Saturday, 30 May 2020

शेख तकी नहीं पहचाना कबीर परमेश्वर को

दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी का धर्मगुरु था शेख तकी जिसने कबीर साहब के साथ 52 बदमाशी की
 

शेख तकी की मृत लड़की को जीवित करना

शेखतकी ने देखा कि यह कबीर तो किसी प्रकार भी काबू नहीं आ रहाहै। तब शेखतकी ने जनता से कहा कि यह कबीर तो जादूगर है। ऐसे ही जन्त्र-मन्त्र दिखाकर इसने बादशाह सिकंदर की बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। सारे मुसलमानों से कहा कि तुम मेरा साथ दो, वरना बात बिगड़ जाएगी। भोले मुसलमानों ने कहा पीर जी हम तेरे साथ हैं, जैसे तू कहेगा ऐसे ही करेंगे। शेखतकी ने कहा इस कबीर को तब प्रभु मानेंगे जब मेरी लड़की को जीवितकर देगा जो कब्र में दबी हुई है।पूज्य कबीर साहेब से प्रार्थना हुई।
तब कबीर परमेश्वर ने हीं शेख तकी की लड़की को कब्र से जीवित किया ।

♣️कबीर साहेब को मारने के लिए शेखतकी ने तलवार से वार करवाये। लेकिन तलवार कबीर साहेब के आर पार हो जाती क्योंकि कबीर साहेब का शरीर पाँच तत्व का नहीं बना था उनका नूरी शरीर था। फिर सभी लोगों ने कबीर साहेब की जय जयकार की।
साहेब कबीर को मारण चाल्या, शेखतकी जलील।
आर पार तलवार निकल ज्या, समझा नहीं खलील।।


♣️कबीर परमेश्वर को तोप के गोलों से मारने की व्यर्थ चेष्टा"
कबीर जी को मारने के लिए शेखतकी के आदेश पर पहले पत्थर मारे, फिर तीर मारे। परन्तु परमेश्वर की ओर पत्थर या तीर नहीं आया। फिर चार पहर तक तोप यंत्र से गोले चलाए गए।
लेकिन दुष्ट लोग अविनाशी कबीर जी का कुछ नहीं बिगाड़ सके।


♣️दिल्ली के सम्राट सिकंदर लोधी ने जनता को शांत करने के लिए अपने हाथों से हथकड़ियाँ लगाई, पैरों में बेड़ी तथा गले में लोहे की भारी बेल डाली आदेश दिया गंगा दरिया में डुबोकर मारने का। उनको दरिया में फैंक दिया। कबीर परमेश्वर जी की हथकड़ी, बेड़ी और लोहे की बेल अपने आप टूट गयी। परमात्मा जल पर सुखासन में बैठे रहे कुछ नहीं बिगड़ा।

♣️उबलते तेल में जलाने की चेष्टा
कबीर जी को जीवित जलाने के लिए उन्हें उबलते तेल के कड़ाहे में डाला गया। लेकिन समर्थ अविनाशी परमात्मा का  बाल भी बांका नहीं हुआ।


♣️"शेखतकी द्वारा कबीर साहेब को गहरे कुँए में डालना"
शेखतकी ने कबीर साहेब को बांध कर गहरे कुँए में डाल दिया, ऊपर से मिट्टी, ईंट और पत्थर से कुँए को पूरा भर दिया। फिर शेखतकी सिकन्दर राजा के पास गया वहां जाकर देखा तो कबीर परमेश्वर पहले से ही विराजमान थे।

♣️कबीर परमेश्वर को शेखतकी ने उबलते हुए तेल में बिठाया। लेकिन कबीर साहेब ऐसे बैठे थे जैसे कि तेल गर्म ही ना हो। सिकन्दर बादशाह ने तेल के परीक्षण के लिए अपनी उंगली डाली, तो उसकी उंगली जल गई। लेकिन अविनाशी कबीर परमेश्वर जी को कुछ भी नहीं हुआ।

♣️कबीर साहेब जब सत्संग कर रहे थे तब शेखतकी ने सिपाही से कहा कि इनके गले में जहरीला साँप डाल दो लेकिन वो साँप कबीर साहेब के गले में डालते ही सुंदर पुष्पों की माला बन गया। क्योंकि कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा थे।


♣️कबीर साहेब सिकंदर लोधी के दरबार में बैठकर सत्संग कर रहे थे तब शेखतकी ने सिपाही से कहा कि लोहे को गर्म करके पिघलाकर पानी की तरह बनाओ और कबीर साहेब पर डालो। ठीक ऐसा ही हुआ जब लोहा गर्म करके पिघलाकर कबीर साहेब पर डाला तब वह फूल बन गए जैसे की मानो फूलों की वर्षा होने लगी। तब सभी ने कबीर साहेब की जय जयकार लगाई।

♣️परमात्मा के शरीर में कीले ठोकने का व्यर्थ प्रयत्न"
कबीर साहेब को मारने के लिए एक दिन शेखतकी ने सिपाहियों को आदेश दिया की कबीर साहेब को पेड़ से बांधकर शरीर पर बड़ी बड़ी कील ठोक दो। लेकिन जब कील ठोकने चले तो सिपाहियों के हाथ पैर काम करना बंद हो गए और वो वहाँ से भाग गए और शेखतकी को फिर परमात्मा कबीर साहेब के सामने लज्जित होना पड़ा।


♣️शेखतकी पीर ने कबीर साहेब को नीचा दिखाने के लिए 3 दिन के भंडारे की कबीर साहेब के नाम से सभी सभी आश्रमों में झूठी चिठ्ठी डलवाई थी कि कबीर जी 3 दिन का भंडारा करेंगे सभी आना भोजन के बाद एक मोहर, एक दोहर भी देंगे। कबीर साहेब ने 3 दिन का मोहन भंडारा भी करा दिया था और कबीर साहेब की महिमा भी हुई।


♣️"भूखा प्यासा मारने की चेष्टा"
एक दिन शेखतकी ने कबीर साहेब को नीम के पेड़ में लोहे के तार से बांधकर भूखा प्यासा छोड़ दिया और सोचा कि कबीर साहेब मर जाएंगे। लेकिन कबीर साहेब को कुछ नहीं हुआ और वो वापिस जीवित दरबार में पहुँच गए।
पानी से पैदा नहीं, स्वांसा नहीं शरीर।
अन्न आहार करता नहीं, ताका नाम कबीर।।

♣️"मुर्दे को जीवित करने की परीक्षा लेना"
दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी के पीर शेख तकी ने कहा कबीर जी को तब अल्लाह मानेंगे जब मेरी मरी हुई लड़की को जीवित कर देगा जो कब्र में दबी हुई है। कबीर परमेश्वर जी ने अपनी समर्थ शक्ति से हजारों लोगों के सामने उस लड़की को जीवित किया और उसका नाम कमाली रखा। कबीर परमेश्वर सर्वशक्तिमान हैं।


♣️"कबीर साहेब को जहरीले बिच्छू द्वारा मारने का प्रयास"
शेखतकी के आदेश पर सिपाही बहुत सारे बिच्छू टोकरी में भरकर सिकंदर लोधी राजा के दरबार में गए जहाँ कबीर साहेब सत्संग कर रहे थे फिर सिपाहियों ने कबीर साहेब पर बिच्छू छोड़ना शुरू कर दिया। लेकिन सभी बिच्छू कबीर साहेब तक पहुँचने से पहले ही विलीन हो गए।
यह देखकर सभी लोग हैरान हो गए और कबीर साहेब के जयकारे लगाने लगे

♣️"खूनी हाथी से मरवाने की व्यर्थ चेष्टा"
शेखतकी के कहने पर दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने कबीर परमेश्वर को खूनी हाथी से मरवाने की आज्ञा दे दी। शेखतकी ने महावत से कहकर हाथी को एक-दो शीशी शराब की पिलाने को कहा।
हाथी मस्ती में भरकर कबीर परमेश्वर को मारने चला। कबीर जी के हाथ-पैर बाँधकर पृथ्वी पर डाल रखा था। जब हाथी परमेश्वर कबीर जी से दस कदम (50 फुट) दूर रह गया तो परमेश्वर कबीर के पास बब्बर शेर खड़ा केवल हाथी को दिखाई दिया। हाथी डर से चिल्लाकर (चिंघाड़ मारकर) भागने लगा। परमेश्वर के सब रस्से टूट गए। उनका तेजोमय विराट रूप सिकंदर लोधी को दिखा। तब बादशाह ने कांपते हुए अपने गुनाह की माफी मांगी।


♣️दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी के पीर शेखतकी ने कहा कि अगर यह कबीर अल्लाह है तो इसकी परीक्षा ली जाए कोई मुर्दा जीवित करे। तब सर्वशक्तिमान कबीर परमात्मा ने दरिया में बहते आ रहे एक लडके के‌ शव को हजारों लोगों के सामने जीवित किया। उसका नाम कमाल रखा। कबीर परमेश्वर समर्थ भगवान हैं। पूर्ण परमात्मा ही मृत व्यक्ति को जीवित कर सकता हैं।

♣️शेखतकी ने जुल्म गुजारे, बावन करी बदमाशी,
खूनी हाथी के आगे‌ डालै, बांध जूड अविनाशी,
हाथी डर से भाग जासी, दुनिया गुण गाती है।

शेखतकी ने अविनाशी को मारने के लिए खूनी हाथी के आगे डाला। हाथी कबीर भगवान के पास जाते ही डर कर भाग गया। तब लोगों ने कबीर साहेब की जय-जय कार की। कबीर भगवान अविनाशी है।

👆 इस तरह से 52 बार मारने का प्रयास किया गया था कबीर परमात्मा को।

पूर्ण परमात्मा अल्लाहुअकबर(अल्लाहु कबीरू) ही सर्व पाप नाश (क्षमा) कर सकता है। अन्य प्रभु तो केवल किए कर्म का फल ही दे सकते हैं। जैसे प्राणी को दुःख तो पाप से होता है तथा सुख पुण्य से।  यह किसी भी अन्य भगवान से ठीक नहीं हो सकता है।

क्योंकि पाप नाशक (क्षमा करने वाले) पूर्ण परमात्मा कविर्देव/अल्लाहुअकबर (अल्लाहु कबीरू) के वास्तविक ज्ञान व भक्ति विधि को न तो हिन्दू संत, गुरुजन जानते हैं तथा न ही मुसलमान पीर, काजी तथा मुल्ला ही परिचित हैं। न श्री राम तथा श्री कृष्ण अर्थात्श्री विष्णु जी जानते तथा न ही श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी, न ब्रह्म (जिसे आप निराकार प्रभु कहते हो) जानता। न हजरत मुहम्मद जानता था, न हीअन्य मुसलमान पीर व काजी तथा मुल्ला ही जानते हैं।



अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से

उस सर्व शक्तिमान परमेश्वर की पूजा विधि तथा पूर्ण ज्ञान केवल संत रामपाल दास जी महाराज जानते हैं। 


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Friday, 29 May 2020

मगहर में कबीर साहेब की अद्भुत लीला

प्रभु कबीर जी का मगहर से सशरीर सत्यलोक गमन"
                                     तथा 
                            " सूखी नदी में नीर बहाना"


राम और अल्लाह एक ही हैं!
600 साल पहले कबीर साहेब ने मगहर में शरीर छोड़ने से पहले सभी लोगो को अपना ज्ञान समझाते हुए कहा कि राम और अल्लाह एक ही हैं सभी धर्मों के लोग एक परमपिता की संतान है।


         काशी तज गुरु मगहर आए, दोनों दीन के पीर,
                       कोई गाड़े कोई अग्न जरावे, ढूंढा ना पाया शरीर ।।
          चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।
        दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।

कबीर साहेब  इस भ्रम को तोड़ने के लिए कि जो मगहर में मरता है वह गधा बनता है और कांशी में मरने वाला स्वर्ग जाता है। (बन्दी छोड़ कहते थे कि सही विधि से भक्ति करने वाला प्राणी चाहे वह कहीं पर प्राण त्याग दे वहअपने सही स्थान पर जाएगा।) उन नादानों का भ्रम निवारण करने के लिए कबीर साहेब ने कहा कि मैं मगहर में मरूँगा और सभी ज्योतिषी वाले देख लेना कि मैं कहा जाऊ गा? नरक में जाऊ ँ गा या स्वर्ग से भी ऊ। पर सतलोक में।

          "देख्या मगहर जहूरा सतगुरु, कांशी मैं कीर्ति कर चाले, 
          झिलमिल देही नूरा हो।"


