लिए एक ‘मानव‘ धर्म से अनेक पंथ (धार्मिक समुदाय) बन गए हैं, वे सब पुनः एक हो जाएंगे। सब हंस (निर्विकार भक्त) आत्माऐं सत्यनाम की शक्ति से सतलोक चले जाएंगे।


🌼आठ बून्द की जुगति बनाई।💐
🌼नौतम तें आठों बून्द मुक्ताई।💐
🌼बिना गुरू कोऊ भेद नहीं पावै।💐
🌼युगबन्ध होवै तो हंस कहावै।।

इस वाणी में भी परमेश्वर कबीर जी ने उस सदगुरु का उल्लेख करते हुए धर्मदास जी को कहा है कि पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाने पर मेरा यथार्थ तेरहवां पंथ चलेगा, उसको चलाने वाली मेरी नौतम सुरति होगी। वह नौंवी (9वीं) आत्मा (एक महान संत रूप) मेरा निज वचन यानि सत्य नाम, सार शब्द लेकर जन्मेगा और वही विश्व का उद्धार करेगा।

❓ आखिर कौन है वह महापुरुष? ❓



आज के समय में कितने ही धर्मगुरु हो चुके हैं, परन्तु सभी मनमाना आचरण तथा शास्त्र विरुद्ध साधना बताते हैं जिससे ना तो कर्म बंधनों से छुटकारा हो सकता है और ना ही मोक्ष प्राप्ति संभव है। क्योंकि केवल अधिकारी (पूर्ण संत) द्वारा वेदों में वर्णित किए गए नाम व मंत्रो से ही मोक्ष प्राप्ति हो सकती है।

वर्तमान समय में वह पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज ही हैं। विश्व में केवल वही एकमात्र संत हैं जो सभी धर्म ग्रंथों (गीता, बाइबल, कुरान, ऋगवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद, कबीर सागर, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी) में प्रमाणित साधना विधिवत बताते हैं। पूर्ण सतगुरु की पहचान भी वेदों में वर्णित है जो इस प्रकार है।

👉सतगुरु के लक्षण कहुं, मधुरे बैन विनोद।🌻
👉चार वेद छठ शास्त्र, कहे अठारह बोध।🌻

गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भी पूर्ण सतगुरु द्वारा प्रदान करने वाली भक्ति विधिं बताई गई है:-

ऊँ तत् सत् इति निर्देशः ब्रह्मणः त्रिविधः स्मृतः।
ब्राह्मणाः तेन वेदाः च यज्ञाः च विहिताः पुरा।।

सरलार्थ:- उस परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति केवल ओम, तत्, सत् मन्त्र के स्मरण से संभव है तथा विद्वान् अर्थात् तत्वदर्शी सन्त ही उसको देने का अधिकारी है।

भगवत गीता के अनुसार पूर्ण संत की पहचान?
पूर्ण संत की पहचान गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में बताई गई है कि जो संत इस संसार रूपी उल्टे लटके हुए पीपल के वृक्ष के एक-एक विभाग को तत्व से जानता है, वही पूर्ण संत है। इसके अलावा और भी कई जगह पूर्ण संत के बारे में बताया गया है जैसे

सोए गुरु पूरा कहावे, जो दो अक्षर का भेद बतावे।
एक छुड़ावे एक लखावे, तो प्राणी निज घर को पावे।

सिर्फ संत रामपाल जी महाराज ही दो अक्षर का (सतनाम) मंत्र सही विधि के साथ देते हैं और सारशब्द का तो किसी को ज्ञान ही नहीं है, संत रामपाल जी महाराज को छोड़ कर। हमारे धार्मिक ग्रंथों में बताया है कि जो संत, विधि अनुसार नाम दीक्षा देगा, वही पूर्ण संत होगा तथा वह तीन चरण में दीक्षा देगा। अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से



यूट्यूब पर हमसे जुड़ें।
https://youtu.be/-hs1RgmQc-A

Saturday, 6 June 2020

हजरत मोहम्मद जी का जीवन चरित्र





          प्रभु ने मनुष्य को अपने स्वरुप ही बनाया



         जीवनी हजरत मोहम्मद की

हजरत मुहम्मद के बारे में श्री मुहम्मद इनायतुल्लाह सुब्हानी के विचार जीवनी हजरत मुहम्मद(सल्लाहु अलैहि वसल्लम)लेखक हैं - मुहम्मद इनायतुल्लाह सुब्हानी,मूल किताब - मुहम्मदे(अर्बी) से,अनुवादक - नसीम गाजी फलाही,प्रकाशक - इस्लामी साहित्य ट्रस्ट प्रकाशन नं. 81 के आदेश से प्रकाशनकार्य किया है।मर्कजी मक्तबा इस्लामी पब्लिशर्स, डी-307, दावत नगर, अबुल फज्लइन्कलेव जामिया नगर, नई दिल्ली-1110025,

श्री हाशिम के पुत्र शौबा थे। उन्हीं का नाम अब्दुल मुत्तल्लिब पड़ा। क्योंकि जब मुत्तलिब अपने भतीजे शौबा को अपने गाँव लाया तो लोगों ने सोचा किमुत्तलिब कोई दास लाया है। इसलिए श्री शौबा को श्री अब्दुल मुत्तलिब के उर्फ नाम से अधिक जाना जाने लगा। श्री अब्दुल मुत्तलिब को दस पुत्र प्राप्त हुए। किसी कारण से अब्दुल मुत्तलिब ने अपने दस बेटों में से एक बेटे की कुर्बानी अल्लाह के निमित देने का प्रण लिया।देवता को दस बेटों में से कौन सा बेटा कुर्बानी के लिए पसंद है। इस के लिए एक मन्दिर(काबा) में रखी मूर्तियों में से बड़े देव की मूर्ति के सामने दस तीर रख दिए तथा प्रत्येक पर एक पुत्र का नाम लिख दिया। जिस तीर पर सबसे छोटे पुत्र अब्दुल्ला का नाम लिखा था वह तीर मूर्ति की तरफ हो गया।माना गया कि देवता को यही पुत्र कुर्बानी के लिए स्वीकार है।
श्री अब्दुल्ला(नबीमुहम्मद के पिता) की कुर्बानी देने की तैयारी होने लगी। पूरे क्षेत्र के धार्मिक लोगों ने अब्दुल मुत्तल्लिब से कहा ऐसा न करो। हा-हा कार मच गया। एक पुजारी में कोई अन्य आत्मा बोली। उसने कहा कि ऊंटों की कुर्बानी देने से भी काम चलेगा। इससे राहत की स्वांस मिली। उसी शक्ति ने उसके लिए एक अन्य गाँव में एक औरत जो अन्य मन्दिरों के पुजारियों की दलाल थी के विषय में बताया कि वह फैसला करेगी कि कितने ऊंटों की कुर्बानी से अब्दुल्ला की जान अल्लाह क्षमा करेगा। उस औरत ने कहा कि जितने ऊंट एक जान की रक्षा के लिए देते हो अन्य दस और जोड़ कर तथा अब्दुल्ला के नाम की पर्ची तथा दस ऊंटों की पर्ची डाल कर जाँच करते रहो। जब तक ऊंटों वाली पर्ची न निकले, तब तक करते रहो। इस प्रकार दस.2 ऊंटों की संख्या बढ़ाते रहे तब सौ ऊंटों के बाद ऊंटों की पर्ची निकली, उस से पहले अब्दुल्ला की पर्ची निकलती रही। इस प्रकार सौ ऊटों की कुर्बानी(हत्या) करके बेटेअब्दुल्ला की जान बचाई।
जवान होने पर श्री अब्दुल्ला का विवाह भक्तमति आमिनी देवी से हुआ। जब हजरत मुहम्मद माता आमिनी जी के गृभ में थे पिता श्री अब्दुल्ला जी की मृत्यु किसी दूर स्थान पर हो गई। वहीं पर उनकी कब्र बनवा दी। जिस समय बालक मुहम्मद की आयु छः वर्ष हुई तो माता आमिनी देवी अपने पति की कब्र देखने गई थी। उसकी भी मृत्यु रास्ते में हो गई। छः वर्षीय बालक मुहम्मद जी यतीम (अनाथ) हो गए। (उपरोक्त विवरण पूर्वोक्त पुस्तक ‘जीवनी हजरत मुहम्मद‘ पृष्ठ 21 से 29 तथा 33-34पर लिखा है)।

हजरत मुहम्मद जी जब 25 वर्ष के हुए तो एक चालीस वर्षीय विधवा खदीजा नामक स्त्रा से विवाह हुआ। खदीजा पहले दो बार विधवा हो चुकी थी। तीसरी बार हजरत मुहम्मद से विवाह हुआ। वह बहुत बड़े धनाङ्य घराने की औरत थी।

(यह विवरण पूर्वोक्त पुस्तक के पृष्ठ 46, 51-52 पर लिखा है)।
हजरत मुहम्मद जी को संतान रूप में खदीजा जी से तीन पुत्र तथा चार बेटियाँ प्राप्त हुई।

तीनों पुत्र 1. कासिम, 2. तय्यब 3. ताहिर आप (हजरतमुहम्मद जी) की आँखों के सामने मृत्यु को प्राप्त हुए। केवल चार लड़कियां शेष रहीं। (पूर्वोक्त पुस्तक के पृष्ठ 64 पर यह उपरोक्त विवरण लिखा है)।एक समय प्रभु प्राप्ति की तड़फ में हजरत मुहम्मद जी नगर से बाहर एकगुफा में साधना कर रहे थे। एक जिबराईल नामक फरिश्ते ने हजरत मुहम्मद जी का गला घोंट-2 कर बलात् कुआर्न शरीफ का ज्ञान समझाया। हजरत मुहम्मद जी को डरा धमका कर अव्यक्त माना जाने वाले प्रभु का ज्ञान दियागया। उस जिबराईल देवता के डर से हजरत मुहम्मद जी ने वह ज्ञान यादकिया

कुआर्न मजीद (शरीफ) 23 वर्षों में पूरी लिखी गई। जब हजरत मुहम्मदजी की आयु 40 वर्ष थी उस समय से प्रारम्भ हुई तथा अन्तिम समय 63 वर्षकी आयु तक 23 वर्ष लगातार कभी एक आयत, कभी आधी, कभी दो आयत,कभी 10 आयत, कभी पूरी सूरतें उतरी हैं। इसी को शरीअत में ‘‘बह्य‘‘ कहते हैं। विद्वानों ने लिखा है ‘‘वह्य(वह्य)‘‘ उतरने के भिन्न-भिन्न तरीके हदीसोंमें पेश किए हैं।



1. फरिश्ता ‘‘वह्य(वह्य)‘‘ ले कर आता था तो घंटियाँ सी बजती थी।नबी मुहम्मद जी की जान निकलने को हो जाती थी। यह तरीका ज्यादा कष्टदायक नबी मुहम्मद जी के लिए होता था।यह भी लिखा है कि हजरत मुहम्मद जी नुबूबत के बाद (चालीस वर्ष कीआयु से नबी बनने के बाद) रमजान के दिनों में पूरा कुआर्न मजीद (शरीफ)अल्लाह के पास से उस आसमान से जिसे हम देख नहीं सकते हैं अल्लाह(प्रभु) के हुकम (आज्ञा) से उतारा गया अर्थात् उसी अल्लाह के द्वारा बोलागया। इसके बाद हजरत जिबराईल को जिस समय, जिस कदर हुकम(आज्ञा) हुआ, उन्होंने पवित्रा कलाम को बिल्कुल वैसा ही बिना किसी परिवर्तनके नबी मुहम्मद जी तक पहुँचाया

2. कभी फरिश्ता दिल में कोई बात डाल दे।

3. फरिश्ता आदमी के रूप में आकर बात करे।{नोट - हजरत मुहम्म्द जी की जीवनी में लिखा है कि जिस समयजिब्राईल फरिश्ता प्रथम बार वह्य (वह्य) लेकर आया मनुष्य रूप में दिखाई दिया, तो उसने मुहम्मद जी का गला घोंट कर कहा इसे पढ़ो। हजरत मुहम्मद जी ने बताया कि मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे, वह मेरा गला घोंट रहा हो। मेरे शरीर को दबा रहा हो। ऐसा दो बार किया फिर तीसरी बार फिर कहापढ़ो। मुझे ऐसा लगा कि वह फिर गला घोटेंगा, इस बार और जोर से भींचेगा,मैं बोला क्या पढ़ूं ?