कबीर साहेब ने कांशी से मगहर के लिये प्रस्थान किया। बीर सिंह बघेलाऔर बिजली खाँ पठान ये दोनों ही सतगुरू के शिष्य थे। बीर सिंह ने अपनी सेना साथ ले ली कि कबीर साहेब वहाँ पर अपना शरीर छोड़ेंगे। इस शरीर को लेकर हम काँशी में हिन्दु रीति से अंतिम संस्कार करेंगे। यदि मुसलमान नहीं मानेंगे तो लड़ाई कर के शव को लायेंगे। सेना भी साथ ले ली, अब इतनी बुद्धि है हमारी। हर रोज शिक्षा दिया करते कि हिन्दु मुसलमान दो नहीं हैं। अंत में फिर वही बुद्धि। उधर से बिजली खाँ पठान को पता चला कि कबीर साहेब यहाँ पर आ रहे हैं। बिजली खाँ पठान ने सतगुरू तथा सर्व आनेवाले भक्तों तथा दर्शकों की खाने तथा पीने की सारी व्यवस्था की और कहा कि सेना तुम भी तैयार कर लो। हम अपने पीर कबीर साहेब का यहाँ पर मुसलमान विधि से अंतिम संस्कार करेंगे।

तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छांडी पदहि समाये।
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं।।

                       कबीर साहेब के मगहर पहुँचने के बाद बिजली खाँ ने कहा कि महाराज जी स्नान करो। कबीर साहेब ने कहा कि बहते पानी में स्नान करूँगा। बिजली खान ने कहा कि सतगुरू देव यहाँ पर साथ में एक आमी नदी है, वह भगवान शिव के श्राप से सूखी पड़ी है।उसमें पानी नहीं है। जैसी व्यवस्था दास से हो पाई है पानी का प्रबंध करवाया है। लेकिन संगत बहुत आ गई। नहाने की तो बात बन नहीं पाएगी। पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में बाहर से मंगवा रखा है। कबीर साहेब ने कहा कि वह नदी देखें कहाँ पर है? उस नदी पर जा कर साहेब ने हाथ से ऐसे इशारा किया था जैसे यातायात (ट्रैफिक) का सिपाही रूकी हुई गाडि़यों को जाने का संकेत करता है। वह आमी नदी पूरी भरकर चल पड़ी।







                वर्तमान में उस व्यक्ति का एक पूरा मौहल्ला बना हुआ है, नाम है "मौहल्ला कबीर करम"

           (यह आमी नदी वहाँ पर अभी भी विद्यमान है)
सबने जय जयकार की। साहेब ने कहा कि एक चदद्र नीचे बिछाओ, एक मैं ऊपर ओढ़ूँगा।(क्योंकि वे जानी जान तो थे) कहने लगे कि ये सेना कैसे ला रखी है तुमने?अब बिजली खाँ पठान और बीर सिंह बघेला आमने-सामने खड़े हैं। उन्होंने तो मुँह लटका लिया और बोले नहीं। वे दूसरे हिन्दु और मुसलमान बिनानाम वाले बोले कि जी हम आपका अंतिम संस्कार अपनी विधि से करेंगे।दूसरे कहते हैं कि हम अपनी विधि से करेंगे। चढा ली बाहें, उठा लिए हथियार तथा कहने लगे कि आ जाओ। कबीर साहेब ने कहा कि नादानों क्यामैंने यही शिक्षा दी थी 120 वर्ष तक। इस मिट्टी का तुम क्या करोगे? चाहे फूंक दो या गाड दो, इससे क्या मिलेगा? तुमने क्या शिक्षा ली मेरे से? सुनलो यदि झगड़ा कर लिया तो मेरे से बुरा नहीं होगा। वे जानते थे कि ये कबीर साहेब परम शक्ति युक्त हैं। यदि कुछ कह दिया तो बात बिगड़जाएगी। शांत हो गये पर मन में यही थी कि शरीर छोड़ने दो, हमने तो यही करना है। वे तो जानी जान थे। उस दिन गृहयुद्ध शुरू हो जाता, सत्यानाश हो जाता, यदि साहेब अपनी कृपा न बख्सते। कबीर साहेब ने कहा कि एक काम कर लेना तुम मेरे शरीर को आधा-आधा काट लेना। परन्तु लड़ना मत।ये मेरा अंतिम आदेश सुन लो और मानो, इसमें जो वस्तु मिले उसको आधा आधा कर लेना।

          "लोका मति के भोरा रे, जो काशी तन तजै कबीरा,
                       तौ रामहि कौन निहोरा रे"
   
महिना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी वि. स. 1575 (एक हजार पाँच सौ पचहतर) सन् 1518 को कबीर साहेब ने एक चद्दर नीचे बिछाई और एक ऊपर ओढ़ ली। कुछ फूल कबीर साहेब के नीचे वालीचद्दर पर दो इंच मोटाई में बिछा दिये। थोड़ी सी देर में आकाश वाणी हुई कि मैं तो जा रहा हूँ सतलोक में (स्वर्ग से भी ऊपर)। देख लो चद्दर उठाकर इसमें कोई शव नहीं है। जो वस्तु है वे आधी-आधी ले लेना परन्तु लड़ना नहीं। जब चदद्र उठाई तो सुगंधित फूलों का ढेर शव के समान ऊँचा मिला।




तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छांडी पदहि समाये।
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं।।

                            ‘‘बीर देव सिंह बघेल और बिजली खाँ पठान एक दूसरे के सीने से लगकर ऐसे रोने लगे जैसे कि बच्चों की माँ मर जाती है। फिर तो वहाँ पर रोहा राहट मच गया। हिन्दु और मुसलमानों का प्यार सदा के लिए अटूट बनगया। एक दूसरे को सीने से लगा कर हिन्दू और मुसलमान रो रहे थे। कहने लगे कि हम समझे नहीं। ये तो वास्तव में अल्लाह आए हुए थे। और ऊपरआकाश में प्रकाश का गोला जा रहा था। तो वहाँ मगहर में दोनों धर्मों (हिन्दुओं तथा मुसलमानों) ने एक-एक चद्दर तथा आधे-आधे सुगंधित फूल लेकर सौ फूट के अंतर पर एक-एक यादगार भिन्न-भिन्न बनाई ,जो आज भी विद्यमान है तथा कुछ फूल लाकर कांशी में जहाँ कबीर साहेब एक चबूतरे(चौरा) पर बैठकर सतसंग किया करते वहाँ कांशी चौरा नाम से यादगार बनाई। अब वहाँ पर बहुत बड़ा आश्रम बना हुआ है। मगहर में दोनों यादगारों के बीच में एक साझला द्वार भी है आपसमें कोई भेद-भाव नहीं है।

चदरि फूल बिछाये सतगुरु , देखें सकल जिहाना हो ।
 च्यारि दाग से रहत जुलहदी , अविगत अलख अमाना हो ।।



परमात्मा कबीर जी के मगहर से सशरीर जाने के प्रमाण को मलूक दास जी भी प्रमाणित करते हुए कहते हैं:-


काशी तज गुरु मगहर आए, दोनों दीन के पीर,
कोई गाड़े कोई अग्न जरावे, ढूंढा ना पाया शरीर ।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।
दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।


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Thursday, 28 May 2020

पूर्ण परमात्मा चारों युगों में प्रकट होते हैं



सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।
”सतयुग में कविर्देव (कबीर साहेब) का सत्सुकृत नाम से प्राकाट्य
“तत्वज्ञान के अभाव से श्रद्धालु शंका व्यक्त करते हैं कि जुलाहे रूप में कबीर जी तो वि. सं. 1455 (सन् 1398) में काशी में आए हैं। वेदों में कविर्देव यही काशी वाला जुलाहा (धाणक) कैसे पूर्ण परमात्मा हो सकता है?
इस विषय में दास (सन्त रामपाल दास) की प्रार्थना है कि यही पूर्ण परमात्माकविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपनावास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं।
सतयुग में सतसुकृत नाम से,
त्रोतायुग में मुनिन्द्र नाम से,
द्वापर युग में करूणामय नाम से
कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं



इसके अतिरिक्तअन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अन्तर्ध्यान हो जातेहैं। उस समय लीला करने आए परमेश्वर को प्रभु चाहने वाले श्रद्धालु नहीं पहचानसके, क्योंकि सर्व महर्षियों व संत कहलाने वालों ने प्रभु को निराकार बताया है।वास्तव में परमात्मा आकार में है। मनुष्य सदृश शरीर युक्त हैं। परंतु परमेश्वर का शरीर नाडि़यों के योग से बना पांच तत्व का नहीं है। एक नूर तत्व से बना है।
पूर्णपरमात्मा जब चाहे यहाँ प्रकट हो जाते हैं वे कभी मां से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे सर्वके उत्पत्ति कर्त्ता हैं।पूर्ण प्रभु कबीर जी (कविर्देव) सतयुग में सतसुकृत नाम से स्वयं प्रकट हुए थे।उस समय गरुड़ जी, श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि को सतज्ञानसमझाया था। श्री मनु महर्षि जी को भी तत्वज्ञान समझाना चाहा था। परन्तु श्री मनुजी ने परमेश्वर के ज्ञान को सत न जानकर श्री ब्रह्मा जी से सुने वेद ज्ञान परआधारित होकर तथा अपने द्वारा निकाले वेदों के निष्कर्ष पर ही आरूढ़ रहे। इसकेविपरीत परमेश्वर सतसुकृत जी का उपहास करने लगे कि आप तो सर्व विपरीत ज्ञानकह रहे हो। इसलिए परमेश्वर सतसुकृत का उर्फ नाम वामदेव निकाल लिया (वामका अर्थ होता है उल्टा, विपरीत जैसे बायां हाथ को वामा अर्थात् उलटा हाथ भी कहतेहैं। जैसे दायें हाथ को सीधा हाथ भी कहते हैं)।इस प्रकार सतयुग में परमेश्वर कविर्देव जी जो सतसुकृत नाम से आए थे ।
पूर्ण परमात्मा चारों युगों में प्रगट होते हैं इसका प्रमाण हमारे पवित्र ग्रंथ
वेद गीता कुरान बाइबल भी देते हैं।
💠पूर्ण परमात्मा कविर्देव चारों युगों में आए हैं। सृष्टी व वेदों की रचना से पूर्व भी अनामी लोक में मानव सदृश कविर्देव नाम से विद्यमान थे। कबीर परमात्मा ने फिर सतलोक की रचना की, बाद में परब्रह्म, ब्रह्म के लोकों व वेदों की रचना की इसलिए वेदों में कविर्देव का विवरण है।
💠श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 8 का श्लोक 3 में
गीता ज्ञान दाता ब्रह्म भगवान ने कहा है कि वह परम अक्षर ‘ब्रह्म‘ है जो जीवात्मा के साथ सदा रहने वाला है।
वह परम अक्षर ब्रह्म गीता ज्ञान दाता से अन्य है, वह कबीर परमात्मा हैं।

💠परमात्मा शिशु रूप में प्रकट होकर लीला करता है। तब उनकी परवरिश कंवारी गायों के दूध से होती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
यह लीला कबीर परमेश्वर ही आकर करते हैं।
💠ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में कहा गया है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, सन्त व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर साहेब) ही है।
💠पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तीसरे मुक्ति धाम अर्थात् सतलोक में रहता है। -
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18

💠पवित्र बाइबल में भगवान का नाम कबीर है - अय्यूब 36:5
अय्यूब 36:5 (और्थोडौक्स यहूदी बाइबल - OJB)
परमेश्वर कबीर (शक्तिशाली) है, किन्तु वह लोगों से घृणा नहीं करता है। परमेश्वर कबीर (सामर्थी) है और विवेकपूर्ण है।
बाइबल ने भी स्पष्ट किया है की प्रभु का नाम कबीर है।
💠पूर्ण परमात्मा "सत कबीर" हैं।
हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।
‘‘राग तिलंग महला 1‘‘ पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721
नानक देव जी कहते हैं:-
हे सर्व सृष्टि रचनहार, दयालु ‘‘सतकबीर‘‘ आप निर्विकार परमात्मा हैं।
💠जिस समय सर्व सन्त जन शास्त्र विधि त्यागकर मनमानी पूजा द्वारा भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं कबीर प्रभु ही आते हैं।
💠"सर्व शक्तिमान परमेश्वर कबीर"
पूर्ण परमात्मा आयु बढ़ा सकता है और कोई भी रोग को नष्ट कर सकता है। - ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 161 मंत्र 2, 5, सुक्त 162 मंत्र 5, सुक्त 163 मंत्र 1 - 3
💠परमात्मा साकार है व सहशरीर है (प्रभु राजा के समान दर्शनीय है)
यजुर्वेद अध्याय 5, मंत्र 1, 6, 8, यजुर्वेद अध्याय 1, मंत्र 15, यजुर्वेद अध्याय 7 मंत्र 39, ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 31, मंत्र 17, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 86, मंत्र 26, 27, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 82, मंत्र 1 - 3
💠ॠगवेद मण्डल 9, सूक्त 82, मंत्र 1 और ॠगवेद मण्डल 9, सूक्त 95, मंत्र 1-5 के अनुसार
परमात्मा साकार मानव सदृश है वह राजा के समान दर्शनीय है और सतलोक में तेजोमय शरीर में विद्यमान है उसका नाम कविर्देव (कबीर) है ।