कुआर्न की प्रथम आयत पढ़ाई, वह मुझे याद हो गई।फिर फरिश्ता चला गया, मैं घबरा गया। दिल बैठता जा रहा था। पूरा शरीर थर-थर कांपने लगा। गुफा के बाहर आकर सोचा यह कौन था। फिर वही फरिश्ता आदमी की सूरत में दिखाई दिया, जहाँ देखूं वही दिखाई देने लगा।ऊपर, नीचे, दांए, बांए सब ओर। घर आकर चादर ओढ़कर लेट गया। सारा शरीर पसीने से भीगा हुआ था। मुझे डर है कि खदीजा कहीं मर न जाऊँ।फिर हजरत मुहम्मद जी ने अपनी पत्नी खदीजा को सारी बात बताई, फिर एक ‘बरका‘ नामक व्यक्ति ने हजरत मुहम्मद जी से सारी बातें सुन कर कहा आप ‘नबी‘ बनोगे। यही फरिश्ता मूसा जी के पास भी आता था। उपरोक्त विवरण से तो सिद्ध होता है कि फरिश्ता आदमी रूप में वह्य लाता था तो भी हजरत मुहम्मद जी को बहुत कष्ट हुआ करता।}

4. अल्लाह तआला जागते में नबी मुहम्मद (सल्ल) से कलाम फरमाए।भावार्थ है कि आकाशवाणी करके ब्रह्म स्वयं बोलता था।

5. अल्लाह तआला सपने की हालत में कलाम फरमाए।

6. फरिश्ता सपने की हालत में आकर कलाम करे(इस छठी व पाँचवीप्रकार पर विवाद है, शेष उपरोक्त कुआर्न मजीद(शरीफ) के उतरने की 4सही हैं।) पृष्ठ 29 पर लिखा है कि कभी स्वयं ‘‘वह्य(वह्य)‘‘ आती थी। भावार्थहै कि जैसे कोई प्रेत प्रवेश करके बोलता है। कभी नबी मुहम्मद चादर लपेटकर लेट जाते थे, फिर चादर के अन्दर से बोलते थे।पवित्रा कुआर्न मजीद(शरीफ) के मुकदमा के पृष्ठ 6-7 के लिखे लेख सेस्पष्ट है कि जिबराईल नामक फरिश्ते ने तो केवल संदेश वाहक का कार्यकिया है। ज्ञान व आदेश देने वाला प्रभु अर्थात् काल भगवान एक देशीयसाकार सिद्ध हुआ जो सातवें आसमान पर अव्यक्त रूप में है, जिसे देखा नहीं जा सकता। अव्यक्त का उदाहरण है जैसे सूर्य बादलों के पार होने के कारणअदृश्य (अव्यक्त) होता है। दिन होते हुए भी दिखाई नहीं देता। इसी प्रकारपरमात्मा एक देशीय जाने तथा अपनी शक्ति से छुपा है। जिस कारण से उसे निराकार माना है।

परन्तु भक्ति की सत्य साधना द्वारा उसे देखा जा सकताहै। वह सत्य भक्ति विधि कुरान शरीफ में नहीं है क्योकि उस के लिए किसी बाहखबर (तत्वदर्शी) से जानने को कहा है।


कुआर्न शरीफ (मजीद) के ज्ञानदाता ने किसी अन्य कबीर नामक अल्लाह (प्रभु) को सर्व का पालन कर्ता, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, सर्व के पूजा के योग्य कहा है।

कुआर्न शरीफ (मजीद)सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 58 तथा 59 में वर्णन है। 

जिसमें कुआर्न ज्ञानदाता अल्लाह ने कहा है कि उस उपरोक्त अल्लाह कबीर या खबीर जिसेअल्लाहु अकबर भी कहा जाता है। उसके विषय में मैं(कुआर्न का ज्ञान दाता)नहीं जानता। उसके विषय में किसी बाहखबर(तत्वदर्शी संत) से पूछो। वह कबीर अल्लाह छः दिन में सृष्टी की उत्पत्ति करके सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।

इससे यह भी सिद्ध होता है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साकार है।


 अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से

यूट्यूब पर हमसे जुड़ें
https://youtu.be/hAPg8sFnG3U

परमात्मा हर युग में सभी अच्छी आत्माओं को मिलते हैं।





‘‘ऋषि रामानन्द, सेऊ, समन तथा नेकी
    व कमाली के पूर्व जन्मों का ज्ञान’’

ऋषि रामानन्द जी का जीव सत्ययुग में विद्याधर ब्राह्मण था जिसे परमेश्वर सत सुकृत नाम से मिले थे। परमेश्वर की परवरिश की लीला इन्हीं के घर परहुई थी। इनकी पत्नी का नाम दीपिका था। ये निःसन्तान थे। त्रोता युग में वह वेद विज्ञ नामक ऋषि था, जिसको परमेश्वर मुनिन्द्र नाम से शिशु रूप में प्राप्त हुए थे तथा कमाली वाली आत्मा सत्य युग में विद्याधर की पत्नि दीपिका थी । त्रेता युग में सूर्या नाम की वेदविज्ञ ऋषि की पत्नी थी। दोनों समय में ये निःसन्तान थे।उस समय इन्होने परमेश्वर को पुत्रावत् पाला तथा प्यार किया था। उसी पुण्य के कारण ये आत्माऐं परमात्मा को चाहने वाली थी।




कलयुग में भी इनका परमेश्वर के प्रति अटूट विश्वास था। ऋषि रामानन्द व कमाली वाली आत्माऐं ही सत्ययुग में ब्राह्मण विद्याधर तथा ब्राह्मणी दीपीका वाली आत्माऐं थी। आयु 60 वर्ष हो चुकी थी, निःसन्तान थे, उनको ससुराल से आते समय कबीर परमेश्वर एक तालाब में कमल के फूल पर शिशु रूप में मिले थे। यही आत्माऐं त्रोता युग में (वेदविज्ञ तथा सूर्या) ऋषि दम्पति थे। जिन्हें परमेश्वर शिशु रूप में प्राप्त हुए थे। उस समय दोनों की आयु लगभग 60 वर्ष थी, निःसन्तान थे।

समन तथा नेकी वाली आत्माऐं द्वापर युग में कालु बाल्मीकि तथा उसकी पत्नी गोदावरी थी। जिन्होंने द्वापर युग में परमेश्वर कबीर जी का शिशु रूप में लालन पालन किया था।उसी पुण्य के फल स्वरूप परमेश्वर ने उन्हें अपनी शरण में लिया था।


सेऊ(शिव) वाली आत्मा द्वापर में ही एक गंगेश्वर नामक ब्राह्मण का पुत्र गणेश था।जिसने अपने पिता के घोर विरोध के पश्चात् भी मेरे (कबीर जी अर्थ के) उपदेश को नहीं त्यागा था तथा गंगेश्वर ब्राह्मण वाली आत्मा कलयुग में शेख तकी बना।

 वह द्वापर युग से ही परमेश्वर का विरोधी था।गंगेश्वर वाली आत्मा शेख तकी को काल ब्रह्म ने फिर से प्रेरित किया। जिस कारण से शेख तकी (गंगेश्वर) परमेश्वर कबीर जी का शत्रा बना। भक्त गणेशश्री कालु तथा गोदावरी को माता-पिता तुल्य सम्मान करता था। रो-2 कर कहताथा काश आज मेरा जन्म आप (बाल्मीकि) के घर होता। मेरे (पालक)माता-पिता (कालु तथा गोदावरी) भी गणेश से पुत्रावत् प्यार करते थे। उनकामोह भी उस बालक में अत्यधिक हो गया था। इसी कारण से वे फिर से उसी गणेश वाली आत्मा अर्थात् सेऊ के माता-पिता (नेकी तथा समन) बने। समन की आत्मा ही नौ शेरखान शहर में नौ शेरखाँ राजा बना फिर बलख बुखारे का बादशाह अब्राहिम अधम सुलतान हुआ तब उसको पुनः भक्ति पर लगाया।
यूट्यूब पर हमसे जुड़ें👇👇
          https://youtu.be/hAPg8sFnG3U

Friday, 5 June 2020

जीवा और दत्ता की कथा



‘‘कबीर वट की अद्भुत कथा‘‘

गुजरात प्रान्त में भरूंच शहर के पास एक अंकलेश्वर गाँव है। उस के पास ‘‘शुक्ल तीर्थ‘‘ नाम का गाँव था ,जिसमें ब्राह्मण जाति के लोग निवास करते थे। वर्तमान में वहाँ गाँव नहीं है क्योंकि नर्मदा नदी ने इसको चारों ओर से घेर कर अंकलेश्वर गाँव से सम्पर्क समाप्त कर दिया। जिस कारण से वहां जाने के लिए नौका का प्रयोग होने लगा। गाँव कहीं ओर स्थान पर जा बसा।उस समय वि.सं. 1465 (सन् 1408) में इस शुक्ल तीर्थ गाँव में दो ब्राह्मण सगे भाई रहते थे। जिनके नाम थे बड़े का नाम जीवा तथा छोटे का नाम ‘‘तत्वा‘‘ (दत्ता भी कहते थे) था। जीवा को एक लड़की संतान रूप में प्राप्त थी तथा तत्वा को एक लड़का था। जीवा तथा तत्वा प्रभु प्रेमी भक्तआत्माऐं थी, इनको सत्संग से पता चला कि गुरू के बिना मोक्ष नहीं हो सकता।



 फिर यह भी निश्चय हुआ कि पूर्ण गुरू के बिना मोक्ष नहीं हो सकता है। दोनां भाइयों ने बहुत सत्संग ऋषि-मण्डलेश्वरों के सुने। जिस भी संत का सत्संग सुनते थे तो लगता था कि यह पूर्ण गुरू है। फिर अन्य का सत्संग सुनते थे तो लगता था कि यह पूर्ण गुरू है। दोनों ने विचार किया कि पूर्णगुरू की पहचान कैसे करें। जिसका भी सत्संग सुनते हैं वही पूर्ण लगता है।उन्होंने निर्णय किया कि एक वट वृक्ष (बड़ पेड़) की सूखी टहनी लाकर मिट्टी में गाड़ेंगे और इसमें संतां के चरण धोकर चरणामृत इस सूखी टहनी के गड्ढ़े में डालेंगे। जिस सन्त के चरणामृत से यह डार हरी-भरी हो जाएगी।वह पूर्ण सन्त होगा।

कई वर्षों तक यह परीक्षा जारी रही। परन्तु निराशा ही हाथ लगी। हताश होकर मान बैठे कि पृथ्वी पर वर्तमान में कोई पूर्ण सन्त है ही नहीं। कबीर परमेश्वर जी उस शुक्ल तीर्थ गाँव में गए। सन्त वेश में परमेश्वर को तत्वा ने देखा और अपने बड़े भाई जीवा को बताया। जीवा ने कहा कि यह सड़क-छाप सन्त है। इससे क्या लाभ होगा? जब बड़े-बड़े मण्डलेश्वरों से कुछ नहीं हुआ। दत्ता के अधिक आग्रह पर (कि कहते हैं भगवान न जाने किस वेश में मिल जाए) कबीर परमेश्वर जी को अपने घरपर बुला लिया। सर्व प्रथम चरण धोकर चरणामृत को तत्वा ने सूखी डार लगेगड्ढे़ में डाला, तुरंत ही हरी-भरी हो गई।


पूर्ण सतगुरू को प्राप्त करके दोनों भाई गद्गद् हो गए तथा दीक्षा ग्रहण की। दोनों ने परमेश्वर कबीर जी से कर बद्ध होकर प्रार्थना की हे प्रभु! आप हमें पहले क्यों नहीं मिले, हमारा बहुत जीवन व्यर्थ हो गया। कबीर परमेश्वरजी ने उत्तर दियाः- हे जीवा-तत्वा! मैं पहले भी आ सकता था। मेरे चरणामृतसे सूखी लकड़ी भी हरी हो जानी थी। परन्तु आप को भ्रम रह जाता कि यह तो एक गलीहारों में घूमने वाला सन्त है। हो सकता है कि जिनके बड़े-बड़े मठ बने हैं, लाखों भक्त हैं, उनके पास इससे भी अधिक भक्ति शक्ति होगी।आप वहाँ फिर भी भटकते। यह मन का स्वभाव है। मेरे से दीक्षा लेकर आप के मन में यह शंका आने मात्रा से आप नाम रहित हो जाते। वहाँ जाने से तो भक्ति नाश ही हो जाता। इसलिए मैं उस समय आप को मिला हूँ कि आप निश्चल मन से भक्ति करके मोक्ष प्राप्त कर सकोगे।

 परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा हे जीवा दत्ता! पूर्ण सन्त की यही पहचान नहीं होती।

प्रश्न :- हे परमेश्वर पूर्ण गुरू के लक्षण बताने की कृपा करें।
उत्तर :- परमेश्वर कबीर जी ने उत्तर दिया :