💠परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है। जो परमेश्वर अचल अर्थात् वास्तव में अविनाशी है।
- पवित्र अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मंत्र 7
💠कबीर परमात्मा पाप का शत्रु है, पाप विनाशक हैं।
कबीर परमात्मा सम्पूर्ण शांति दायक है - यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32
💠परमात्मा कबीर साहेब पाप विनाशक हैं
यजुर्वेद अध्याय 8 मन्त्र 13 में कहा गया है कि परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है। संत रामपाल जी महाराज जी से उपदेश लेने व मर्यादा में रहने वाले भक्त के पाप नष्ट हो जाते हैं।
💠कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा हैं
"धाणक रूप रहा करतार"
राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ 24
नानक देव जी कहते हैं :-
मुझे धाणक रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया।
💠पवित्र कुरान शरीफ में प्रभु सशरीर है तथा उसका नाम कबीर है सुरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में लिखा है कि कबीर परमात्मा ने छः दिन में सृष्टी की रचना की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।
💠पवित्र कुरान में लिखा है कबीर अल्लाह ही पूजा के योग्य हैं।
वह सर्व पापों को विनाश करने वाले हैं। उनकी पवित्र महिमा का गुणगान करो - सुरत-फुर्कानि 25:58
💠पवित्र कुरान प्रमाणित करती है अल्लाह कबीर साहेब ही हैं।
सुरत-फुर्कानि नं. 25 आयत 52
कबीर ही पूर्ण प्रभु है तथा कबीर अल्लाह के लिए अडिग रहना।
💠आदरणीय गरीबदास जी को पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) स्वयं सत्यभक्ति प्रदान करके सत्यलोक लेकर गए थे, तब अपनी अमृतवाणी में आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने आँखों देखकर कहाः-
गरीब, अजब नगर में ले गए, हमकुँ सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सुते चादर तान।।



कबीर परमात्मा ने ही 6 दिन में सृष्टि रची
बाईबल उत्पत्ति ग्रंथ 1:26 - 2:3 में प्रमाण है कि कबीर परमेश्वर ने 6 दिन में सर्व सृष्टि रचकर सातवें दिन विश्राम किया तथा मनुष्यों की उत्पत्ति अपने स्वरुप के अनुसार की।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से

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वास्तविक सृष्टि रचना

सुक्ष्म वेद से निष्कर्ष रूप सष्टी रचना का वर्णन


प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सृष्टी की रचना को पढेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, परन्तु सर्व पवित्रा सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़ कर दाँतों तले उँगली दबाऐंगे कि यह वास्तविक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथ पढ़ते रहिए तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखिए।

 आप की एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा। 


पवित्रात्माऐं कृप्या सत्यनारायण(अविनाशी प्रभु/सतपुरुष) द्वारा रची सृष्टी रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़ें।

1. पूर्ण ब्रह्म :- इस सृष्टी रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु),अलख पुरुष-अलख लोक का स्वामी

 (प्रभु), अगम पुरुष-अगम लोक कास्वामी 

(प्रभु) तथा अनामी पुरुष-अनामी अकह लोक का स्वामी 

(प्रभु) तो एकही पूर्ण ब्रह्म है,

 जो वास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-2 रूप धारण करकेअपने चारों लोकों में रहता है। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्मण्ड आते हैं।

2. परब्रह्म :- यह केवल सात संख ब्रह्मण्ड का स्वामी (प्रभु) है। यहअक्षर पुरुष भी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्मण्ड भी वास्तव मेंअविनाशी नहीं है।


3. ब्रह्म :- यह केवल इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी (प्रभु) है। इसे क्षरपुरुष, ज्योति निरंजन, काल आदि उपमा से जाना जाता है। यह तथा इसकेसर्व ब्रह्मण्ड नाशवान हैं।(उपरोक्त तीनों पुरूषों (प्रभुओं) का प्रमाण पवित्रा श्री मद्भगवत गीताअध्याय 15 श्लोक 16.17 में भी है।)


4. ब्रह्मा :- ब्रह्मा इसी ब्रह्म का ज्येष्ठ पुत्र है, विष्णु मध्य वाला पुत्र है तथा शिव अंतिम तीसरा पुत्र है।


 ये तीनों ब्रह्म के पुत्र केवल एक ब्रह्मण्ड में एक विभाग (गुण) के स्वामी (प्रभु) हैं तथा नाशवान हैं।

सर्व प्रथम केवल एक स्थान ‘अनामी (अनामय) लोक‘ था। जिसे अकहलोक भी कहा जाता है, पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था।उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है। सभीआत्माऐं उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी। इसी कविर्देव काउपमात्मक (पदवी का) नाम अनामी पुरुष है (पुरुष का अर्थ प्रभु होता है। प्रभुने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुषही पड़ा है।) अनामी पुरूष के एक रोम कूप का प्रकाश संख सूर्यों की रोशनीसे भी अधिक है।
विशेष :- जैसे किसी देश के आदरणीय प्रधान मंत्रा जी का शरीर कानाम तो अन्य होता है तथा पद का उपमात्मक (पदवी का) नाम प्रधानमंत्राहोता है।कई बार प्रधानमंत्रा जी अपने पास कई विभाग भी रख लेते हैं। तब जिस भीविभाग के दस्त्तावेजों पर हस्त्ताक्षर करते हैं तो उस समय उसी पद को लिखतेहैं। जैसे गृहमंत्रालय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेगें तो अपने को गृह मंत्रालिखेगें। वहाँ उसी व्यक्ति के हस्त्ताक्षर की शक्ति कम होती है। इसी प्रकारकबीर परमेश्वर (कविर्देव) की रोशनी में अंतर भिन्न-2 लोकों में होताजाता है।ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे केतीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द(वचन)से की। यही पूर्णब्रह्म परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही अगम लोक मेंप्रकट हुआ तथा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अगम लोक का भी स्वामी है तथावहाँ इनका उपमात्मक (पदवी का) नाम अगम पुरुष अर्थात् अगम प्रभु है।इसी अगम प्रभु का मानव सदृश शरीर बहुत तेजोमय है जिसके एक रोम कूपकी रोशनी खरब सूर्य की रोशनी से भी अधिक है।यह पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबिर देव=कबीर परमेश्वर) अलख लोकमें प्रकट हुआ तथा स्वयं ही अलख लोक का भी स्वामी है तथा उपमात्मक(पदवी का) नाम अलख पुरुष भी इसी परमेश्वर का है तथा इस पूर्ण प्रभु कामानव सदृश शरीर तेजोमय (स्वर्ज्योति) स्वयं प्रकाशित है। एक रोम कूप कीरोशनी अरब सूर्यों के प्रकाश से भी ज्यादा है।यही पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यहीहै। इसलिए इसी का उपमात्मक (पदवी का) नाम सतपुरुष (अविनाशी प्रभु)है। इसी का नाम अकालमूर्ति - शब्द स्वरूपी राम - पूर्ण ब्रह्म - परमअक्षर ब्रह्म आदि हैं। इसी सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) का मानव सदृशशरीर तेजोमय है। जिसके एक रोमकूप का प्रकाश करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।इस कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की।
एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की।

एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा। सोलह पुत्रों के नाम हैं।

(1) ‘‘कूर्म’’, (2)‘‘ज्ञानी’’, (3) ‘‘विवेक’’, (4) ‘‘तेज’’, (5) ‘‘सहज’’, (6)‘‘सन्तोष’’, (7)‘‘सुरति’’, (8) ‘‘आनन्द’’, (9) ‘‘क्षमा’’, (10) ‘‘निष्काम’’,(11) ‘जलरंगी‘ (12)‘‘अचिन्त’’, (13) ‘‘प्रेम’’, (14) ‘‘दयाल’’, (15) ‘‘धैर्य’’(16) ‘‘योग संतायन’’ अर्थात् ‘‘योगजीत‘‘

सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सत्यलोक की अन्य रचनाका भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की। अचिन्त ने अक्षर पुरुष (परब्रह्म) कीशब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना। अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया, वहाँ आनन्द आया तथा सो गया। लम्बे समय तक बाहर नहीं आया। तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगानेके लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जललेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डेको मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ दिया। अण्डे की गड़गड़ाहट से अक्षरपुरुष की निंद्रा भंग हुई। उसने अण्डे को क्रोध से देखा जिस कारण से अण्डेके दो भाग हो गए। उसमें से ज्योति निंरजन (क्षर पुरुष) निकला जो आगेचलकर ‘काल‘ कहलाया। इसका वास्तविक नाम ‘‘कैल‘‘ है। तब सतपुरुष(कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत के द्वीपमें रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीपमें रहने लगे (बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई कि कहीं फिर प्रभुता कीतड़फ न बन जाए, क्योंकि समर्थ बिन कार्य सफल नहीं होता) फिर पूर्ण धनी कविर्देव ने सर्व रचना स्वयं की। अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री)शक्ति उत्पन्न की, जिससे सर्व ब्रह्मण्डों को स्थापित किया। इसी कोपराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व आत्माओं को अपने हीअन्दर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर सदृश उत्पन्न किया।
प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा जिसका तेज 16 (सोलह)सूर्यों जैसा मानव सदृश ही है। परन्तु परमेश्वर के शरीर के एक रोम कूपका प्रकाश करोड़ों सूर्यों से भी ज्यादा है। बहुत समय उपरान्त क्षर पुरुष(ज्योति निरंजन) ने सोचा कि हम तीनों (अचिन्त - अक्षर पुरुष - क्षर पुरुष)एक द्वीप में रह रहे हैं तथा अन्य एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। मैं भी साधनाकरके अलग द्वीप प्राप्त करूँगा। उसने ऐसा विचार करके एक पैर पर खड़ाहोकर सत्तर (70) युग तक तप किया।

”आत्माऐं काल के जाल (जन्म-मृत्यु के चक्र)में कैसे फंसी?