‘‘गुरु के लक्षण (पहचान)’’परमेश्वर कबीर जी ने ‘‘कबीर सागर’’ के अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध’’ मेंपृष्ठ 1960(2024) पर गुरू के लक्षण बताऐ हैं।

गुरू के लक्षण चार बखाना। प्रथम वेद शास्त्रा का ज्ञाना(ज्ञाता)।।दूसरा हरि भक्ति मन कर्म बानी। 
तीसरा सम दृष्टि कर जानी।।
चौथा बेद विधि सब कर्मा। 
यह चारि गुरू गुन जानों मर्मा।।


भावार्थ :- जो गुरू अर्थात् परमात्मा कबीर जी का कृपा पात्र दास गुरूपद को प्राप्त होगा, उसमें चार गुण मुख्य होंगे।

‘‘प्रथम बेद शास्त्र का ज्ञाना (ज्ञाता)’’
 सन्त वेदों तथा शास्त्रों का ज्ञाता होगा। वह सर्व धर्मों के शास्त्रों को ठीक-ठीक जानेगा।

‘‘दूसरा हरि भक्ति मन कर्म बानी’
 केवल ज्ञान-ज्ञान ही नहीं सुनाऐगा, वह स्वयं भी परमात्मा की भक्ति मन कर्म वचन से करेगा।

‘‘तीसरे समदृष्टि करि जानी’’ अनुयाइयों के साथ समान ब्यौहार करेगा, वह समदृष्टि वालाहोगा। आप देखते हैं कि आश्रम में सर्व श्रद्धालुओं को एक समान खाना-पीना,एक समान बैठने का स्थान। सन्त रामपाल दास जी के माता-पिता,बहन-भाई, बच्चे जब कभी आश्रम में आते हैं साधारण भक्त की तरह आश्रम में रहते हैं।

‘‘चौथा बेद विधि सब कर्मा‘‘ लक्षण गुरू का बताया है कि वह सन्त वेदों में वर्णित भक्ति विधि अनुसार साधना अर्थात् प्रार्थना (स्तुति) यज्ञ अनुष्ठान तथा मंत्रा बताएगा।
उसी सच्चे मंत्रों से जीवों का उद्धार होगा और वह सतलोक जा सकेंगे अर्थात मोक्ष प्राप्त होगा ।


अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से

यूट्यूब पर हमसे जुड़ें

https://youtu.be/2oAjpi4fFiU

Thursday, 4 June 2020

परमात्मा मुर्दे को भी जिंदा कर सकता है


लूट सको तो लूट लो ,राम नाम की लूट ।
पीछे फिर पछताओगे, जब प्राण जाएंगे छूट।।

ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 161 मंत्र 2, 5, सुक्त 162 मंत्र 5, सुक्त 163 मंत्र 1 - 3 में प्रमाण मिलता है कि पूर्ण परमात्मा आयु बढ़ा सकता है और कोई भी रोग को नष्ट कर सकता है।
 उसी विधान अनुसार कबीर परमेश्वर ने कमाल, कमाली नाम के मुर्दों को जीवित किया था।


God Kabir comes in all four ages and performs his pastimes. He also gives the knowledge to go from Maghar to Sashir that even today, God is performing as Saint Rampal Ji Maharaj.



‘‘शेखतकी द्वारा कबीर साहेब को गहरे कुएँ (झेरे) में डालना“

शेखतकी ने देखा कि यह तो ऐसे भी नहीं मरा। मुसलमानों को पुनर्इक्कठा किया और कहा कि अब की बार इस कबीर को कुएँ में डालकर ऊपरसे मिट्टी, ईटें और रोड़े डाल देंगे। तब देखेंगे यह कैसे बचेगा? भोली जनता तो जैसे पीर जी कहे वैसे ही करने को तैयार थी।शेखतकी ने सिकंदर लौधी से कहा कि हम इसकी एक परीक्षा और लेंगे।सिकंदर ने पूछा कि क्या परीक्षा लोगे? शेखतकी ने कहा कि हम इसको झेरे कुएँ में डालेंगे और फिर देखेंगे कि वहाँ से कैसे जीवित होगा?{अब इतनी लीला देखकर भी राजा का अपने मालिक पर विश्वास नहींबना। नहीं तो धमका देता कि जा कर ले तूने जो करना है। मैं नहीं दुःखी करूं अपने भगवान को। फिर देखता उसका राज्य जाता या और मौज हो जाती।}राजा ने सोचा कहीं मेरा राज्य न चला जाए।


सिकंदर लौधी राजा ने साहेब से प्रार्थना की कि यह शेखतकी तो नहीं मानता और आज ऐसे-ऐसे जिद्द किए हुए है। पूज्य कबीर साहेब जी ने कहा ठीक है। कर लेने दे इसको जो यह करे। मेरा भी टंटा कटे। मैं भी दुःखी हो लिया। कह दे कि तुने जो करना है कर ले।शेखतकी कबीर साहेब जी को बाँध जूड़ कर ले गया और जाकर गहरे झेरे कुएँ में डलवा दिया। वहाँ पर हजारों व्यक्तियों को इक्कठा किए हुए था। बहुत गहरा अंधा कुआँ जिसमें पानी गंदा और थोड़ा-सा पड़ा था और ऊपर से मिट्टी, कांटेदार छड़ी, गोबर, ईंट आदि से डेढ़ सो फूट ऊँचा पूरा भर दिया।फिर शेखतकी हाथ-मुँह धोकर सिकंदर लौधी के पास गया तथा कहा कि राजा कर दिया तेरे शेर को समाप्त। उसके ऊपर इतनी मिट्टी डाल दी है कि अब किसी भी प्रकार बाहर नहीं आ सकता। सिकंदर लौधी ने पूछा पीर जी आप किसकी बात कर रहे हो? शेखतकी बोला कि तेरे गुरुदेव कबीर की। उसकोआज हमने समाप्त कर दिया है।


 सिकंदर ने कहा कि पीर जी पूज्य कबीर साहेब जी तो अंदर कमरे में बैठे हैं, वे तो कहीं पर गये ही नहीं। शेखतकी ने अंदर जाकर देखा तो पूज्य कबीर साहेब अंदर कमरे में आसन पर आराम से बैठे थे। शेखतकी  को तो और ज्यादा इर्ष्या हो गई कि यह कबीर तो मारे से मर नहीं रहा। अब क्या किया जाए? अन्य समझदार व्यक्ति तो मान गये,हजारों ने उपदेश लिया, प्रभु कबीर जी के शिष्य बने, परन्तु वह शेखतकी दुष्ट नहीं माना।