“विशेष :- जब ब्रह्म (ज्योति निरंजन) तप कर रहा था हम सभी आत्माऐं,जो आज ज्योति निरंजन के इक्कीस ब्रह्मण्डों में रहते हैं इसकी साधना परआसक्त हो गए तथा अन्तरात्मा से इसे चाहने लगे। अपने सुखदाई प्रभु सत्यपुरूष से विमुख हो गए। जिस कारण से पतिव्रता पद से गिर गए। पूर्ण प्रभुके बार-बार सावधान करने पर भी हमारी आसक्ति क्षर पुरुष से नहीं हटी।{यही प्रभाव आज भी काल सृष्टी में विद्यमान है। जैसे नौजवान बच्चे फिल्मस्टारों (अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों) की बनावटी अदाओं तथा अपने रोजगारउद्देश्य से कर रहे भूमिका पर अति आसक्त हो जाते हैं, रोकने से नहीं रूकते।यदि कोई अभिनेता या अभिनेत्रा निकटवर्ती शहर में आ जाए तो देखें उन नादानबच्चों की भीड़ केवल दर्शन करने के लिए बहु संख्या में एकत्रित हो जाती हैं।‘लेना एक न देने दो‘ रोजी रोटी अभिनेता कमा रहे हैं, नौजवान बच्चे लुट रहेहैं। माता-पिता कितना ही समझाऐं किन्तु बच्चे नहीं मानते। कहीं न कहीं, कभीन कभी, लुक-छिप कर जाते ही रहते हैं।}पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर प्रभु) ने क्षर पुरुष से पूछा कि बोलो क्या चाहतेहो? उसने कहा कि पिता जी यह स्थान मेरे लिए कम है, मुझे अलग से द्वीपप्रदान करने की कृपा करें। हक्का कबीर (सत् कबीर) ने उसे 21 (इक्कीस)ब्रह्मण्ड प्रदान कर दिए। कुछ समय उपरान्त ज्योति निरंजन ने सोचा इसमें कुछ रचना करनी चाहिए। खाली ब्रह्मण्ड(प्लाट) किस काम के। यह विचारकर 70 युग तप करके पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर प्रभु) से रचना सामग्रीकी याचना की। सतपुरुष ने उसे तीन गुण तथा पाँच तत्व प्रदान कर दिए,जिससे ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने अपने ब्रह्मण्डों में कुछ रचना की। फिर सोचाकि इसमें जीव भी होने चाहिए, अकेले का दिल नहीं लगता। यह विचारकरके 64 (चौसठ) युग तक फिर तप किया। पूर्ण परमात्मा कविर् देव केपूछने पर बताया कि मुझे कुछ आत्मा दे दो, मेरा अकेले का दिल नहीं लगरहा। तब सतपुरुष कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि ब्रह्म तेरे तप केप्रतिफल में मैं तुझे और ब्रह्मण्ड दे सकता हूँ, परन्तु मेरी आत्माओं को किसीभी जप-तप साधना के प्रतिफल रूप में नहीं दे सकता। हाँ, यदि कोई स्वेच्छासे तेरे साथ जाना चाहे तो वह जा सकता है। युवा कविर् (समर्थ कबीर) केवचन सुन कर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्मा पहलेसे ही उस पर आसक्त थे। हम उसे चारों तरफ से घेर कर खड़े हो गए।ज्योति निंरजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्मण्ड प्राप्त किए हैं।
वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे? हमसभी हंसों ने जो आज 21 ब्रह्मण्डों में परेशान हैं, कहा कि हम तैयार हैं यदिपिता जी आज्ञा दें तब क्षर पुरुष पूर्ण ब्रह्म महान् कविर् (समर्थ कबीर प्रभु)के पास गया तथा सर्व वार्ता कही। तब कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहाकि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूंगा। क्षर पुरुष तथा परम अक्षरपुरुष (कविरमितौजा) दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए। सत् कविर्देवने कहा कि जो हंस आत्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता है हाथ ऊपर करकेस्वीकृति दे। अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई। किसी नेस्वीकृति नहीं दी। बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा। तत्पश्चात् एक हंसआत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ। फिर तोउसकी देखा-देखी (जो आज काल (ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्मण्डों में फंसी हैं) हमसभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी। परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन सेकहा कि आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृतिदी है मैं उन सर्व हंस आत्माओं को आपके पास भेज दूंगा। ज्योति निरंजनअपने 21 ब्रह्मण्डों में चला गया। उस समय तक यह इक्कीस ब्रह्मण्डसतलोक में ही थे।तत् पश्चात पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़कीका रूप दिया परन्तु स्त्रा इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को (जिन्होंनेज्योति निरंजन (ब्रह्म) के साथ जाने की सहमति दी थी) उस लड़की के शरीरमें प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा (आदि माया/ प्रकृति देवी/दुर्गा) पड़ा तथा सत्य पुरूष ने कहा कि पुत्रा मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदानकर दी है जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना। पूर्ण ब्रह्म कविर्देव(कबीर साहेब) ने अपने पुत्रा सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरुष के पासभिजवा दिया। सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी नेइस बहन के शरीर में उन सर्व आत्माओं को प्रवेश कर दिया है जिन्होंनेआपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी तथा इसको पिता जी नेवचन शक्ति प्रदान की है, आप जितने जीव चाहोगे प्रकृति अपने शब्द सेउत्पन्न कर देगी। यह कह कर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया।युवा होने के कारण लड़की का रंग-रूप निखरा हुआ था। ब्रह्म के अन्दरविषय-वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रकृति देवी के साथ अभद्र गति विधिप्रारम्भ की। तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदानकी हुई शब्द शक्ति है। आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न करदूँगी। आप मैथुन परम्परा शुरु मत करो। आप भी उसी पिता के शब्द सेअण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद मे उत्पन्न हुई हूँ। आप मेरे बड़े भाई हो, बहन-भाई का यह योग महापाप काकारण बनेगा। परन्तु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहींसुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्रा इन्द्री (भग) प्रकृति कोलगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी। उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जतरक्षा के लिए कोई और चारा न देख सुक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजनके खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्णब्रह्म कविर् देव से अपनी रक्षाके लिए याचना की। उसी समय कविर्देव (कविर् देव) अपने पुत्रा योगसंतायन अर्थात् जोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्मके उदर से बाहर निकाला तथा कहा कि ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम‘काल‘ होगा। तेरे तथा तेरे इक्कीस ब्रह्मण्डों में रहने वाले प्राणियों केजन्म-मृत्यु सदा होते रहेंगे। इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरुष होगा तथा एकलाख मानव शरीर धारी प्राणियों को प्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाखउत्पन्न किया करेगा। आप दोनों को इक्कीस ब्रह्मण्ड सहित निष्कासित कियाजाता है। इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्मण्ड विमान की तरह चल पड़े। सहजदास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से सोलह संख कोस (एक कोसलगभग 3 कि. मी. का होता है) की दूरी पर आकर रूक गए।विशेष विवरण - अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है।1. पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसेसतपुरुष, अकालपुरुष, शब्द स्वरूपी राम, परमेश्वर, परम अक्षर ब्रह्म/पुरुषआदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्मण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।2. परब्रह्म जिसे ‘‘अक्षर पुरुष’’ तथा ‘‘ईश्वर’’ भी कहा जाता है। यहवास्तव में अविनाशी नहीं है। यह सात संख ब्रह्मण्डों का स्वामी है।3. ब्रह्म जिसे ज्योति निरंजन, काल, कैल, ईश, क्षर पुरुष तथा धर्मरायआदि नामों से जाना जाता है, जो केवल इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी है। अबआगे इसी ब्रह्म (काल) की सृष्टी के एक ब्रह्मण्ड का परिचय दिया जाएगा,जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगे - ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव।ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्मण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म (क्षरपुरुष) स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप मेंरहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्तिकरता है। उनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ही रखता है। जो ब्रह्म कापुत्रा ब्रह्मा है वह एक ब्रह्मण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोकतथा पाताल लोक) में एक रजोगुण विभाग का मंत्रा (स्वामी) है। इसेत्रिलोकीय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है उसेमहाब्रह्मा व ब्रह्मलोकीय ब्रह्मा कहा है। इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव,महाशिव, महाविष्णु भी कहा है।श्री विष्णु पुराण में प्रमाण :- चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230.231 पर श्रीब्रह्मा जी ने कहा :- जिस अजन्मा, सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य,अन्त, स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते (श्लोक 83)जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जोपुरूष रूप है तथा जो रूद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनन्त रूपसे सम्पूर्ण जगत् को धारण करता है। (श्लोक 86 )

“श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी व श्री शिव जी के माता-पिता कौन हैं”


काल (ब्रह्म) ने प्रकृति (दुर्गा) से कहा कि अब मेरा कौन क्या बिगाडेगा? मन मानी करूंगा प्रकृति ने फिर प्रार्थना की कि आप कुछ शर्म करो। प्रथम तो आप मेरे बड़े भाई हो, क्योंकि उसी पूर्ण परमात्मा (कविर्देव)की वचन शक्ति से आप की (ब्रह्म की) अण्डे से उत्पत्ति हुई तथा बाद में मेरी उत्पत्ति उसी परमेश्वर के वचन से हुई है। दूसरे मैं आपके पेट से बाहर निकली हूँ, मैं आपकी बेटी हुई तथा आप मेरे पिता हुए। इन पवित्रा नातों में बिगाड़ करना महापाप होगा। मेरे पास पिता की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है, जितने प्राणी आप कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी। ज्योति निरंजन ने दुर्गा की एक भी विनय नहीं सुनी तथा कहा कि मुझे जो सजा मिलनी थी मिल गई, मुझे सतलोक से निष्कासित कर दिया। अब मनमानी करूंगा। यह कह कर काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने प्रकृति के साथ जबरदस्ती शादी की तथा तीन पुत्रों (रजगुण युक्त - ब्रह्मा जी, सतगुण युक्त - विष्णु जी तथा तमगुणयुक्त - शिव शंकर जी) की उत्पत्ति की।
जवान होने तक तीनों पुत्रों को दुर्गा के द्वारा अचेत करवा देता है, फिर युवा होने पर श्री ब्रह्मा जी को कमल के फूल पर, श्री विष्णु जी को शेष नाग की शैय्या पर तथा श्री शिव जी को कैलाश पर्वत पर सचेत करके इक्ट्ठे कर देता है। तत्पश्चात् प्रकृति (दुर्गा)द्वारा इन तीनों का विवाह कर दिया जाता है तथा एक ब्रह्मण्ड में तीन लोकों(स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक) में एक-एक विभाग के मंत्रा (प्रभु)नियुक्त कर देता है। जैसे श्री ब्रह्मा जी को रजोगुण विभाग का तथा विष्णु जी को सतोगुण विभाग का तथा श्री शिव शंकर जी को तमोगुण विभाग का तथास्वयं गुप्त (महाब्रह्मा - महाविष्णु - महाशिव) रूप से मुख्य मंत्रा पद को संभालता है। एक ब्रह्मण्ड में एक ब्रह्मलोक की रचना की है। उसी में तीनगुप्त स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान स्थान है जहाँ पर यह ब्रह्म (काल)स्वयं महाब्रह्मा (मुख्यमंत्रा) रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महासावित्रा रूप में रखता है। इन दोनों के संयोग से जो पुत्रा इस स्थान परउत्पन्न होता है वह स्वतः ही रजोगुणी बन जाता है। दूसरा स्थान सतोगुणप्रधान स्थान बनाया है। वहाँ पर यह क्षर पुरुष स्वयं महाविष्णु रूप बना कररहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महालक्ष्मी रूप में रख कर जो पुत्रा उत्पन्नकरता है उसका नाम विष्णु रखता है, वह बालक सतोगुण युक्त होता है तथातीसरा इसी काल ने वहीं पर एक तमोगुण प्रधान क्षेत्रा बनाया है। उसमें यहस्वयं सदाशिव रूप बनाकर रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महापार्वतीरूप में रखता है। इन दोनों के पति-पत्नी व्यवहार से जो पुत्रा उत्पन्न होताहै उसका नाम शिव रख देते हैं तथा तमोगुण युक्त कर देते हैं।
(प्रमाण के लिए देखें पवित्र श्री शिव महापुराण, विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 24.26 जिस में ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र तथा महेश्वर से अन्य सदाशिव है
 तथा रूद्र संहिता अध्याय6 तथा 7ए 9 पृष्ठ नं. 100 से, 105 तथा 110 पर अनुवाद कर्ता श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार, गीता प्रैस गोरख पुर से प्रकाशित तथा
पवित्र श्रीमद्देवीमहापुराणतीसरा स्कंद पृष्ठ नं. 114 से 123 तक, गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित,जिसके अनुवाद कर्ता हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार चिमन लाल गोस्वामी)
फिर इन्हीं को धोखे में रख कर अपने खाने के लिए जीवों की उत्पत्ति श्री ब्रह्मा जी द्वारा तथा स्थिति (एक-दूसरे को मोह-ममता में रख कर काल जाल में रखना) श्री विष्णु जी से तथा संहार(क्योंकि काल पुरुष को शापवश एकलाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर से मैल निकाल कर खाना होता है उसके लिए इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में एक तप्तशिला है जो स्वतः गर्म रहती है, उस पर गर्म करके मैल पिंघला कर खाता है, जीव मरते नहीं परन्तु कष्ट असहनीय होता है, फिर प्राणियों को कर्म आधार पर अन्य शरीर प्रदानकरता है) श्री शिव जी द्वारा करवाता है
जैसे किसी मकान में तीन कमरे बने हों। एक कमरे में अश्लील चित्रा लगे हों। उस कमरे में जाते ही मन में वैसे ही मलिन विचार उत्पन्न हो जाते हैं। दूसरे कमरे में साधु-सन्तों, भक्तों केचित्रा लगे हों तो मन में अच्छे विचार, प्रभु का चिन्तन ही बना रहता है। तीसरे कमरे में देश भक्तों व शहीदों के चित्रा लगे हों तो मन में वैसे ही जोशीले विचार उत्पन्न हो जाते हैं। ठीक इसी प्रकार ब्रह्म (काल) ने अपनी सूझ-बूझ से उपरोक्त तीनों गुण प्रधान स्थानों की रचना की हुई है।

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Wednesday, 27 May 2020

रामानंद को जीवित करना


“सिकंदर लौधी बादशाह का असाध्य जलन का रोगठीक करना”




एक बार दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी को जलन का रोग हो गया।जलन का रोग ऐसा होता है जैसे किसी का आग में हाथ जल जाए उसमें पीड़ाबहुत होती है। जलन के रोग में कहीं से शरीर जला दिखाई नहीं देता है परन्तुपीड़ा अत्यधिक होती है। उसको जलन का रोग कहते हैं। जब प्राणी के पापबढ़ जाते हैं तो दवाई भी व्यर्थ हो जाती हैं। दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लौधीके साथ भी वही हुआ। सभी प्रकार की औषधी सेवन की। बड़े-बड़े वैद्य बुलालिए और मुँह बोला इनाम रख दिया कि मुझे ठीक कर दो, जो माँगोगे वहीदूँगा। दुःख में व्यक्ति पता नहीं क्या संकल्प कर लेता है ? सर्व उपाय निष्फलहुए। उसके बाद अपने धार्मिक काजी, मुल्ला, संतों आदि सबसे अपनाआध्यात्मिक इलाज करवाया। परन्तु सब असफल रहा। {जब हम दुःखी होजाते हैं तो हिन्दू और मुसलमान नहीं रहते। फिर तो कहीं पर रोग कट जाए,वही पर चले जाते हैं। वैसे तो हिन्दू कहते हैं कि मुसलमान बुरे और मुसलमानकहते हैं कि हिन्दू बुरे और बीमारी हो जाए तो फिर हिन्दू व मुसलमान नहींदेखते। जब कष्ट आए तब तो कोई बुरा नहीं। बुरा कोई नहीं है। जोमुसलमान बुरे हैं वे बुरे हैं और जो हिन्दू बुरे हैं वे बुरे भी हैं और दोनों में अच्छेभी है। हर मज़हब में अच्छे और बुरे व्यक्ति होते हैं। लेकिन हम जीव हैं।हमारी कोई जाति व्यवस्था नहीं है। हमारी जीव जाति है हमारा धर्म मानवहै-परमात्मा को पाना है।} हिन्दू वैद्य तथा आध्यात्मिक संत भी बुलाए, स्वयं भीउनसे जाकर मिला और सबसे आशीर्वाद व जंत्रा-मंत्रा करवाऐं परन्तु सर्व चेष्टानिष्फल रही।

किसी ने बताया कि काशी शहर में एक कबीर नाम का महापुरूष है। यदिवह कृपा कर दे तो आपका दुःख निवारण अवश्य हो जाएगा।जब बादशाह सिकंदर ने सुना कि एक काशी के अन्दर महापुरूष रहताहै तो उसको कुछ-कुछ याद आया कि वह तो नहीं है जिसने गाय को भीजीवित कर दिया था। हजारों अंगरक्षकों सहित दिल्ली से काशी के लिए चलपड़ा। बीर सिंह बघेला काशी नरेश पहले ही कबीर साहेब की महिमा और ज्ञानसुनकर कबीर साहेब के शिष्य हो चुके थे और पूर्ण रूप से अपने गुरुदेव मेंआस्था रखते थे। उनको कबीर साहेब की महिमा का ज्ञान था क्योंकि कबीरपरमेश्वर वहाँ पर बहुत लीलाएँ कर चुके थे। जब सिकंदर लोधी बनारस(काशी)गया तथा बीर सिंह से कहा बीर सिंह मैं बहुत दुःखी हो गया हूँ। अब तोआत्महत्या ही शेष रह गई है। यहाँ पर कोई कबीर नाम का संत है? आप तोजानते होंगे कि वह कैसा है? इतनी बात सिकंदर बादशाह के मुख से सुनीथी। काशी नरेश बीर सिंह की आँखों में पानी भर आया और कहा कि अबआप ठीक स्थान पर आ गए। अब आपके दुःख का अंत हो जाएगा। बादशाहसिकंदर ने पूछा कि ऐसी क्या बात है? बीर सिंह ने कहा कि वह कबीर जीस्वयं भगवान आए हुए हैं। परमेश्वर स्वरूप हैं। यदि उनकी दयादृष्टि हो गई तो आपका रोग ठीक हो जाएगा। राजा सिकंदर ने कहा कि जल्दी बुला दो।काशी नरेश बीरदेवसिंह बघेल ने विनम्रता से प्रार्थना की कि आपकी आज्ञाशिरोधार्य है, आदेश भिजवा देता हूँ। लेकिन ऐसा सुना है कि संतो को बुलायानहीं करते। यदि वे आ भी गए और रजा नहीं बख्शी तो भी आने का कोईलाभ नहीं। बाकी आपकी ईच्छा। सिकंदर ने कहा कि ठीक है मैं स्वयं हीचलता हूँ। इतनी दूर आ गया हूँ वहाँ पर भी अवश्य चलूँगा।

शाम का समय हो गया था। बीर सिंह को पता था कि इस समय साहेबकबीर जी अपने औपचारिक गुरुदेव स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में ही होतेहैं। यह समय परमेश्वर कबीर जी का वहाँ मिलने का है। बीर देव सिंह बघेलकाशी नरेश तथा सिकंदर लोधी दिल्ली के बादशाह दोनों, स्वामी रामानन्द जीके आश्रम के सामने खड़े हो गए। वहाँ जाकर पता चला कि कबीर साहेब अभीनहीं आए हैं, आने ही वाले हैं। बीर सिंह अन्दर नहीं गए। बाहर सेवक खड़ाथा उससे ही पूछा। सिकंदर ने कहा कि ‘‘तब तक आश्रम में विश्राम कर लेतेहैं।’’ राजा बीर सिंह ने स्वामी रामानन्द जी के द्वारपाल सेवक से कहा किरामानन्द जी से प्रार्थना करो कि दिल्ली के बादशाह सिकंदर लौधी आपकेदर्शन भी करना चाहते हैं और साहेब कबीर का इन्तजार भी आपके आश्रम मेंही करना चाहते है। सेवक ने अन्दर जाकर रामानन्द जी को बताया किदिल्ली के बादशाह सिकंदर लौधी आए हैं। रामानन्द जी मुसलमानों से घृणाकरते थे। रामानन्द जी ने कहा कि मैं इन मलेच्छों (मुसलमानों) की शक्ल भीनहीं देखता। कह दो कि बाहर बैठ जाएगा। जब सिकंदर लोधी ने यह सुनातो क्रोध में भरकर (क्योंकि राजा में अहंकार बहुत होता है और वह दिल्ली काबादशाह) कहा कि यह दो कोड़ी का महात्मा दिल्ली के बादशाह का अनादरकर सकता है तो साधारण मुसलमान के साथ यह कैसा व्यवहार करता होगा?इसको मज़ा चखा दूं। रामानन्द जी अलग आसन पर बैठे थे। सिकंदर लोधीने जाकर रामानन्द जी की गर्दन तलवार से काट दी। वापिस चल पड़ा औरफिर उसको याद आया कि मैं जिस कार्य के लिए आया था? और वह कामअब पूरा नहीं होगा। कहा कि बीर सिंह देख मैं क्या जुल्म कर बैठा? मेरे बहुतबुरे दिन हैं। चाहता हूँ अच्छा करना और होता है बुरा। कबीर साहेब के गुरुदेवकी हत्या कर दी। अब वे कभी भी मेरे ऊपर दयादृष्टि नहीं करेंगे। मुझे तोयह दुःख भोग कर ही मरना पड़ेगा। मैं बहुत पापी जीव हूँ। यह कहता हुआआश्रम से बाहर की ओर चल पड़ा। बीर सिंह अपने बादशाह के आगे क्याबोलता। ज्योंही आश्रम से बाहर आए, कबीर साहेब आते दिखाई दिए। बीरसिंह ने कहा कि महाराज जी मेरे गुरुदेव कबीर साहेब आ गए। ज्योंही कबीरसाहेब थोड़ी दूर रह गए बीर सिंह ने जमीन पर लेटकर उनको दण्डवत्प्रणाम किया। अब सिकंदर बहुत घबराया हुआ था। {अगर उसने यह जुल्मनहीं किया होता तो वह दण्डवत् नहीं करता और दण्डवत् नहीं करता तोसाहेब उस पर रजा भी नहीं बख्श पाते क्योंकि यह नियम होता है ‘अति आधीन दीन हो प्राणी, ताते कहिए ये अकथ कहानी।‘‘उच्चे पात्रा जल ना जाई, ताते नीचा हुजै भाई।आधीनी के पास हैं पूर्ण ब्रह्म दयाल।मान बड़ाई मारिए बे अदबी सिर काल।।कबीर परमेश्वर ने यहाँ पर एक तीर से दो शिकार किए। स्वामी रामानंदजी में धर्म भेद-भाव की भावना शेष थी, वह भी निकालनी थी। रामानंद जीमुसलमानां को हिन्दूओं से अभी भी भिन्न तथा हेय मानते थे। सिकंदर मेंअहंकार की भावना थी। यदि वह नम्र नहीं होता तो कबीर साहेब कृपा नहींकरते तथा सिकंदर स्वस्थ नहीं होता} बीर सिंह को देखकर तथा डरते हुएसिकंदर लौधी ने भी दण्डवत् प्रणाम किया।
कबीर परमेश्वर जी ने दोनों केसिर पर हाथ रखा और कहा कि दो-2 नरेश आज मुझ गरीब के पास कैसेआए हैं? मुझ गरीब को कैसे दर्शन दिए? परमेश्वर कबीर जी ने अपना हाथउठाया भी नहीं था कि सिकंदर का जलन का रोग समाप्त हो गया। सिकंदरलौधी की आँखों में पानी आ गया। (संत के सामने यह मन भाग जाता है औरये आत्मा ऊपर आ जाती है क्योंकि परमात्मा आत्मा का साथी है। ‘‘अन्तरयामीएक तू आत्म के आधार।‘‘ 
आत्मा का आधार कबीर भगवान है।) 
सिकंदरलौधी ने पैर पकड़ कर छोड़े नहीं और रोता ही रहा। परमेश्वर जानी जानहोते हुए भी कबीर साहेब ने सिकन्दर लोधी दिल्ली के बादशाह से पूछा क्याबात है?। सिकंदर ने कहा कि दाता मैंने घोर अपराध कर दिया। आप मुझेक्षमा नहीं कर सकते। जिस काम के लिए मैं आया था वह असाध्य रोग तोआपके स्पर्श मात्रा से ठीक हो गया। इस पापी को क्षमा कर दो। कबीर साहेबने कहा क्षमा कर दिया। यह तो बता कि क्या हुआ? सिकंदर ने कहा कि आपक्षमा कर नहीं सकते। मैंने ऐसा पाप किया है। कबीर साहेब ने कहा कि क्षमाकर दिया। सिकंदर ने फिर कहा कि सच में माफ कर दिया? कबीर साहेबने कहा कि हाँ क्षमा कर दिया। अब बता क्या कष्ट है? सिकंदर ने कहा किदाता मुझ पापी ने गुस्से में आकर आपके गुरुदेव का सिर कलम कर दियाऔर फिर सारी कहानी बताई। कबीर साहेब बोले कोई बात नहीं। जो हुआप्रभु इच्छा से ही हुआ है आप स्वामी रामानन्द जी का अन्तिम संस्कार करवाकर जाना नहीं तो आप निंदा के पात्रा बनोगे। परमेश्वर कबीर साहेब जीनाराज नहीं हुए। सिकंदर लोधी ने बीर सिंह के मुख की और देखा और कहाकि बीर सिंह यह तो वास्तव में भगवान है। देखिए मैंने गुरुदेव का सिर काटदिया और कबीर जी को क्रोध भी नहीं आया। बीर सिंह चुप रहा औरसाथ-साथ हो लिया और मन ही मन में सोचता है कि अभी क्या है, अभी तोऔर देखना। यह तो शुरूआत है।“स्वामी रामानन्द जी को जीवित करना” परमेश्वर कबीर जी ने अन्दर जाकर देखा रामानंद जी का धड़ कहीं परऔर सिर कहीं पर पड़ा था। शरीर पर चादर डाल रखी थी। कबीर साहेब नेअपने गुरुदेव के मृत शरीर को दण्डवत् प्रणाम किया और चरण छुए तथाकहा कि गुरुदेव उठो। दिल्ली के बादशाह आपके दर्शनार्थ आए हैं। एक बारउठना। दूसरी बार ही कहा था, सिर अपने आप उठकर धड़ पर लग गयाऔर रामानन्द जी जीवित हो गए “बोलो सतगुरु देव की जय”।“सर्व मनुष्य एक प्रभु के बच्चे हैं, जो दो मानता है वह अज्ञानी है”






Sunday, 24 May 2020

भगवान पर विश्वास




       भैंस का सींग भगवान बना’’