शाहतकी नहीं लखी, निरंजन चाल रे।
इस परचे तै आगे माँगे जवाल रे।।

शेखतकी बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर की महिमा को नहीं समझ पाया।उसको चाहिए था भगवान के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करता तथा अपना आत्म कल्याण करवाता, परन्तु मान-बड़ाई वश होकर साहेब का दुश्मन बन गया। शेखतकी ने और भी बहुत से जुल्म किए। कबीर साहेब काशी लौट गए।

Sheikh Taki was tried to kill Lord Kabir 52 times but every atom should completely failed everytime souls come under the shelter of Lord Kabir bhaiya understanding the true .
Must watch sadhna T.V
यूट्यूब पर हमसे जुड़ें

Tuesday, 2 June 2020

कबीर परमेश्वर की अद्भुत लीला


शेख तकी की मृत लड़की कमाली को जीवित करना

     शेखतकी ने देखा कि यह कबीर तो किसी प्रकार भी काबू नहीं आ रहाहै। तब शेख तकी ने जनता से कहा कि यह कबीर तो जादूगर है। ऐसे हीजन्त्र-मन्त्र दिखाकर इसने बादशाह सिकंदर की बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। सारे मुसलमानों से कहा कि तुम मेरा साथ दो, वरना बात बिगड़ जाएगी। भोले मुसलमानों ने कहा पीर जी हम तेरे साथ हैं, जैसे तू कहेगा ऐसे ही करेंगे। शेखतकी ने कहा इस कबीर को तब प्रभु मानेंगे जब मेरी लड़की को जीवित कर देगा जो कब्र में दबी हुई है।पूज्य कबीर साहेब से प्रार्थना हुई।

कबीर साहेब ने सोचा यह नादान आत्मा ऐसे ही मान जाए। {क्योंकि ये सभी जीवात्माऐं कबीर साहेब के बच्चे हैं। यह तो काल ने (मजहब) धर्म का हमारे ऊपर कवर चढ़ा रखा है। एक-दूसरे के दुश्मन बना रखे हैं।} शेखतकी की लड़की का शव कब्र में दबा रखा था। शेखतकी ने कहा कि यदि मेरी लड़की को जीवित कर दे तो हमइस कबीर को अल्लाह स्वीकार कर लेंगे और सभी जगह ढिंढ़ोरा पिटवा दूँगा कि यह कबीर जी भगवान है। कबीर साहेब ने कहा कि ठीक है। वह दिननिश्चित हुआ। कबीर साहेब ने कहा कि सभी जगह सूचना दे दो, कहीं फिरकिसी को शंका न रह जाए। हजारों की संख्या में वहाँ पर भक्त आत्मादर्शनार्थ एकत्रित हुई। कबीर साहेब ने कब्र खुदवाई। उसमें एक बारह-तेरह वर्ष की लड़की का शव रखा हुआ था।

कबीर साहेब ने शेखतकी से कहा कि पहले आप जीवित कर लो। सभी उपस्थित जनों ने कहा है कि महाराज जी यदि इसके पास कोई ऐसी शक्ति होती तो अपने बच्चे को कौन मरने देताहै? अपने बच्चे की जान के लिए व्यक्ति अपना तन मन धन लगा देता है।हे दीन दयाल आप कृपा करो। पूज्य कबीर परमेश्वर ने कहा कि हे शेखतकीकी लड़की जीवित हो जा। तीन बार कहा लेकिन लड़की जीवित नहीं हुई। शेखतकी ने तो भंगड़ा पा दिया। नाचे-कूदे कि देखा न पाखण्डी का पाखंड पकड़ा गया। कबीर साहेब उसको नचाना चाहते थे कि इसको नाचने दे।



कबीर, राज तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह।
मान बड़ाई ईर्ष्या, दुर्लभ तजना ये।।

मान-बड़ाई, ईर्ष्या का रोग बहुत भयानक है। अपनी लड़की के जीवित न होने का दुःख नहीं, कबीर साहेब की पराजय की खुशी मना रहा था। कबीर साहेब ने कहा कि बैठ जाओ महात्मा जी, शान्ति रखो। कबीर साहेब ने आदेश दिया कि हे जीवात्मा जहाँ भी है कबीर आदेश से इस शव में प्रवेश करो और बाहर आओ।कबीर साहेब का कहना ही था कि इतने में शव में कम्पन हुआ और वह लड़की जीवित होकर बाहर आई, कबीर साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम
उस लड़की ने डेढ घण्टे तक कबीर साहेब की कृपा से प्रवचन किए। कहाहे भोली जनता ये भगवान आए हुए हैं। पूर्ण ब्रह्म अन्नत कोटि ब्रह्मण्ड केपरमेश्वर हैं। क्या तुम इसको एक मामूली जुलाहा(धाणक) मान रहे हो। हे भूले-भटके प्राणियों ये आपके सामने स्वयं परमेश्वर आए हैं। इनके चरणों में गिरकर अपने जन्म-मरण का दीर्घ रोग कटवाओ और सत्यलोक चलो। जहाँपर जाने के बाद जीवात्मा जन्म-मरण के चक्कर से बच जाती है।

कमाली ने बताया कि इस काल के जाल से बन्दी छोड़ कबीर साहेब के बिना कोई नहीं छुटवा सकता। चाहे हिन्दू पद्धति से तीर्थ-व्रत, गीता-भागवत, रामायण,महाभारत, पुराण, उपनिषद्ध, वेदों का पाठ करना, राम, कृष्ण, ब्रह्मा-विष्णु-शिव,शेराँवाली(आदि माया, आदि भवानी, प्रकृति देवी), ज्योति निरंजन कीउपासना भी क्यों न करें, जीव चौरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट से नहीं बच सकता और मुसलमान पद्धति से भी जीव काल के जाल से नहीं छूट सकता। जैसे रोजे रखना, ईद बकरीद मनाना, पाँच वक्त नमाज करना,मक्का-मदीना में जाना, मस्जिद में बंग देना आदि सर्व व्यर्थ है। कमाली ने सर्व उपस्थित जनों को सम्बोधित करते हुए अपने पिछले जन्मों की कथा सुनाई जो उसे कबीर साहेब की कृपा से याद हो आई थी। जो कि आप पूर्व पढ़ चुके हो।कबीर साहेब ने कहा कि बेटी अपने पिता के साथ जाओ।
वह लड़की बोली मेरे वास्तविक पिता तो आप हैं। यह तो नकली पिता है। इसने तो मैं मिट्टी में दबा दी थी। मेरा और इसका हिसाब बराबर हो चुका है। सभी उपस्थित व्यक्तियों ने कहा कि कबीर परमेश्वर ने कमाल कर दिया। कबीर साहेब ने लड़की का नाम कमाली रख दिया और अपनी बेटी की तरह रखाऔर नाम दिया। उपस्थित व्यक्तियों ने हजारों की संख्या में कबीर परमेश्वरसे उपदेश ग्रहण किया।