एक पाली (भैंसों को खेतों में चराने वाला) अपनी भैंसों को घास चराता-चराता मंदिरके आसपास चला गया। मंदिर में पंडित कथा कर रहा था। भगवान के मिलने के पश्चात्होने वाले सुख बता रहा था कि जिसको भगवान मिल गया तो सब कार्य सुगम हो जाते हैं।परमात्मा भक्त के सब कार्य कर देता है। भगवान भक्त को दुःखी नहीं होने देता। इसलिएभगवान की खोज करनी चाहिए।पाली भैंसों ने तंग कर रखा था। एक किसी ओर जाकर दूसरे की फसल में घुसकरनुकसान कर देती, दूसरी भैंस किसी ओर। खेत के मालिक आकर पाली को पीटते थे।कहते थे कि हमारी फसल को हानि करा दी। अपनी भैंसों को संभाल कर रखा कर। पालीने जब पंडित से सुना कि भगवान मिलने के पश्चात् सब कार्य आप करता है, भक्त मौजकरता है तो पंडित जी के निकट जाकर चरण पकड़कर कहा कि मुझे भगवान दे दो। मैंभैंसों ने बहुत दुःखी कर रखा हूँ। पंडित जी ने पीछा छुड़ाने के उद्देश्य से कहा कि कलआना। पाली गया तो पंडित ने पहले ही भैंस का टूटा हुआ सींग जो कूड़े में पड़ा था, उठाकरउसके ऊपर लाल कपड़ा लपेटकर लाल धागे (नाले=मौली) से बाँधकर कहा कि ले, यहभगवान है। इसकी पूजा करना, इसको पहले भोजन खिलाकर बाद में स्वयं खाना। कुछदिनों में तेरी भक्ति से प्रसन्न होकर यह भगवान मनुष्य की तरह बन जाएगा। तब तेरे सबकार्य करेगा। यह तेरी सच्ची श्रद्धा पर निर्भर है कि तू कितनी आस्था से सच्ची लगन सेक्रिया करता है। यदि तेरी भक्ति में कमी रही तो भगवान मनुष्य के समान नहीं बनेगा।पाली उस भैंस के सींग को ले गया। उसके सामने भोजन रखकर कहा कि खाओभगवान! भैंस का सींग कैसे भोजन खाता? पाली ने भी भोजन नहीं खाया। इस प्रकारतीन-चार दिन बीत गए। पाली ने कहा कि मर जाऊँगा, परंतु आप से पहले भोजन नहींखाऊँगा। मेरी भक्ति में कमी रह गई तो आप मनुष्य नहीं बनोगे। मैं भैंसों ने बहुत दुःखी हूँ।
परमात्मा तो जानीजान हैं। जानते थे कि यह भोला भक्त मृत्यु के निकट है। उसपाखण्डी ने तो अपना पीछा छुड़ा लिया। मैं कैसे छुड़ाऊँ? चौथे दिन पाली के सामने उसीभैंस के सींग का जवान मनुष्य बन गया। पाली ने बांहों में भर लिया और कहने लगा किभोजन खा, फिर मैं खाऊँगा। भगवान ने ऐसा ही किया। फिर अपने हाथों पाली को भोजनडालकर दिया। पाली ने भोजन खाया। भगवान ने कहा कि मेरे को किसलिए लाया है? पालीबोला कि भैंस चराने के लिए चल, भैंसों को खेत में खोल, यह लाठी ले। अब सारा कार्यआपने करना है, मैं मौज करूँगा। परमात्मा ने लाठी थामी और सब भैंसों की अपने आपरस्सी खुल गई और खेतों की ओर चल पड़ी। कोई भैंस किसी ओर जाने लगे तो लाठी वालाउसी ओर खड़ा दिखाई देता। भैंसे घास के मैदान में भी घास चरने लगी। दूसरों की खेतीमें कोई नुक्सान नहीं हो रहा था। पाली की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वह अपने गुरूजी पंडित जी का धन्यवाद करने मंदिर में गया। पंडित डर गया कि यह झगड़ा करेगा,कहेगा कि अच्छा मूर्ख बनाया, परंतु बात विपरित हुई। पाली ने गुरू जी के चरण छूए तथाकहा कि गुरू जी चौथे दिन आदमी रूप में भगवान बन गया। मैंने भी भोजन नहीं खाया,प्राण निकलने वाले थे। उसी समय वह लाल वस्त्रा में बँधा भगवान जवान लड़का बन गया।मेरी ही आयु के समान। अब सारा कार्य भगवान कर लेता है। मैं मौज करता हूँ। उसकेभोले-भाले अंदाज से बताई कथा सत्य लग रही थी, परंतु विश्वास नहीं हो रहा था। पंडितजी ने कहा कि मुझे दिखा सकते हो, कहाँ है वह युवा भगवान। पाली बोला कि चलो मेरेसाथ। पंडित जी पाली के साथ भैंसों के पास गया। पूछा कि कहाँ है भगवान? पाली बोलाकि क्या दिखाई नहीं देता, देखो! वह खड़ा लाठी ठोडी के नीचे लगाए। पंडित जी को तोकेवल लाठी-लाठी ही दिखाई दे रही थी क्योंकि उसके कर्म लाठी खाने के ही थे। पाली सेकहा कि मुझे लाठी-लाठी ही दिखाई दे रही है। कभी इधर जा रही है, कभी उधर जा रहीहै। तब पाली ने कहा कि भगवान इधर आओ। भगवान निकट आकर बोला, क्या आज्ञा है?पंडित जी को आवाज तो सुनी, लाठी भी दिखी, परंतु भगवान न ही दिखे।



 पाली बोला, आपमेरे गुरू जी को दिखाई नहीं दे रहे हो, इन्हें भी दर्शन दो। भगवान ने कहा, ये पाखण्डी है।यह केवल कथा-कथा सुनाता है, स्वयं को विश्वास नहीं। इसको दर्शन कैसे हो सकते हैं?पंडित जी यह वाणी सुनकर लाठी के साथ पृथ्वी पर गिरकर क्षमा याचना करने लगा।भगवान ने कहा, यह भोला बालक मर जाता तो तेरा क्या हाल होता? मैंने इसकी रक्षा की।पाली के विशेष आग्रह से पंडित जी को भी विष्णु रूप में दर्शन दिए क्योंकि वह श्री विष्णुजी का भक्त था। फिर अंतर्ध्यान हो गया।प्रिय पाठकों से निवेदन है कि इस कथा का भावार्थ यह न समझना कि पाली की तरहहठ योग करने से परमात्मा मिल जाता है। यदि कुछ देर दर्शन भी दे गए और कुछ जटिलकार्य भी कर दिए। इससे जन्म-मरण का दीर्घ रोग तो समाप्त नहीं हुआ। वह तो पूर्ण गुरूसे दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर आजीवन साधना करने से ही समाप्त होगा।पाली तथा पंडित पिछले जन्म में परमात्मा के परम भक्त थे, परंतु अपनी गलती से मुक्त नहीं हो पाए थे। उनको अबकी बार पार करना था। उस कारण से यह सब कारण बनाये थे। पूर्व जन्म की भक्ति के प्रभाव से मानव परमात्मा की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करताहै, तब परमात्मा को कोई कारण बना कर अपनी शरण में लेना  पड़ता है।
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अल्लाह कबीर जी ही अल खिद्र है।






अल-खिद्र(कबीर प्रभु) को जिंदा पीर भी कहा जाता है।


संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में बताया है कि कबीर परमेश्वर जी ने समशतरबेज़ का वेश बनाकर सिमली तथा उसके भाई मंसूर को यथार्थ अध्यात्म ज्ञान समझाया था। उन्होंने ही अल खिद्र की लीला भी की थी।







पवित्र ग्रंथ बाईबल तथा पवित्र पुस्तक कुरान शरीफ़/मजीद का ज्ञान देने वाला एक ही अल्लाह है।
कुरान शरीफ़ में उस अल्लाह ने कहा है कि मैंने ही दाऊद, मूसा तथा ईशा को क्रमशः तौरात, जबूर तथा इंजिल पुस्तकों का ज्ञान दिया था। कुरान का ज्ञान हज़रत मुहम्मद को दिया गया था।

🌼मूसा के अल्लाह का ज्ञान अधूरा है जो अल-खिद्र (खिज्र) के ज्ञान के सामने कुछ भी नहीं है। उसी अल्लाह का दिया ज्ञान बाईबल तथा कुरान में है।
अल-खिद्र नाम से लीला करने वाले स्वयं कबीर परमेश्वर हैं।

🌼अल-खिद्र(कबीर परमेश्वर) के ज्ञान के सामने मूसा का ज्ञान कुछ नहीं
कुरान और बाईबल का ज्ञान देने वाला अल्लाह एक ही है, वह अपने भक्त मूसा से कहता है कि मैंने तेरे को जो ज्ञान (जबूर में) बताया है। यह ज्ञान अल-खिद्र(कबीर परमेश्वर) के ज्ञान के सामने कुछ मायने नहीं रखता।

हज़रत मूसा जी के अल्लाह का ज्ञान अधूरा है
मूसा जी का अल्लाह स्वयं कहता है कि तेरा ज्ञान अल-खिद्र(अल्लाह कबीर) के ज्ञान के सामने कुछ भी नहीं है। उसी अल्लाह का दिया ज्ञान बाईबल तथा कुरान ग्रंथों में है।
अविनाशी अल्लाह
हजरत मुहम्मद अपने जीवन काल में जवानी और बुढ़ापे में अल-खिद्र(कबीर प्रभु) से दो बार मिले थे। लेकिन अल-खिद्र(कबीर प्रभु) की उम्र बिल्कुल नहीं बदली थी। इससे यह प्रमाणित होता है कि अल-खिद्र (कबीर जी) अविनाशी हैं।
"अल-खिद्र" को आज अलग अलग सभ्यताओं में विभिन्न नामों से जाना व पूजा जाता है। अल-खिद्र का 55 हदीसों में ज़िक्र मिलता 
संत गरीबदास जी ने कहा है कि :-
गरीब अनंत कोटि अवतार हैं, नौ चितवैं बुद्धि नाश।
खालिक खेलै खलक में, छः ऋतु बारह मास।।
अर्थात् जिनको तत्वज्ञान नहीं है, वे केवल नौ अवतार मानते हैं और उसी कारण से उनको विष्णु के अवतार मानते हैं। परंतु सब लीला कबीर सत्यपुरूष ही करता है।
मुसलमानों का मानना है कि अल-खिद्र अमर है और आज भी धरती पर जीवित (जिंदा) है व मौजूद है और अल्लाह की राह पर जो उलझन में हैं उनका मार्ग दर्शन करता है। वास्तव में वे कबीर परमात्मा ही हैं जिन्होंने इसी तरह से नानक जी, दादू जी, गरीब दास व अन्य का मार्गदर्शन किया था।
अल-खिद्र(कबीर परमात्मा) कभी बूढ़े नहीं होते
अल-खिद्र (कबीर जिंदा पीर) मुहम्मद जी को उनके जीवन काल में दो बार मिले। पहले जवानी में फिर बुढापे में। अल-खिद्र की आयु बिल्कुल नहीं बदली थी। वह अमर परमात्मा हैं।
कबीर परमात्मा ही अनेक रूप बनाके भक्ति में आस्था बनाये रखते हैं। उन्होंने ही अल-खिद्र की लीला भी की।
आपत्ति के समय राम, कृष्ण की सहायता कबीर परमेश्वर जी ने गुप्त रूप से की थी। उनके साथ भी अवतार रूप में (मुनिन्द्र व करूणामय के रूप में) उपस्थित थे। उसके अनंत करोड़ अवतार हैं। वह दिन में सौ-सौ बार ऊपर अपने सतलोक में जाते हैं और सौ-सौ बार पुनः उतरकर आते हैं। (खालिक) परमात्मा तो (खलक) संसार में छः ऋतु बारह मास यानि सदा ही लीला करता है।
वही जिंदा पीर रूप में मुस्लिम देशों में अपने सत्य ज्ञान का प्रचार किया करते थे। अल-खिद्र(कबीर परमात्मा) आज अलग-अलग सभ्यताओं में विभिन्न नामों से जाना व पूजा जाता हैं।
अल-खिद्र को जिंदा पीर भी कहा जाता है। मुस्लिम देशों में अल-खिद्र(कबीर प्रभु) की अनेकों यादगारें मौजूद हैं।
वह अविनाशी परमात्मा हैं। अनेकों रूप बनाकर कबीर परमात्मा ही सब लीला करते रहते हैं।
हजरत मूसा जी का अल्लाह मूसा को मूसा से अधिक (इल्म) ज्ञान वाले शख्स के पास जाने को कहता है जिसका नाम ‘‘अल-खिद्र’’( कबीर साहेब) है। {कुछ इस्लामिक पुस्तकों में खिज्र व खजीर भी अल-खिद्र का नाम लिखा है।
मुस्लिम विद्वानों का मानना है कि अल-खिद्र को कई लोगों के बीच में उसके नरम हाथों से पहचाना जा सकता है।
परमेश्वर/अल्लाह/अल-खिद्र कबीर जी की वाणी है:-
हाड चाम लहू ना मोरे, जाने सतनाम उपासी ।
तारन तरन अभय पद(मोक्ष) दाता, मैं हूं कबीर अविनाशी ।।
कुरान ज्ञान दाता भी अल-खिद्र (कबीर अल्लाह) की शरण में जाने को कहता है
कुरान शरीफ सुरह-काफ 18 आयत 60-82 में प्रमाण है कि हजरत मूसा का अल्लाह, मूसा को उससे ज्यादा इल्म (सच्चा तत्वज्ञान) रखने वाले के पास भेजता है । जिसका नाम अल-खिद्र (कबीर जी) है।
"अली" मुसलमान को भी अल-खिद्र मिले। उसको नाम दिया और कहा कि यह नाम (मंत्र) असंख्य पापों को भी समाप्त कर देगा।
अल-खिद्र(अल्लाह कबीर) के मंत्र की शक्ति
अली ने बदर युद्ध में जीतने के लिए अल-खिद्र(अल्लाह कबीर) से आशीर्वाद मांगा तो उन्होंने उसको एक शब्द बताया। उसका जाप करके अली ने युद्ध जीता जो मुहम्मद और विरोधियों के बीच में हुआ था। संत गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा है कि ‘‘अली अल्लाह का शेर है। तलवार को ऊपर करे तो आसमान को छू जाए। यह सब कमाल परमात्मा के आशीर्वाद व बताए मंत्र की शक्ति का था। आज वही शक्तिशाली मंत्र बाख़बर पूर्ण संत रामपाल जी महाराज बता रहे हैं जिससे जन्म मरण का रोग समाप्त होता है और यहां का सुख भी प्राप्त होता है।अल-खिद्र नाम से लीला करने वाला स्वयं कबीर परमेश्वर है।
अल-खिद्र (कबीर जी) एक हैसूर लड़के को मार देते हैं, मूसा उसको गलत मानता है। घटिया कर्म बताता है। बाद में अल-खिद्र स्पष्ट करता है कि इस लड़के के माता-पिता परमात्मा के परम भक्त हैं। यह लड़का आगे चलकर उनकी भक्ति में बाधा करता। इसलिए इसे मारा है। अब अल्लाह उनको नेक पुत्र देगा जो
उनकी भक्ति में बाधक नहीं होगा।
ऐसे ही एक दीवार के नीचे खजाना होना बताया गया है। भक्त/भक्तमति अचानक मर गए थे। परमात्मा ने उनके (यतीम) अनाथ बच्चों के लिए खजाना सुरक्षित किया। बडे़ होने पर वे उसको प्राप्त करके सुखी जीवन जीयेंगे। वह खजाना भी उनको परमात्मा कबीर जी बताता है। जैसे तैमूरलंग को बताया। सम्मन, सेऊ को बताया था। हमसे यूट्यूब पर जुड़े👇👇
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Thursday, 21 May 2020

आज भाई को फुर्सत है



कहता हूं कहि जात हूं ,कहूं बजाकर ढोल। स्वास जो खाली जात है, तीन लोक का मोल।



एक भक्त सत्संग में जाने लगा। दीक्षा ले ली, ज्ञान सुना और भक्ति करनेलगा। अपने मित्रा से भी सत्संग में चलने तथा भक्ति करने के लिए प्रार्थना कीपरंतु दोस्त नहीं माना। कह देता कि कार्य से फुर्सत (खाली समय) नहीं है।छोटे-छोटे बच्चे हैं। इनका पालन-पोषण भी करना है। काम छोड़कर सत्संग में जानेलगा तो सारा धँधा चौपट हो जाएगा।वह सत्संग में जाने वाला भक्त जब भी सत्संग में चलने के लिए अपने मित्रासे कहता तो वह यही कहता कि अभी काम से फुर्सत नहीं है। एक वर्ष पश्चात् उसमित्रा की मृत्यु हो गई। उसकी अर्थी उठाकर कुल के लोग तथा नगरवासी चले,साथ-साथ सैंकड़ों नगर-मौहल्ले के व्यक्ति भी साथ-साथ चले। सब बोल रहे थे किराम नाम सत् है, सत् बोले गत् है।भक्त कह रहा था कि राम नाम तो सत् है परंतु आज भाई को फुर्सत है।नगरवासी कह रहे थे कि सत् बोले गत् है, भक्त कह रहा था कि आज भाई कोफुर्सत है। अन्य व्यक्ति उस भक्त से कहने लगे कि ऐसे मत बोल, इसके घर वालेबुरा मानेंगे। भक्त ने कहा कि मैं तो ऐसे ही बोलूँगा। मैंने इस मूर्ख से हाथ जोड़करप्रार्थना की थी कि सत्संग में चल, कुछ भक्ति कर ले। यह कहता था कि अभीफुर्सत अर्थात् खाली समय नहीं है। आज इसको परमानैंट फुर्सत है। छोटे-छोटे बच्चेभी छोड़ चला जिनके पालन-पोषण का बहाना करके परमात्मा से दूर रहा। भक्तिकरता तो खाली हाथ नहीं जाता। कुछ भक्ति धन लेकर जाता। बच्चों कापालन-पोषण तो परमात्मा करता है। भक्ति करने से साधक की आयु भी परमात्माबढ़ा देता है। भक्तजन ऐसा विचार करके भक्ति करते हैं, कार्य त्यागकर सत्संगसुनने जाते हैं।भक्त विचार करते हैं कि परमात्मा न करे, हमारी मृत्यु हो जाए। फिर हमारेकार्य कौन करेगा? हम यह मान लेते हैं कि हमारी मृत्यु हो गई। हम तीन दिनके लिए मर गया, यह विचार करके सत्संग में चलें, अपने को मृत मान लें औरसत्संग में चले जायें। वैसे तो परमात्मा के भक्तों का कार्य बिगड़ता नहीं, फिर भीहम मान लेते हैं कि हमारी गैर-हाजिरी में कुछ कार्य खराब हो गया तो तीन दिनबाद जाकर ठीक कर लेंगे। यदि वास्तव में टिकट कट गई अर्थात् मृत्यु हो गई तोपरमानैंट कार्य बिगड़ गया। फिर कभी ठीक करने नहीं आ सकते। इस स्थिति कोजीवित मरना कहते हैं।






https://www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_hindi.pdf

Wednesday, 20 May 2020

नशा करता है नाश

                   ‘‘तम्बाकू सेवन करना महापाप है

’’संत गरीबदास जी ने भक्त हरलाल जी से कहा कि आप (जो भी दीक्षा लेताहै) तम्बाकू का (हुक्का, बीड़ी, सिगरेट, चिलम आदि में डालकर भी) कभी सेवननहीं करना और अन्य नशीली वस्तुओं का प्रयोग न करना। भक्त ने कहा कि हेमहाराज जी! तम्बाकू तो लगभग सब किसान पीते हैं। इसमें क्या हानि है?उत्तर :- संत गरीबदास जी ने बताया कि आपने रामायण तथा महाभारत कीकथा तो सुनी होंगी। उसमें हुक्का सेवन का कहीं वर्णन नहीं है। तम्बाकू की उत्पत्तिबताऊँ कैसे हुई है, सुन!‘‘तम्बाकू की उत्पत्ति कथा’’एक ऋषि तथा एक राजा साढ़ू थे। एक दिन राजा की रानी ने अपनी बहनऋषि की पत्नी के पास संदेश भेजा कि पूरा परिवार हमारे घर भोजन के लिएआऐं। मैं आपसे मिलना भी चाहती हूँ, बहुत याद आ रही है। अपनी बहन का संदेश

ऋषि की पत्नी ने अपने पति से साझा किया तो ऋषि जी ने कहा कि साढ़ू सेदोस्ती अच्छी नहीं होती। तेरी बहन वैभव का जीवन जी रही है। राजा को धन तथाराज्य की शक्ति का अहंकार होता है। वे अपनी बेइज्जती करने को बुला रहे हैंक्योंकि फिर हमें भी कहना पड़ेगा कि आप भी हमारे घर भोजन के लिए आना।हम उन जैसी भोजन-व्यवस्था जंगल में नहीं कर पाऐंगे। यह सब साढ़ू जी काषड़यंत्रा है। आपके सामने अपने को महान तथा मुझे गरीब सिद्ध करना चाहता है।आप यह विचार त्याग दें। हमारे न जाने में हित है। परंतु ऋषि की पत्नी नहींमानी। ऋषि तथा पत्नी व परिवार राजा का मेहमान बनकर चला गया। रानी नेबहुमूल्य आभूषण पहन रखे थे। बहुमूल्य वस्त्रा पहने हुए थे। ऋषि की पत्नी के गलेमें राम नाम जपने वाली माला तथा सामान्य वस्त्रा साध्वी वाले जिसे देखकर दरबारके कर्मचारी-अधिकारी मुस्कुरा रहे थे कि यह है राजा का साढ़ू। कहाँ राजा भोज,कहाँ गंगू तेली। यह चर्चा ऋषि परिवार सुन रहा था। भोजन करने के पश्चात् ऋषिकी पत्नी ने भी कहा कि आप हमारे यहाँ भी इस दिन भोजन करने आईएगा।निश्चित दिन को राजा हजारों सैनिक लेकर सपरिवार साढ़ू ऋषि जी कीकुटी पर पहुँच गया। ऋषि जी ने स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र से निवेदन करके एककामधेनु (सर्व कामना यानि इच्छा पूर्ति करने वाली गाय, जिसकी उपस्थिति मेंखाने की किसी पदार्थ की कामना करने से मिल जाता है, यह पौराणिक मान्यताहै।) माँगी। उसके बदले में ऋषि जी ने अपने पुण्य कर्म संकल्प किए थे। इन्द्र देवने एक कामधेनु तथा एक लम्बा-चौड़ा तम्बू (ज्मदज) भेजा और कुछ सेवादार भीभेजे। टैण्ट के अंदर गाय को छोड़ दिया। ऋषि परिवार ने गऊ माता की आरतीउतारी। अपनी मनोकामना बताई। उसी समय छप्पन (56) प्रकार के भोग चांदीकी परातों, टोकनियों, कड़ाहों में स्वर्ग से आए और टैण्ट में रखे जाने लगे। लड्डू,जलेबी, कचौरी, दही बड़े, हलवा, खीर, दाल, रोटी (मांडे) तथा पूरी, बुंदी, बर्फी,रसगुल्ले आदि-आदि से आधा एकड़ का टैण्ट भर गया। ऋषि जी ने राजा से कहाकि भोजन जीमो। राजा ने बेइज्जती करने के लिए कहा कि मेरी सेना भी साथमें भोजन खाएगी। घोड़ों को भी चारा खिलाना है। ऋषि जी ने कहा कि प्रभु कृपासे सब व्यवस्था हो जाएगी। पहले आप तथा सेना भोजन करें। राजा उठकर भोजनकरने वाले स्थान पर गया। वहाँ भी सुंदर कपड़े बिछे थे। राजा देखकरआश्चर्यचकित रह गया। फिर चांदी की थालियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के भोजनला-लाकर सेवादार रखने लगे। अन्नदेव की स्तुति करके ऋषि जी ने भोजन करनेकी प्रार्थना की। राजा ने देखा कि इसके सामने तो मेरा भोजन-भण्डारा कुछ भीनहीं था। मैंने तो केवल ऋषि-परिवार को ही भोजन कराया था। वह भी तीन-चारपदार्थ बनाए थे। राजा शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। खाना खाते वक्त बहुतपरेशान था। ईर्ष्या की आग धधकने लगी, बेइज्जती मान ली। सर्व सैनिक खाऐऔर सराहें। राजा का रक्त जल रहा था। अपने टैण्ट में जाकर ऋषि को बुलायाऔर पूछा कि यह भोजन जंगल में कैसे बनाया? न कोई कड़ाही चल रही है, न
कोई चुल्हा जल रहा है। ऋषि जी ने बताया कि मैंने अपने पुण्य तथा भक्ति केबदले स्वर्ग से एक गाय उधारी माँगी है। उस गाय में विशेषता है कि हम जितनाभोजन चाहें, तुरंत उपलब्ध करा देती है। राजा ने कहा कि मेरे सामने उपलब्धकराओ तो मुझे विश्वास हो। ऋषि तथा राजा टैण्ट के द्वार पर खड़े हो गए। अन्दरकेवल गाय खड़ी थी। द्वार की ओर मुख था। टैण्ट खाली था क्योंकि सबने भोजनखा लिया था। शेष बचा सामान तथा सेवक ले जा चुके थे। गाय को ऋषि जी कीअनुमति का इंतजार था। राजा ने कहा कि ऋषि जी! यह गाय मुझे दे दी। मेरेपास बहुत बड़ी सेना है। उसका भोजन इससे बनवा लूंगा। तेरे किस काम की है?ऋषि ने कहा, राजन! मैंने यह गऊ माता उधारी ले रखी है। स्वर्ग से मँगवाई है।मैं इसका मालिक नहीं हूँ। मैं आपको नहीं दे सकता। राजा ने दूर खड़े सैनिकोंसे कहा कि इस गाय को ले चलो। ऋषि ने देखा कि साढ़ू की नीयत में खोट आगया है। उसी समय ऋषि जी ने गऊ माता से कहा कि गऊ माता! आप अपने लोकअपने धनी स्वर्गराज इन्द्र के पास शीघ्र लौट जाऐं। उसी समय कामधेनु टैण्ट कोफाड़कर सीधी ऊपर को उड़ चली। राजा ने गाय को गिराने के लिए गाय के पैरमें तीर मारा। गाय के पैर से खून बहने लगा और पृथ्वी पर गिरने लगा। गायघायल अवस्था में स्वर्ग में चली गई। जहाँ-जहाँ गाय का रक्त गिरा था, वहीं-वहींतम्बाकू उग गया। फिर बीज बनकर अनेकों पौधे बनने लगे।
संत गरीबदास जीने कहा है कि
     :-तमा $ खू = तमाखू।
खू नाम खून का तमा नाम गाय।
 सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय।।
भावार्थ है कि फारसी भाषा में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं। खू = खून यानिरक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपर गाय केबाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंद है कि इसतमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय का खून पीनेके समान पाप लगता है।