पवित्र कुरान शरीफ में प्रभु सशरीर है तथा उसका नाम कबीर है सुरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में लिखा है कि कबीर परमात्मा ने छः दिन में सृष्टी की रचना की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।

💠पवित्र कुरान में लिखा है कबीर अल्लाह ही पूजा के योग्य हैं।
वह सर्व पापों को विनाश करने वाले हैं। उनकी पवित्र महिमा का गुणगान करो - सुरत-फुर्कानि 25:58

💠पवित्र कुरान प्रमाणित करती है अल्लाह कबीर साहेब ही हैं।
सुरत-फुर्कानि नं. 25 आयत 52
कबीर ही पूर्ण प्रभु है तथा कबीर अल्लाह के लिए अडिग रहना।

💠आदरणीय गरीबदास जी को पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) स्वयं सत्यभक्ति प्रदान करके सत्यलोक लेकर गए थे, तब अपनी अमृतवाणी में आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने आँखों देखकर कहाः-
गरीब, अजब नगर में ले गए, हमकुँ सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सुते चादर तान।।



यूट्यूब पर हमसे जुड़ने के लिए क्लिक करें

https://youtu.be/XrGlUTNTF0c

कलयुग में परमात्मा का प्राकट्य




‘‘शिशु कबीर देव द्वारा कंवारी गाय का दूध पीना’’

बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे।
25  दिन जब बालक को निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न-भिन्न स्त्रा-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। आज पच्चीसवां दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फांसी पर लटक जाऊंगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती। बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए-पिए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता।यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोच कर फूट-2 कर रो रही थी, और भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना की


प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी। 25 वें दिन नीरू ने सोचा कि हमने मुसलमान काजी-मुल्लाओं के बताएअनुसार तो सर्व क्रिया कर ली है। परन्तु बच्चा दूध नहीं पी रहा। उस समय स्वामी रामानन्द जी पंडित बहुत प्रसिद्ध थे। उनके पास जा कर अपनी समस्यासुनाई कि मुझे जंगल में एक पुत्र प्राप्त हुआ था। नीरू को कमल के फूल पर जल में पुत्र प्राप्त हुआ था। परन्तु जिस से भी यह कहता कि कमल के पुष्प पर पुत्र प्राप्त हुआ था। सर्व अस्वीकार करते थे, कहते थे कि यह कैसे सम्भव हो सकता है? इसी डर से नीरू ने स्वामी रामानन्द जी से कहा कि उद्यान में मुझे एक नवजात शिशु प्राप्त हुआ है। वह 25 दिन से कुछ भी नहीं खा-पी रहा है। हे स्वामी कुछ विधि बताओ? स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि आप पूर्व जन्म में भी ब्राह्मण थे। उस समय आप से भगवान की भक्ति में कोई त्राटि हुई थी जिस कारण से आप जुलाहा बने हो। नीरू ने कहा कि हे स्वामी! वह तो जैसा कर्म किया था, उसका फल तो मुझे मिलना ही था। अब मैं संकट के समय आप के पास आया हूँ। ऐसी कृपा करो बालक दूध पी ले।




स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि एक कंवारी गाय (बछिया) ले आना जिसको बैल ने छुआ न हो। उसकोअपने बालक के पास खड़ा कर देना, वह कंवारी गाय दूध देवेगी, उस दूध को बालक पीएगा ।
नीरू ने मन ही मन में सोचा कि स्वामी जी ने मेरे साथ मजाक किया है।कंवारी गाय कैसे दूध दे सकती है। वह दुःखी मन से वापिस आकर अपनी झोंपड़ी में बैठकर रोने लगा।भगवान शिव, एक साधु का रूप बना कर नीरू की झांपड़ी के सामने खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। साधु रूप में खड़े भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी। हे महात्मा! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे।

साधु वेश धारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आंसू जिह्वा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे विप्र जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उसदिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीन दयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भीआहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूंगी।मैं इसकी मृत्यु की प्रतिक्षा कर रही हूँ। सर्व रात्तरी बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी।


नीमा के मुख से सर्व कथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा।आप का बालक मुझे दिखाईए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर महात्मा जी के समक्ष प्रस्तुत किया। नीमा ने बालक को साधु के चरणों मे डालना चाहा कि बच्चे के जीवन की रक्षा हो सके। बालक पृथ्वी पर न गिर कर ऊपर उठगया और साधु वेश धारी शिव के सिर के सामान्तर हवा में ठहर गया। नीमा ने सोचा कि यह चमत्कार इस साधु ने किया है, मेरे बच्चे को हवा में स्थिर कर दिया। साधु ने अपनी बाहें फैलाकर बच्चे को लेना चाहा। उसी समय बालकस्वयं साधु शिव के हाथों में आ गया।दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाऐं व हस्त रेखाऐं देखकर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे महात्मा! बनावटी सान्तवना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की सांस आएगी।


 पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कंवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कंवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याऐ(अर्थात् कंवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी।परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा साधु को प्रणाम किया। साधु रूपमें शिव ने कहा नीरू! आप एक कंवारी गाय लाओं वह दूध देवेगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कंवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर सेएक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्रा) भी ले आया।परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार साधु रूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्रा थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने साधु रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव केरूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। साधु रूपधारी भगवान शंकर बोले!