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Sunday, 17 May 2020

दों राजा और कुम्भार

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            *🙏🏻☂ बोध कथा ☂ 🙏🏻*
*एक समय श्री गोरखनाथ जी से गोपीचंद तथा भरथरी जी ने कहा कि गुरूदेव! हमारा मोक्ष इसी जन्म में हो, ऐसी कृपा करें। आप जो भी साधना बताओगे, हम करेंगे। श्री गोरखनाथ जी ने कहा कि राजस्थान प्रान्त में एक अलवर शहर है। वहाँ का राजा अपने किले का निर्माण करवा रहा है। तुम दोनों उस राजा के किले का निर्माण पूरा होने तक उसमें पत्थर ढ़ोने का निःशुल्क कार्य करो। अपने खाने के लिए कोई अन्य मजदूरी सुबह-शाम करो।*

*उसी दिन दोनों भक्त आत्मा गुरू जी का आशीर्वाद लेकर चल पड़े। उस किले का निर्माण बारह वर्ष तक चला। कोई मेहनताना का रूपया-पैसा नहीं लिया। अपने भोजन के लिए उसी नगरी के एक कुम्हार के पास उसकी मिट्टी खोदने तथा उसके मटके बनाने योग्य गारा तैयार करने लगे।* *उसके बदले में सुबह-शाम केवल रोटी खाते थे। कुम्हार की धर्मपत्नी अच्छे संस्कारों की नहीं थी। कुम्हार ने कहा कि दो व्यक्ति बेघर घूम रहे थे। वे मेरे पास मिट्टी खोदते तथा गारा तैयार करते हैं। केवल रोटी-रोटी की मजदूरी लेंगे। आज* *तीन व्यक्तियों का भोजन लेकर आना। मटके बनाने तथा पकाने वाला स्थान नगर से कुछ दूरी पर जंगल में था।* *कुम्हारी दो व्यक्तियों की रोटी लेकर गई और बोली कि इससे अधिक नहीं मिलेगी। भोजन रखकर घर लौट आई। कुम्हार ने कहा कि बेटा! इन्हीं में काम चलाना पड़ेगा। तीनों ने बाँटकर रोटी खाई। कई वर्ष ऐसा चला। अंत के वर्ष में तो केवल एक व्यक्ति का भोजन भेजने लगी। तीनों उसी में संतोष कर लेते थे। किले का कार्य बारह वर्ष चला। कुम्हार ने अपने घड़े पकाने के लिए आवे में रख दिए। अंत के वर्ष की बात है।*

*गोपीचंद तथा भरथरी ने कुम्हार से आज्ञा ली कि पिता जी! हमारी साधना पूरी हुई। अब हम अपने गुरू श्री गोरखनाथ जी के पास वापिस जा रहे हैं। मेरा नाम गोपीचंद है। इनका नाम भरथरी है। उस समय कुम्हार की पत्नी भी उपस्थित थी। मटकों की ओर एक हाथ से आशीर्वाद देते हुए दोनों ने एक साथ कहा :-*

पिता का हेत माता का कुहेत।
आधा कंचन आधा रेत।।

*यह वचन बोलकर दोनों चले गए। जिस समय मटके निकालने लगे तो कुम्हार तथा कुम्हारी दोनों निकाल रहे थे। देखा तो प्रत्येक मटका आधा सोने का था, आधा कच्चा था। हाथ लगते ही रेत बनने लगा। कुम्हार ने कहा, भाग्यवान! वे तो कोई देवता थे। तेरी त्रुटी के कारण आधा मटका रेत रह गया। मिट्टी की मिट्टी रह गई। आधा स्वर्ण का हो गया। कुम्हारी को अपनी कृतघ्नता का अहसास हुआ तथा रोने लगी। बोली कि मुझे पता होता तो उनकी बहुत सेवा करती।*

कबीर, करता था तब क्यों किया, करके क्यों पछताय।
बोवे पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय।।

*इस प्रकार गोपीचंद और भरथरी जी अपने गुरू जी के वचन का पालन करके सफल हुए। जो अमरत्व उस साधना से मिलना था, वह भी अटल विश्वास करके साधना करने से हुआ। यदि विवेकहीन तथा विश्वासहीन होते तो विचार करते कि यह कैसी भक्ति? यह कार्य तो सारा संसार कर रहा है। मोक्ष के लिए तो तपस्या करते हैं या अन्य कठिन व्रत करते हैं। परंतु उन्होंने गुरू जी को गुरू मानकर प्रत्येक साधना की। गुरू जी के कार्य या आदेश में दोष नहीं निकाला तो सफल हुए। गोरखनाथ जी ने उनको जो नाम जाप करने का मंत्रा दे रखा था, उसका जाप वे दोनों पत्थर उठाकर निर्माण स्थान तक ले जाते तथा लौटकर पत्थरों को तरास (काँट-छाँट करके सीधा कर) रहे थे, वहाँ तक आते समय करते रहते थे। दोनों युवा थे। कार्य के परिश्रम तथा पूरा पेट न भरने के कारण मन में स्त्री के प्रति विकार नहीं आया और सफलता पाई।*

*गुरू एक वैद्य (डॉक्टर) होता है। उसे पता होता है कि किस रोगी को क्या परहेज देना है? क्या खाने को बताना है? यानि पथ्य-अपथ्य डॉक्टर ही जानता है। रोगी यदि उसका पालन करता है तथा औषधि सेवन (भक्त नाम जाप) करता है तो स्वस्थ हो जाता है यानि मोक्ष प्राप्त करता है। इसी प्रकार गोपीचंद तथा भरथरी जी ने अपने गुरू जी के आदेश का पालन करके जीवन सफल किया। इसी प्रकार साधक को सफल होने के लिए गुरु के प्रत्येक आदेश को मन-कर्म-वचन से मानकर साधना करनी चाहिए*
*तभी पूर्ण मोक्ष शाश्वत धाम सतलोक प्राप्त होगा।*
वर्तमान में ,इस पूरे विश्व में सिर्फ
संत रामपाल जी महाराज ही पूर्ण सतगुरु है जो मोक्ष देने के अधिकारी हैं ।
प्रमाण के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से
https://www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_hindi.pdf






Saturday, 16 May 2020

कथा गोरखनाथ की


*साहेब कबीर व गोरख नाथ की गोष्ठी*

           🌲🌺🙏🌺🌲


एक समय गोरख नाथ (सिद्ध महात्मा) काशी (बनारस) में स्वामी रामानन्द जी (जो साहेब कबीर के गुरु जी थे) से शास्त्रार्थ करने के लिए (ज्ञान गोष्टी के लिए) आए।  जब ज्ञान गोष्टी के लिए एकत्रित हुए तब कबीर साहेब भी अपने पूज्य गुरुदेव स्वामी रामानन्द जी के साथ पहुँचे थे। एक उच्च आसन पर रामानन्द जी बैठे उनके चरणों में बालक रूप में कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) बैठे थे। गोरख नाथ जी भी एक उच्च आसन पर बैठे थे तथा अपना त्रिशूल अपने आसन के पास ही जमीन में गाड़ रखा था। गोरख नाथ जी ने कहा कि रामानन्द मेरे से चर्चा करो। उसी समय बालक रूप (पूर्ण ब्रह्म) कबीर जी ने कहा - नाथ जी पहले मेरे से चर्चा करें। पीछे मेरे गुरुदेव जी से बात करना।


*योगी गोरखनाथ प्रतापी, तासो तेज पृथ्वी कांपी।*

*काशी नगर में सो पग परहीं, रामानन्द से चर्चा करहीं।*

*चर्चा में गोरख जय पावै, कंठी तोरै तिलक छुड़ावै।*

*सत्य कबीर शिष्य जो भयऊ, यह वृतांत सो सुनि लयऊ।*

*गोरखनाथ के डर के मारे, वैरागी नहीं भेष सवारे।*

*तब कबीर आज्ञा अनुसारा, वैष्णव सकल स्वरूप संवारा।*

*सो सुधि गोरखनाथ जो पायौ, काशी नगर शीघ्र चल आयौ।*

*रामानन्द को खबर पठाई, चर्चा करो मेरे संग आई।*

*रामानन्द की पहली पौरी, सत्य कबीर बैठे तीस ठौरी।*

*कह कबीर सुन गोरखनाथा, चर्चा करो हमारे साथा।*

*प्रथम चर्चा करो संग मेरे, पीछे मेरे गुरु को टेरे।*

*बालक रूप कबीर निहारी, तब गोरख ताहि वचन उचारी।*


इस पर गोरख नाथ जी ने कहा तू बालक कबीर जी कब से योगी बन गया। कल जन्मा अर्थात् छोटी आयु का बच्चा और चर्चा मेरे (गोरख नाथ के) साथ। तेरी क्या आयु है? और कब वैरागी (संत) बन गए?


*गोरखनाथ जी का प्रश्न:-*

कबके भए वैरागी कबीर जी, कबसे भए वैरागी।


*कबीर जी का उत्तर:-*

नाथ जी जब से भए वैरागी मेरी, आदि अंत सुधि लागी।।

धूंधूकार आदि को मेला, नहीं गुरु नहीं था चेला।

जब का तो हम योग उपासा, तब का फिरूं अकेला।।

धरती नहीं जद की टोपी दीना, ब्रह्मा नहीं जद का टीका।

शिव शंकर से योगी, न थे जदका झोली शिका।।

द्वापर को हम करी फावड़ी, त्रोता को हम दंडा।

सतयुग मेरी फिरी दुहाई, कलियुग फिरौ नो खण्डा।।

गुरु के वचन साधु की संगत, अजर अमर घर पाया।

कहैं कबीर सुनांहो गोरख, मैं सब को तत्व लखाया।।


साहेब कबीर जी ने गोरख नाथ जी को बताया हैं कि मैं कब से वैरागी बना। साहेब कबीर ने उस समय वैष्णों संतों जैसा वेष बना रखा था। जैसा श्री रामानन्द जी ने बाणा (वेष) बना रखा था। मस्तिक में चन्दन का टीका, टोपी व झोली सिक्का एक फावड़ी (जो भजन करने के लिए लकड़ी की अंग्रेजी के अक्षर ‘‘T‘‘ के आकार की होती है) तथा एक डण्डा (लकड़ी का लट्ठा) साथ लिए हुए थे। ऊपर के शब्द में कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जब कोई सृष्टि (काल सृष्टि) नहीं थी तथा न सतलोक सृष्टि थी तब मैं (कबीर) अनामी लोक में था और कोई नहीं था। चूंकि साहेब कबीर ने ही सतलोक सृष्टि शब्द से रची तथा फिर काल (ज्योति निरंजन-ब्रह्म) की सृष्टि भी सतपुरुष ने रची। जब मैं अकेला रहता था जब धरती (पृथ्वी) भी नहीं थी तब से मेरी टोपी जानो। ब्रह्मा जो गोरखनाथ तथा उनके गुरु मच्छन्दर नाथ आदि सर्व प्राणियों के शरीर बनाने वाला पैदा भी नहीं हुआ था। तब से मैंने टीका लगा रखा है अर्थात् मैं (कबीर) तब से सतपुरुष आकार रूप मैं ही हूँ।


सतयुग-त्रोतायुग-द्वापर तथा कलियुग ये चार युग तो मेरे सामने असंख्यों जा लिए। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि हमने सतगुरु वचन में रह कर अजर-अमर घर (सतलोक) पाया। इसलिए सर्व प्राणियों को तत्व (वास्तविक ज्ञान) बताया है कि पूर्ण गुरु से उपदेश ले कर आजीवन गुरु वचन में चलते हुए पूर्ण परमात्मा का ध्यान सुमरण करके उसी अजर-अमर सतलोक में जा कर जन्म-मरण रूपी अति दुःखमयी संकट से बच सकते हो।


*इस बात को सुन कर गोरखनाथ जी ने पूछा हैं?*

 कि आपकी आयु तो बहुत छोटी है अर्थात् आप लगते तो हो बालक से।


*जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी।*

*असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।टेक।।*

*कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।*

*हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।*

*अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया।*

*सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।*

*कोटिन नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।*

*देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।।*

*नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।*

*कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।*


*श्री गोरखनाथ सिद्ध को सतगुरु कबीर साहेब अपनी आयु का विवरण देते हैं।*

असंख युग प्रलय में गए। तब का मैं वर्तमान हूँ अर्थात् अमर हूँ। करोड़ों ब्रह्म (क्षर पुरूष अर्थात् काल) भगवान मृत्यु को प्राप्त होकर पुनर्जन्म प्राप्त कर चुके हैं।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग साधना टीवी पर शाम 7:30 से

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काल का जाल

काल जाल को समझ गए तो मुक्ति का मार्ग खुल जायेगा ! प्रश्न :- काल कौन है ? उत्तर :- काल इस दुनियाँ का राजा है, उसका ॐ मंत्र है...