साधु भूखा भाव का, धन काभूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधू नाहीं। यह कह कर विप्र रूपधारीशिवजी वहाँ से चले गए।


यूट्यूब पर हमसे जुड़ें👇👇👇👇 



Monday, 1 June 2020

नकली नामों से मुक्ति नहीं


भक्ति मर्यादा


जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा ।
हिन्दु मुसलिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा ।।

“ प्रिय भाइयों और बहनों"
आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पहले कोई भी धर्म या अन्य सम्प्रदाय नहींथा। न हिन्दु, न मुसलिम, न सिक्ख और न ईसाई थे। केवल मानव धर्म था। सभी का एक ही मानव धर्म था और है।
 लेकिन जैसे-2 कलयुग का प्रभाव बढ़ता गया वैसे-2 हमारे में मत-भेद होता गया। कारण सिर्फ यही रहा कि धार्मिक कुल गुरुओं द्वारा शास्त्रों में लिखी हुई सच्चाई को दबा दिया । जिसके परिणाम स्वरूप आज एक मानव धर्म के चार धर्म औरअन्य अनेक सम्प्रदाएँ बन चुकी हैं। जिसके कारण आपस में मतभेद होना स्वाभाविक ही है।

 सभी का प्रभु/भगवान/राम/अल्लाह/रब/गोड/खुदा/परमेश्वर एक ही है। 

ये भाषा भिन्न पर्यायवाची शब्द हैं। सभी मानते हैं कि सबका मालिक एक है लेकिनफिर भी ये अलग-2 धर्म सम्प्रदाएँ क्यों ?यह बात बिल्कुल ठीक है कि सबका मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/गोड/राम/परमेश्वर एक ही है जिसका वास्तविक नाम कबीर है और वह अपने सतलोक/सतधाम/सच्चखण्ड में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।

लेकिनअब हिन्दु तो कहते हैं कि हमारा राम बड़ा है, मुसलिम कहते हैं कि हमारा अल्लाह बड़ा है, ईसाई कहते हैं कि हमारा ईसामसीह बड़ा और सिक्ख कहते हैं कि हमारे गुरु नानक साहेब जी बड़े हैं।

 ऐसे कहते हैं जैसे चार नादान बच्चे कहते हैं कि यहमेरा पापा, दूसरा कहेगा यह मेरा पापा है तेरा नहीं है, तीसरा कहेगा यह तो मेरापिता जी है जो सबसे बड़ा है और फिर चौथा कहेगा कि अरे नहीं नादानों! यह मेराडैडी है, तुम्हारा नहीं है। जबकि उन चारों का पिता वही एक ही है। इन्हीं नादानबच्चों की तरह आज हमारा मानव समाज लड़ रहा है।

‘‘कोई कहै हमारा राम बड़ा है,
 कोई कहे खुदाई रे। 
कोई कहे हमारा ईसामसीह बड़ा,
 ये बाटा रहे लगाई रे।।

‘‘जबकि हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाईहै कि वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब है जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप मेंआकार में रहता है।

वेद, गीता, कुरान और गुरु ग्रन्थ साहेब ये सब लगभग मिलते जुलते ही हैं।


यजुर्वेद के अ. 5 के श्लोक नं. 32 में, सामवेद के संख्या नं. 1400ए 822 में
 अथर्ववेदके काण्ड नं. 4 के अनुवाक 1 के श्लोक नं. 7, ऋग्वेद के म. 1 अ. 1 के सुक्त 11 केश्लोक नं. 4 में कबीर नाम लिख कर बताया है कि पूर्ण ब्रह्म कबीर है जो सतलोक में आकार में रहता है।

 गीता जी चारों वेदों का संक्षिप्त सार है।

 गीता जी भी उसी सतपुरुष पूर्ण ब्रह्म कबीर की तरफ इशारा करती है। गीता जी के अ. 15 के श्लोकनं. 16.17
, अ. 18 के श्लोक नं. 46ए 62
अ. 8 के श्लोक नं. 8 से 10 तथा 22 में, उसी पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने का इशारा किया है।

श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ट नं. 24 पर और पृष्ट नं. 721 पर नाम लिख कर कबीरसाहेब की महिमा गाई है।

इसी प्रकार कुरान और बाईबल एक ही शास्त्रा समझो।दोनों लगभग एक ही संदेश देते हैं कि उस कबीर अल्लाह की महिमा ब्यान करो जिसकी शक्ति से ये सब सृष्टी चलायमान हैं।

कुरान शरीफ में सूरत फूर्कानि नं. 25की आयत नं. 52 से 59 तक में कबीरन्, खबीरा, कबीरू आदि शब्द लिख कर उसीएक कबीर अल्लाह की पाकि ब्यान की हुई है कि ऐ पैगम्बर (मुहम्मद)! उस कबीरअल्लाह की पाकि ब्यान करो जो छः दिन में अपनी शक्ति से सृष्टी रच कर सातवेंदिन तख्त पर जा बिराजा अर्थात् सतलोक में जा कर विश्राम किया। वह अल्लाह(प्रभु) कबीर है।

 इसी का प्रमाण बाईबल के अन्दर उत्पत्ति ग्रन्थ में सृष्टी क्रम मेंबाईबल के प्रारम्भ में ही सात दिन की रचना में 1रू20.2रू5 में है।

सभी संतों व ग्रथों का सार यही है कि पूर्ण गुरु जिसके पास तीनों नाम हांऔर नाम देने का अधिकार भी हो से नाम ले कर जीव को जन्म-मृत्यु रूपी रोग से छुटकारा पाना चाहिए। क्योंकि हमारा उद्देश्य आपको काल की कारागार से छुटवाकर अपने मूल मालिक कविर्देव (कबीर साहेब) के सतलोक को प्राप्त करवाना है।


कविर्देव ने अपनी वाणी में कहा है कि एक जीव को काल साधना से हटा कर पूर्णगुरू के पास लाकर सत उपदेश दिलाने का पुण्य इतना होता है कि जितना करोड़ गाय-बकरें आदि प्राणियों को कसाई से छुटवाने का होता है। क्योंकि यह अबोधमानव शरीर धारी प्राणी गलत गुरुओं द्वारा बताई गई शास्त्रा विरूद्ध साधना से काल के जाल में फंसा रह कर न जाने कितने दुःखदाई चौरासी लाख योनियों केकष्ट को झेलता रहता है।

 जब यह जीवात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) की शरण मेंपूरे गुरू के माध्यम से आ जाती है, नाम से जुड़ जाती है तो फिर इसका जन्म तथामृत्यु का कष्ट सदा के लिए समाप्त हो जाता है और सतलोक में वास्तविक परमशांति को प्राप्त करता है।

 अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से

हमसे यूट्यूब पर जुड़े
https://youtu.be/s4Bi2ZUXExQ

काल का जाल

काल जाल को समझ गए तो मुक्ति का मार्ग खुल जायेगा ! प्रश्न :- काल कौन है ? उत्तर :- काल इस दुनियाँ का राजा है, उसका ॐ मंत्र है...